प्रशासन की तरफ से आधा पोषाहार ही हर केंद्र को दिया जाता है जिसके कारण सामान बांटते समय कई बार कुछ बच्चे और महिलाएं छूट जाती हैं उनकी मानें तो लाभार्थी बच्चों को पोषाहार न मिलने के कारण कई बार ग्रामीण आक्रोश में आ जाते हैं ।
जिला महोबा के ब्लॉक जैतपुर के गाँव लाडपुर में आंगनवाड़ी केंद्रों को राशन न मिलने की समस्या सामने आयी है। आंगनवाड़ी में काम कर रही महिलाओं का कहना है कि आंगनबाड़ी केंद्र सरकारी होते हैं लेकिन उसके बावजूद यहाँ पर किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं दी जाती। न ही समय पर लोगों का वेतन आता है और न ही ग्रामीण बच्चों और महिलाओं के लिए इन केंद्रों में कोई सुविधा है।
लाडपुर आंगनबाड़ी केंद्र में कार्यरत मनोरमा का कहना है कि उनके गाँव में 3 आंगनबाड़ी केंद्र हैं। और हर महीने तीनों जगहों पर पोषाहार बांटा जाता है। मनोरमा ने हमें बताया कि प्रशासन की तरफ से आधा पोषाहार ही हर केंद्र को दिया जाता है जिसके कारण सामान बांटते समय कई बार कुछ बच्चे और महिलाएं छूट जाती हैं। उनकी मानें तो लाभार्थी बच्चों को पोषाहार न मिलने के कारण कई बार ग्रामीण आक्रोश में आ जाते हैं और उन्हें धमकी भी देते हैं कि इसकी शिकायत वो लोग प्रशासन से कर देंगे।
मई के महीने में कई लभार्थियों को नहीं मिल पाया था पूरा पोषाहार-
मनोरमा के ज़िम्मे में दो आंगनबाड़ी केंद्र हैं। उन्होंने बताया कि पहले आंगनवाड़ी में 7 माह से 3 साल तक के 42 बच्चे हैं और 3 साल से 6 साल तक के 55 बच्चे हैं। केंद्र में गर्भवती और धात्री महिलाएं 26 हैं। इन सभी लोगों के लिए 17 जून को पोषाहार वितरण किया गया था जिसमें गेहूं और दाल थी। उन्होंने बताया कि मई के महीने में कई लोगों को पूरा राशन नहीं मिल पाया था इसलिए इस बार प्रशासन ने सख्त आदेश दिए थे कि सभी को पूरा राशन मिलना चाहिए। जिसके बाद इस महीने गेहूं और दाल के साथ-साथ तेल भी बांटा गया है।
आंगनबाड़ी केंद्र में काम कर रही महिलाओं ने अपने बाल विकास अधिकारी को भी अपनी समस्या बताई थी कि उनके केंद्रों में बहुत ज़्यादा बच्चे हैं और राशन कम आता है, जिसके कारण सबको पूरा पोषाहार नहीं मिल पाता। लेकिन उन्होंने भी कोई सुनवाई नहीं की है।
गाँव के दुसरे केंद्र जिसका नाम चंदी है, वहां 7 माह से 3 साल तक के 42 बच्चे हैं और 3 साल से 6 साल तक के 46 बच्चे हैं। गर्भवती और धात्री महिलाएं कुल 29 हैं। इस दूसरे केंद्र के लिए भी काफी कम खाद्य सामग्री आयी है।
“कभी दाल मिलती है तो गेहूं नहीं, कभी गेहूं मिलता है तो तेल नहीं”-
लाडपुर गाँव की रहने वाली मुल्लो ने बताया कि उनकी बच्ची लगभग 2 साल की होने वाली है और उसको आजतक पूरा पोषाहार नहीं मिल पाया है। कभी दाल मिलती है तो गेहूं नहीं, कभी गेहूं मिलता है तो तेल नहीं। उन्होंने बताया कि पिछले महीने उन्हें सिर्फ 1 किलो गेहूं ही दिया गया था जिसके बाद उन्होंने विभाग से फ़ोन कर जानकारी ली कि उन्हें कितना पोषाहार मिलना चाहिए। विभाग से उन्हें पता चला कि उनकी बच्ची को 1 किलो चने की दाल, डेढ़ किलो गेहूं और आधा किलो चावल मिलना चाहिए जोकि उन्हें नहीं मिलता। जब मल्लो ने इसकी शिकायत आंगनबाड़ी दीदी मनोरमा से की तो उन्होंने बताया कि यहाँ बच्चे ज़्यादा हैं और राशन कम जिसके कारण सबको सम्पूर्ण राशन नहीं मिल पा रहा है।
गाँव के चंद्रभान और रोज़ी का कहना है कि उनकी बच्चियां 3 साल से 6 साल के बीच में आती हैं और उन्हें पोषाहार मिलना चाहिए, लेकिन जब जब वो राशन लेने आंगनबाड़ी केंद्र पहुंचे हैं, उन्हें यह कहकर वापस लौटा दिया गया कि उनके बच्चे बहुत बड़े हो गए हैं और उन्हें पोषाहार की ज़रुरत नहीं। 17 जून को आंगनवाड़ी केंद्रों का लाभार्थियों को पूरा पोषाहार न देने की बात सुनकर जब कई पत्रकार गाँव में आए तब जाकर चंद्रभान के बच्चों को डेढ़ किलो गेहूं,आधा किलो चीनी और आधा किलो चने की दाल मिल पायी। चंद्रभान का कहना है कि उनकी बच्चियों के नाम रजिस्टर में दर्ज हैं परन्तु जब से उनके बच्चों की खाद्य सामग्री की मात्रा बढ़ने लगी तब से उनको राशन मिलना बंद कर दिया गया।
लिस्ट पर है नाम, लेकिन नहीं मिल रहा पोषाहार-
रोज़ी ने आंगनबाड़ी केंद्रों और विभाग के अंतर्गत चल रही धांधली का एक और उदाहरण हमें दिया। उन्होंने बताया कि कई बार तो आधे से ज़्यादा ग्रामीणों को पता भी नहीं चलता और राशन वितरण हो जाता है। जब इस महीने 17 तारिख को वो यहाँ राशन लेने आयीं तो पहले तो उन्हें मना कर दिया गया कि अब उनके बच्चों को राशन नहीं मिलेगा और लिस्ट में बच्चों का नाम नहीं है लेकिन जब उन्होंने लिस्ट देखी तो न ही सिर्फ उसमें बच्चों के नाम थे बल्कि पिछले महीने हुए राशन वितरण में उनके बच्चों के नाम के आगे उनके सिग्नेचर भी थे, जिससे यह पता चलता है कि किसी और को उनके हिस्से का पोषाहार दे दिया गया।
मनोरमा ने इन सभी आरोपों को झूठ बताया है और उनका कहना है कि गाँव की महिलाएं पूरा पोषाहार न मिलने के कारण गुस्से में है जिसके कारण वो ऐसे इलज़ाम लगा रही हैं।
कुपोषित बच्चों के लिए भी अलग से नहीं मिलता राशन-
मनोरमा ने हमें यह भी बताया कि तीनों केंद्रों में 4 बच्चे कुपोषित हैं जिनके लिए भी अलग से पोषाहार नहीं आता और उन्हें बाकी के राशन में से ही उन बच्चों को देना पड़ता है। उन्होंने बताया कि गाँव की रवीना की बच्ची 1 साल की हो गयी है लेकिन अभी सिर्फ 6 किलो की है, उसका वज़न कम से कम 8 किलो होना चाहिए। उन्होंने रवीना से कई बार महोबा जिला अस्पताल में जाकर बेटी का इलाज कराने के लिए कहा है जिसके लिए पैसे भी दिए जायेंगे परन्तु रवीना ने इसपर भी ध्यान नहीं दिया है।
जब एक बच्चे का राशन पूरा परिवार खाएगा, तो कैसे मिलेगा बच्चे को पोषाहार?
जैतपुर ब्लॉक के सीडीपीओ क्रांति ठाकुर ने हमें बताया कि जितने आंगनबाड़ी केंद्रों में जितने बच्चों और महिलाओं की लिस्ट उनके पास दर्ज कराई गयी है, वो यहाँ से सबके लिए पूरी खाद्य सामग्री भेजते हैं। ऐसे में अगर आंगनबाड़ी केंद्र पूरा पोषाहार लाभार्थियों को नहीं दे रहे तो इसकी जांच होनी चाहिए। उन्होंने हमें यह भी बताया कि कुपोषित बच्चों के लिए गाइडलाइन के हिसाब से राशन भेजा जाता है लेकिन कई बार उसमें कमी हो जाती है जिसके कारण स्वस्थ्य बच्चों के पोषाहार में से थोड़ा सा राशन कुपोषित बच्चों को दे दिया जाता है। उन्होंने हमें यह भी बताया कि बाल विकास परियोजना की तरफ से जितना राशन बच्चों को दिया जाता है वो सिर्फ बच्चे ही नहीं खाते बल्कि गावों में पूरा परिवार उसका सेवन करता है और परिणाम स्वरुप महीने भर चलने वाला राशन 5-6 दिनों में ही ख़तम हो जाता है।
इस पूरे मामले से यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि न ही सिर्फ सरकार की तरफ से पोषाहार के नाम पर आंगनबाड़ी केंद्रों को कम राशन दिया जाता है बल्कि इन केंद्रों पर भी लोग जमकर धांधलेबाज़ी करते हैं। ऐसे में विभाग को ग्रामीण बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में सोचना चाहिए और उन्हें सम्पूर्ण राशन प्रदान करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।
इस खबर को खबर लहरिया के लिए श्यामकली द्वारा रिपोर्ट किया गया है।
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