खबर लहरिया Blog महोबा: निःशुल्क भोजन वितरण कर रोज़ाना लोगों का दिल जीत रहीं रूसी

महोबा: निःशुल्क भोजन वितरण कर रोज़ाना लोगों का दिल जीत रहीं रूसी

उत्तर प्रदेश के महोबा ज़िले की रहने वाली 27 वर्षीय रूसी सिंह ने अपने ज़िले के गरीब परिवारों को समय पर खाना पहुंचाने की एक पहल शुरू करी है।

कुछ लोग शौक से खाना बनाते हैं तो कुछ लोगों का पेशा ही खाना बनाना होता है, कुछ लोगों को खाना बनाने के साथ- साथ नए-नए व्यंजन खाना भी पसंद होता है। लेकिन हर किसी के नसीब में दो वक्त की रोटी नहीं लिखी होती। आज भी हमारे देश में 19 करोड़ लोग रोज भूखे सोते हैं, और इन बेसहारा, असहाय लोगों की भुखमरी ख़तम करने के लिए सरकार भी कोई कदम नहीं उठाती। लेकिन कभी-कभी ऐसा लगता है कि अभी भी कुछ लोगों में इंसानियत बाकी है। एक ऐसी ही इंसानियत की मिसाल हैं उत्तर प्रदेश के महोबा ज़िले की रहने वाली रूसी सिंह। 27 वर्षीय रूसी ने अपने ज़िले के गरीब परिवारों को समय पर खाना पहुंचाने की एक पहल शुरू करी है।

पति ने तीन साल पहले शुरू किया था सर्वधर्म भोजन का कार्य-

रूसी बताती हैं कि बचपन से ही घर में लाड-प्यार से पलने के कारण उनके घरवालों ने कभी भी उन्हें घरेलू काम करने के लिए ज़ोर नहीं दिया। शादी के बाद भी जब वो ब्याह करके अपने पति मनमोहन सिंह के घर आयीं, तो वहां पर भी उनके ससुराल वालों ने कभी उन्हें खाना पकाने के लिए नहीं ज़बरदस्ती नहीं कहा।

रूसी बताती हैं कि करीब 3 साल पहले उनके पति ने गरीब परिवारों को खाना खिलाने के लिए एक सर्वधर्म खोला था जिसमें खाना पकाने के लिए उन्होंने एक महिला को रख रखा था। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, ये लोग ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को खाना वितरण करने लगे। अकेले उस महिला के लिए इतना सारा खाना बनाना भी दिन पर दिन मुश्किल होता जा रहा था, कई बार ऐसा भी होता था कि लोग ज़्यादा होते थे और खाना कम पड़ जाता था, इतने सारे लोगों को समय पर खाना वितरण करना रूसी और उनके पति के लिए मुश्किल होता जा रहा था। जिसको मद्देनज़र रखते हुए रूसी ने खुद खाना बनाने की कमान अपने हाथों में ली।

पिछले ढाई सालों से अब वो खुद कुछ सहायकों की मदद से रोज़ाना डेढ़ सौ से ऊपर लोगों को खाना बांटने का काम कर रही हैं। और अब तो इस काम में उनके बच्चे भी अपना योगदान देने लगे हैं और उनकी मदद करते हैं।

सरकारी अस्पताल में भी पहुंचाती हैं भोजन-

रूसी की समाज के लिए सेवाएं यहीं समाप्त नहीं होती। वो 10 दिव्यांग बच्चों की भी देखभाल करती हैं और उनको भोजन देने के साथ-साथ इन बच्चों की आर्थिक सहायता भी करती हैं। रूसी ने हमें यह भी बताया कि महोबा के जिला अस्पताल में जो गरीब परिवार मौजूद होते हैं, जिनका कोई अपना वहां मरीज़ होता है और जिनके पास इतने पैसे नहीं होते कि वो खरीद कर कुछ खा सकें, रूसी और उनका परिवार उन असहाय लोगों को भी भोजन देते हैं।

रूसी बताती हैं कि एक दिन वो जब किसी काम से सरकारी अस्पताल गयीं तो उन्होंने देखा कि अस्पताल प्रशासन वहां मौजूद मरीज़ को ही खाना दे रहे हैं, मरीज़ों के परिवार जनों से बात करने पर पता चला कि वो लोग दूर-दराज़ के गावों से जेब में कुछ पैसे लेकर ही अपनों का इलाज कराने वहां आए हुए हैं। न ही उन्हें कहीं से मुफ्त खाना मिल रहा होता है और न ही उनके पास इतने पैसे होते हैं कि वो बाहर से खरीद कर कुछ खा सकें। लोगों की इन्हीं बातों को सुनकर उन्होंने अपने काम को अस्पताल तक भी पहुंचाने का फैसला किया।

कोरोना महामारी के बीच भी नहीं रुका खाना पहुंचाने का काम-

रोज़ाना होने वाले इस भोजन वितरण में रोज़ लगभग 10-15 किलो चावल बनता है, 20 किलो आटे की रोटियां बनती हैं और हर दिन अलग दाल और सब्ज़ी बनती हैं। एक बार सारा खाना पक कर तैयार हो जाता है तो उसे पैक कर उनके बच्चे अस्पताल और अन्य जगहों पर ये भोजन पहुंचाते हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी जब से आयी है तब से उनका काम और कठिन हो गया है। क्यूंकि ज़्यादातर जगहों पर कुछ हफ़्तों पहले तक लॉकडाउन लगा हुआ था, इसलिए उन्हें सुबह जल्दी उठकर सारा काम करना पड़ता था। वो सुबह 5 बजे उठकर चाय बनाकर महिला अस्पताल और महोबा बस

स्टैंड ले जाती हैं, वहां गरीबों को चाय के साथ नाश्ता भी देती हैं। रूसी का कहना है कि काम के लिए उन्हें प्रशासन से किसी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं मिलती। महोबा की कुछ संस्थाएं और समाज सेवक मिलकर ही जनपद में भोजन वितरण का काम चला रहे हैं।

पत्नी की मदद के बिना सफल नहीं हो पाती मनमोहन की मेहनत-

रूसी के पति मनमोहन ने हमें बताया कि उन्होंने कुछ साल पहले सर्वधर्म भोजन का कार्यक्रम बहुत जगहों पर चलाना शुरू किया था। उन्होंने बांदा में भी भोजन वितरण शुरू करवाया था लेकिन महोबा से रोज़ाना बांदा जाना उनके लिए मुश्किल होता था, जिसके चलते उन्होंने महोबा में ही अलग-अलग जगहों पर निःशुल्क भोजन वितरण का काम शुरू किया। उन्होंने बताया कि जब इस काम की शुरुआत की गयी थी तब कुछ महीनों तक 10 रूपए प्रति थाली के रेट से वो भोजन देते थे लेकिन फिर गरीब परिवारों की लाचारी देखकर उन्होंने इस सेवा को मुफ्त कर दिया। वो अपनी इस कामयाबी का पूरा श्रेय अपनी पत्नी को देते हैं और कहते हैं कि रूसी की नि:स्वार्थ सहायता के बगैर वो आज इतने लोगों की मदद बिलकुल नहीं कर पाते।

रूसी और मनमोहन का गरीब परिवारों को मुफ्त खाना देने का काम प्रशंसा के साथ-साथ प्रेरणा के लायक है। उन्होंने न ही सिर्फ यह साबित कर दिया कि दुनिया में अभी भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो स्वयं से ज़्यादा दूसरों के बारे में सोचते हैं बल्कि हम सबको भी उनसे सीख लेनी चाहिए।

इस खबर को खबर लहरिया के लिए श्यामकली द्वारा रिपोर्ट किया गया है।

कोविड से जुड़ी जानकारी के लिए ( यहां ) क्लिक करें।