खबर लहरिया Blog बेमानी है स्वास्थ्य विभाग की स्वच्छता

बेमानी है स्वास्थ्य विभाग की स्वच्छता

आइये बात करते हैं उस स्वास्थ्य विभाग की जो साफ सफाई की नसीहत देता है। बड़े बड़े अभियान चलाता है, प्रचार प्रसार में सरकारी धन का गोलमाल करके लोगों के बीच जागरूता फैलाने का दावा करता है। जबकि सच तो यह है कि खुद स्वास्थ्य विभाग के अस्पताल बहुत बदबूदार हैं। वह लोगों को मजबूर करते हैं गंदगी में रहने को। यह सबसे बड़ा सवाल स्वास्थ्य विभाग से कि पहले अपनी गंदगी क्यों नहीं साफ कर पा रहा है? ताकि लोग साफ सफाई में रह सकें।

भुलाये नहीं जा सकते कानपुर हैलेट के वो बदबूदार 15 दिन

एक दुर्घटना के बाद 17 जून से 1 जुलाई तक मैंने लाला लाजपतराय चिकित्सालय (हैलेट) कानपुर में बिताए। 17 से 29 जून तक ओटी काम्प्लेक्स के वार्ड नंबर एक में रही। यह बहुत ही स्पेशल और साफ सुधरा वार्ड माना जाता है। हर रोज सुबह 8 बजे झाडू पोंछा होता और जिन मरीजों के चद्दर बहुत गंदे होते उनको बदला जाता। अच्छी तरह से सफाई तो नहीं पर उतनी बुरी भी नहीं। शौचालय की स्थिति को क्या बताऊं। हर सुबह दो घण्टे बाद सीट भरी ही रहती, बहुत बदबू आती। उस शौचालय के अगल बगल तीन इमरजेंसी वार्ड थे जहां पर सिर्फ बहुत ही सीरियस मरीज भर्ती थे। बगल से आईसीयू था फिर भी यह गन्दगी। इस गंदगी का दोषारोपण मरीजों के साथ रुकने वाले तीमारदारों के ऊपर लगता। हर रोज सुबह शाम उनको सफाईकर्मी और स्वास्थ्य विभाग स्टॉफ से सुनने को मिलता।

मीरा देवी-बेमानी है स्वास्थ्य विभाग की स्वच्छता

मीरा देवी-बेमानी है स्वास्थ्य विभाग की स्वच्छता

साथ ही यह सजा के रूप में कहा जाता कि उसी गंदगी भरे शौचालय को ही इस्तेमाल करो। तीमारदारों के अलावा मरीजों को भी वहीं जाना पड़ता। मज़बूरी बस जाते ही। वहां से वापस आकर उन्हीं कपड़ों, उन्ही हाथों मरीजों को दवाई खिलाने के साथ खाना पीना कराना पड़ता। साफ सफाई के लिए एक मात्र सेनेटाइजर का सहारा था।

एनओटी वार्ड के दो दिन, खुले शौचालय के साथ

इसी तरह से 29 जून की रात दस बजे से एनओटी वार्ड में शिफ्ट किये गए और 1 जुलाई तक रहे। यहां पर वह सारे मरीज मिले जो इमरजेंसी वार्ड में भर्ती रहे थे। हाल के साइज के दो कमरे में लगभग 15 मरीज भर्ती थे। यहां के हालत भी सुन लीजिए। हाल के अंदर ही शौचालय था वह भी बिना दरवाजे का। उसके बगल से तीन कूड़ेदान रखे थे। उनमें 24 घण्टे में कूड़ा ऊपर तक आ जाता था। शौचालय के बिल्कुल बगल से मरीजों के बेड शुरू होते थे। अब ये कोई कहने की बात नहीं कि अगर एक ही कैमरे में मरीज़, कूड़ादान और शौंचालय हो वह भी बिना दरवाजे का तो कितनी ज्यादा बदबू में एक एक पल बीतते रहे होंगे। यहां पर जो महिलाएं तीमारदार या मरीज थीं उनके लिए सुरक्षा और इज्जत की भी बात थी।

सरकारी अस्पताल: अंदर से बदबूदार, दावा साफ सुथरा का 

इस तरह से अस्पताल में बिताए करीब पंद्रह दिन ये अनुभव के लिए काफी थे कि एक बड़े शहर के अंदर नामी गिरामी अस्पताल का वीआईपी वार्ड इतना गंदा हो तो जनरल वार्ड की सफाई अपने आप समझ में आती है। उस अस्पताल में रोज भर्ती होने या रहने वाले हजारों की संख्या के मरीज और तीमारदार कितनी ज्यादा गंदगी में रहने, खाने और सोने को मजबूर होते हैं और स्वास्थ्य विभाग बात करता है साफ सफाई की, लोगों के बीच जागरूकता फैलाने की। क्या फायदा प्रसार प्रसार में सरकारी धन गंवाने से। पहले स्वास्थ्य विभाग अपनी खुद की सफाई करे। ये देखकर लोग खुद जागरूक हो जाएंगें। लोग स्वस्थ्य होने की उम्मीद को लेकर आते हैं और यहां आकर गंदगी और बीमारी की तरफ धकेल दिए जाते हैं।

ये स्थिति सिर्फ एक अस्पताल की नहीं है। इस अस्पताल की गंदगी देश के उन तमाम छोटे बड़े सरकारी अस्पतालों पर सवाल खड़े करने के लिए काफी हैं जिनसे लोगों की उम्मीदें स्वस्थ्य होने को लेकर जुड़ी हैं।