खबर लहरिया Blog महोबा/सालट: साम्प्रदायिक सद्भावना और भाईचारे को क्या तोड़ पायेगा वायरल हुआ बिरयानी मामला

महोबा/सालट: साम्प्रदायिक सद्भावना और भाईचारे को क्या तोड़ पायेगा वायरल हुआ बिरयानी मामला

जिला महोबा, ब्लाक चरखारी, ग्राम पंचायत सालट

इस गांव के लोगों से मिली जानकारी के हिसाब से 31 अगस्त 2019 को इसी गांव की मज़ार में लगने वाले उर्स मेला में मुश्लिम समुदाय के लोगों ने हिन्दू समुदाय के लोगों को प्रसाद के रूप में बिरयानी खिला दिया। मेले में तेरह गांव के लोग शामिल थे। 2 सितंबर 2019 को गांव में पंचायत की गई। पंचायत में गांव के पप्पू और उर्स मेला के आयोजक शेख कल्लू को हिन्दू धर्म के शुद्धिकरण के नाम पचास हज़ार रुपये देने का फरमान सुनाया गया, इस समझौते में पुलिस भी शामिल थी और मामला शांत कर दिया गया। लेकिन ये सज़ा और पुलिस का समझौता काम नहीं आया। जब इस मामले की जानकारी बजरंग दल और चरखारी विधायक को पता चला। उन्होंने गांव वालों से पूंछा कि क्या वह इस मामले पर मुकदमा लिखाना चाहते हैं तो लोग भी आवेश में आकर हां बोल दिया। अब इस मामले में 43 लोगों (20 नामजद और 23 अज्ञात) के खिलाफ धारा 153ए, 295ए, 506 और 420 आईपीसी के तहत मुकदमा लिख गया है। अब इस मामले की एफआईआर दर्ज कराने वाले राजकुमार रैकवार मामले को शांति से निपटाने की बात कर रहे हैं। एफआईआर से निर्दोष लोगों के नाम हटाने की रिकयोस्ट कर मामले को समाप्त करना चाहते हैं जबकि मुकदमा तो दर्ज ही हो चुका है। अमर उजाला अखबार में छापी गई खबर के हिसाब से मज़ार की बाउंड्री गिराए जाने के लिए भी विधायक के निर्देश पर वन विभाग ने निर्णय किया और अंतिम डेट 14 सितंबर रखी गई थी पर वह मामला भी अब टल चुका है।

कवरेज के समय ब्यूरो चीफ मीरा देवी का अनुभव

इस मामले पर हमने हिन्दू और मुश्लिम समुदाय के महिला, पुरूष, जवान, बुजुर्ग, बच्चों, हिन्दू संगठन, एफआईआर के वादी, प्रतिवादी, पुलिस और विधायक से बात की। लोगों ने बताया कि उन्होंने बिरयानी यानी पीले चावल नहीं खाये, हां सुना है कि कुछ लोगों ने बिरयानी खाई है, जिसमें मांस मिला है। उनके नाम क्या हैं लोग नहीं बता पाए। हम पूरे गांव में घूम घूम कर उन लोगों को पूंछते रहे जिसने मांस मिली बिरयानी खाई हो लेकिन कोई ऐसा नहीं मिला जो यह कह सके कि उसको खाने में मांस मिला है। खैर हो सकता है लोग न बताना चाह रहे हों। हमारे लिए ये सर्च कर पाना मुश्किल होता गया कि अगर किसी ने खाया नहीं, देखा भी नहीं तो मांस वाली बात आई कैसे? उर्स आयोजक शेख कल्लू के घर पहुंचे वह घर में नहीं मिला। शेख कल्लू का चचेरा भाई शेख शहादत से मिले। उनसे मिली जानकारी के अनुसार गांव के पप्पू के ऊपर आरोप आया है कि उसने बिरयानी बांटी है, पर उन्होंने देखा नहीं। हां ये बात और है कि उसने पंचायत के सामने यह बात कबूल लिया है कि उसने बिरयानी बांटी है। वह यह भी बताते हैं कि शादी विवाह, पार्टी, त्योहारों में हिन्दू लोग घर आते हैं खूब मांस खाते हैं। उन्होंने खुद अपने हाथों से खिलाया है, कोई दिक्कत नहीं होती। हम पप्पू के घर भी गये पर पप्पू के घर में ताला लगा था। मोहल्ले वालों ने बताया कि पंचायत होने के बाद से वह घर पर नहीं है। अगर पप्पू से मिल पाते तो उसका भी पक्ष जान पाते। पप्पू और शेख कल्लू का घर में न मिलना और पुलिस का ये कहना कि जब मुकदमा लग जाता है तो लोग इधर उधर चलें ही जाते हैं, तो क्या वह डर के मारे उन्होंने घर छोड़ दिया है।

अगर किसी ने देखा नहीं, किसी ने खाया नहीं तो जाहिर सी बात है कि सिर्फ गेस करने के अलावा किया भी क्या जा सकता है। इस मामले में दो रात सोच विचार के बाद 2 सितंबर को गांव की पंचायत बुलाई गई, जिसमें समाज में उच्च मानी जानी वाली जाति के लोग शामिल थे। इस बात की भनक पुलिस को लगी तो वह भी आ गई। पंचायत का निर्णय यहां तक पहुंचा कि पचास हज़ार रुपये की सज़ा सुनाकर मामला को रफा दफा कर दिया जाए। सब लोगों ने सहमति जताई और निर्णय हो गया। अब सवाल ये है कि अगर इस मामले में समझौता हो गया पहले तो ये कि समझौता की जरूरत ही नहीं थी जिसमें कोई सच्चाई नहीं। खैर दोनों समुदायों ने समझदारी से काम लिया और पुस्तैनी भाईचारा कायम रखने के लिए न चाहते हुए भी ये निर्णय को माना। सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि यह मुद्दा राजनीतिक क्यों बनाया गया। चरखारी विधायक तक मामला ले जाने या फिर विधायक को इस मामले में आने की जरूरत क्यों पड़ी। जो लोग इस मामले को नया मोड़ दिए जिनका मकसद था कि ये मामला खत्म न हो उनके हिसाब से धर्म भृष्ट की सज़ा तो मिलनी ही चाहिए इसलिए गांव के कई हिंदुओं समेत ज्यादातर मुश्लिम लोगों के खिलाफ चरखारी थाने में मुकदमा लिखाया गया। इस मुकदमें को लिखाने वाला गांव का राजकुमार रैकवार है। राजकुमार रैकवार से भी हमारी बात हुई उन्होंने बताया कि वह बीजेपी पार्टी के बूथ अध्यक्ष हैं, जब मुकदमा लिखा गया तब वह मौके में नहीं थे। गांव में पुलिस और विधायक मौजूद थे। मुकदमा के एप्लिकेशन बनी और वादी का दस्खत उनसे ले लिया गया। ये वही बात हुई न, मरता क्या न करता। अब बीजेपी और विधायक के सामने इज्जत का सवाल है। अरे इस बनावटी इज्जत के पीछे बहुत सारे निर्दोष लोग फंस गए जो मौके में थे ही नहीं। उन बच्चों का भी नाम है जो दूसरे शहरों में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं उनके कैरियर का सवाल है। खैर इस बात का दुख राजकुमार रैकवार की आखों में, भावनाओं में साफ झलक रहा था। वह बार बार यह कह रहे थे कि जो निर्दोष लोग फंसे हैं उनको बचा लिया जाएगा इसके लिए पुलिस से और विधायक से रिकयोस्ट करेंगे। इस मामले में इसी गांव के सुशील कुमार रिछारिया की सक्रिय भागीदारी के बारे में भी पता चला इसलिए हम पहुंच गए उनसे बात करने। सुशील कुमार रिछारिया ने बताया कि वह हिंदुत्व संघर्ष मोर्चा संगठग के लिए काम करते हैं। वह अपनी पढ़ाई और कैरियर को किनारे कर लग गए हैं हिंदुत्व की सेवा में। उनकी आंखें लाल पीली थी। ऐसा लग रहा था कि वह हिंदुत्व के लिए कुछ भी कर सकते हैं। वह उर्स के मेले में नहीं गए, उनके घर से भी कोई नहीं गया, बस उन्होंने लोगों से सुना है इस केस के बारे में, किसी भी हाल में आरोपी लोगों को छोड़ा नहीं जाएगा। दोनों समुदाय और बीजेपी के लिए काम करने वालो ने साफ तौर पर कहा कि विधायक की बात माननी पड़ी।

 

गांव में लोगों की बातों और हमारी रिपोर्टिंग से यही कहा जा सकता है कि इस मामले को बिना कोई सबूत सच्चाई के जानबूझ कर रचा गया। इसको रचकर इस स्थिति में खड़ा कर दिया गया सच्चाई का कुछ पता चले या नहीं पर हिन्दू मुश्लिम भाई चारे के बीच दरार पड़नी चाहिए। भाईचारे पर हो हल्ला होना चाहिए। ताकि एक चुनावी मुद्दा बन सके। पर क्या यह संभव है। भले ही लोग हिंदूवादी संगठन या पार्टी के लिए काम कर रहे हो, पर हैं तो इंसान ही। इंसान के अंदर किसी न किसी रूप में अभी भी इन्सानित कायम है।