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मज़दूरों के लिए कब्रगाह बना महोबा का खदान

बुंदेलखंड हमेशा से पिछड़ा इलाका माना गया है और पथरीला भी कहा जाता है जिसके चलते यहां पर किसी भी तरह से कोई भी विकास नहीं है बुंदेलखंड का महोबा जिला खनन के मामले में सबसे ज्यादा फेमस है यहां से बड़े-बड़े शहरों में माइंस ट्रकों के द्वारा भेजा जाता है अब हम आपको बता दें कि महोबा जिला में किस तरह का माइंस का काम होता है इस काम में किस तरह से लोग मजदूरी करते हैं बुंदेलखंड का महोबा जिला पहाड़ो के नाम से बहुत फेमस है। यहां पर लगभग 1 सैकड़ा पहाड़ है जिसमे खनिज का काम हो रहा है।

जिसमे मजदूरों की सुरक्षा के लिए किसी तरह की कोई सुविधा नही है। पहाड़ो पर आय दिन घटनाएं घटती है। कई मजदूरों की मौत हो जाती है। मौत होते ही शव को पहाड़ से बाहर निकाल दिया जाता है। बाद में पुलिस को सूचना दी जाती है। पीड़ित परिवार कुछ नही कर पाता है। रोता विलखता रहता है। पीड़ित परिवार अगर पहाड़ मालिक पर कोई कार्यवाही करना चाहे तो भी नही कर पाता है। क्योंकि कार्रवाई के नाम पर पुलिस भी पीड़ित परिवार को साथ नहीं लेते इरफान मालिक होते हैं वह चारों तरफ से पूरे परिवार के ऊपर राजीनामा दबाव बनाने का प्रयास करते हैं राजीनामा करने पर कुछ सहायता राशि देने की एक से दो लाख के बीच होते हैं राजीनामा करने पर पीड़ित परिवार को मजबूर हो जाता है।

क्योंकि पीड़ित परिवार की मदद न तो पुलिस करती है, और न ही समाजसेवी नेता। गोपनीय लोगों की बात माने तो मृतक का पंचनामा भरने का भी पुलिस पैसा लेती हैं। पहाड़ मालिक पर कार्यवाही न करने का पुलिस पूरा सहयोग करती है। राजीनामा बनाने पर भी दबाव दिया जाता है। पीड़ित परिवार को अस्वाशन दिया जाता है कि उनके परिवार की देखरेख और पढ़ाई लिखाई और खर्चा उठाएंगे। उनके पत्नी या बच्चो को काम मे रख लेंगे। पर राजीनामा होते ही सब भूल जाते है। फिर कोई किसी का सहयोग नही करता है। न कोई बच्चो का खयाल रखता है न ही उनकी परिवरिश का ख्याल आता है। फिर वह परिवार पुलिस के पास भी कोई मदद के लिए नही जताया है।

क्यूंकि अगर जाएगा तो पुलिस डांट कर भगा देती है। इसलिए वह परिवार दर दर की ठोकरे खाने के लिए मजबूर हो जाता है। पीड़ित परिवार राजीनामा इसलिए बना लेता है क्योंकि उन्हें बताया जाता है कि आपके परिवार से ब्यक्ति तो चला गया, अब क्या होता है। राजीनामा बना लीजिए, क्योंकि आप मुकदमा नही लड़ सकते हैं। कितने दिन तक कोर्ट के चक्कर काटेंगी। पीड़ित परिवार भी सोच जाता है, क्योंकि रोज का कमाने खाने वाले ब्यक्ति कैसे दौड़ धूप कर सकते हैं। जो मिलता है वह बच्चो के शादी विवाह का सोच कर खाते में डाल दिया जाता है।

अगर लोगो की माने तो हर साल में लगभग एक सैकड़ा लोगो की मौत हो जाती है। कई सैकड़ा लोग विकलांग की जिंदगी जीने को मजबूर है। मृतक की लाश के शौदा करके लाख दो लाख रुपये दे दिया जाता है। पर विकलांगो को तो न ही इलाज कराया जाता है, न ही उनके परिवार के भरण पोषण के लिए किसी तरह की कोई सुविधा की जाती है। यहां के कुछ पहाड़ वैध है और कुछ अवैध खनन भी करते है। यह जानकारी पुलिस प्रशासन को होती है। पर कोई कार्यवाही नही की जाती हैं।

यहां पर वैध या अवैध की बात नही है, बल्कि जो खुदाई कराई जाती है वह पूरी तरह से अवैध होती है। क्यों कि पहाड़ो की गहराई ढाई सौ मीटर नीचे है। मजदूर रस्सी में लटक कर चढ़ते है। और खनन खोदने का काम करते है। उनकी सुरक्षा के लिए किसी तरह की कोई सीट बेल्ट, या हेलमेट नही दिया जाता है। न ही उनका श्रम विभाग में रजिस्ट्रेशन कराया जाता है।