खबर लहरिया Blog ‘पान की खेती’ के रोज़गार व पहुंच में बाधा है ‘विकास का न होना’

‘पान की खेती’ के रोज़गार व पहुंच में बाधा है ‘विकास का न होना’

पाली के ही रहने वाले मनोज चौरसिया कहते हैं, “1976 तक यहां के पान पाकिस्तान के लाहौर तक जाते थे। राजस्थान, हरियाणा, पंजाब के कोने-कोने तक जाया करते थे। यह काम हमारा पुस्तैनी था इसलिए हमने भी इसी काम को अपनाया लेकिन अब इसमें कोई भी फायदा नजर नहीं आ रहा है।”

रिपोर्ट व तस्वीरें – नाज़नी रिज़वी 

पान का नाम सुनते ही आप के मन में ये गाना तो जरूर से चलने लगता होगा –

“ओ खइके पान बनारस वाला 

 खुल जाए बंद अकल का ताला”

पान को आपने खेल में ताश के पत्तों में, गानों में, फिल्मों में, पूजा में और दुकानों में देखा होगा। फिल्मों में फ़िल्माए जाने से पान खाने का प्रचलन अधिक बढ़ गया है। पान गांव से लेकर शहरों तक में अब लोग पान खाने और इस्तेमाल करने लगें हैं। पान से उन किसानों पर कितना असर पड़ता है जो पान की खेती करते हैं? उन्हें आप तक पान को पहुंचाने में किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है? इसका उनके जीवन और रोजगार पर कितना प्रभाव पड़ता है? क्या आप ने  इस बारे में सोचा है? पान ने चाहे जितने अपने पैर देश भर में पसारे हो लेकिन आज भी देश के कुछ गांव ऐसे हैं जो इसके रोजगार से अपना पेट नहीं भर पा रहे हैं। जो लोग पान की खेती से अपना जीवन चलाते आ रहे हैं अब साधनों की कमीं की वजह से इस रोजगार को त्यागने पर मजबूर हो गए हैं। 

हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के ललितपुर के गांव पाली की। बुंदेलखंड में स्थानीय लोग रोजगार के लिए पलायन कर रहे हैं लेकिन यहां बाहरी लोग बड़े-बड़े बिजनेस कर रहे हैं। ललितपुर के पाली कस्बे में बरसों से पान का व्यापार चलता आया है। पान की खेती साहू समाज के लोग सैकड़ो साल से करते आ रहे हैं लेकिन अब संसाधनों की कमीं की वजह से पान का व्यापार धीमा पड़ गया है। पान अब कम दामों में बेचने पड़ रहें हैं। इतने सस्ते कि जिसका कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता जिसमें उनकी मेहनत भी नहीं निकाल पा रही है। गांव में पहले पान के व्यापार से खुश होकर गीत भी गया करते थे। 

ललितपुर की लाली अऊर पाली के पान

होंठ कर वे गुलाबी हैं कब से हैरान 

बीना के मेंहदी अउर झांसी के झाला 

अउर मऊ से मंगा दई मोतियों के माला 

होंठ कर दे गुलाबी कब से हैंरान 

तोड़े टीकमगढ़ के ले जाईवो न्यारे 

बांदा के बिछवा भारी मजेदारे 

छलनी छतरपुर की बड़ी है दुकान

होंठ कर दे गुलाबी पाली के पान 

अब इस गीत की धुन भी पान के रोजगार-सी कम होती चली जा रही है। 

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पान का रोजगार अब नहीं भाता 

पाली के रहने वाले हर्षित चौरसिया ने बताया कि, “मैं बचपन से अपने दादा, पापा के साथ पान की खेती में उनका हाथ बंटाता था लेकिन पान की खेती दिन पर दिन विलुप्त होती जा रही है और इससे कोई फायदा नजर नहीं आ रहा है इसलिए मैं अब इस काम को नहीं करना चाहता कुछ और ही काम करूंगा।”

ललितपुर के पान की पहुंच दूर तक 

पाली के ही रहने वाले मनोज चौरसिया कहते हैं, “1976 तक यहां के पान पाकिस्तान के लाहौर तक जाते थे। राजस्थान, हरियाणा, पंजाब के कोने-कोने तक जाया करते थे। यह काम हमारा पुस्तैनी था इसलिए हमने भी इसी काम को अपनाया लेकिन अब इसमें कोई भी फायदा नजर नहीं आ रहा है।”

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ट्रेनों से पान का व्यापार होता था आसान 

मनोज चौरसिया आगे बताते हैं, “पहले पान ट्रेनों से ले जाया करते थे। पाली से पान की खेती करने वाले किसान अपने पान ललितपुर रेलवे स्टेशन लेकर जाते थे फिर वहां से वह ट्रेनों में पान रखते थे और कुछ लोग साथ में जाकरअलग-अलग जगह पर पान बेचते थे। बाद में जाकर ट्रेन बंद हो गई।”

गाड़ी बुक कर के जाना पड़ता है महंगा 

मनोज चौरसिया कहते हैं, “किसानों ने कोशिश की, नेताओं से भी कहा कि कोई साधन की सुविधा करा दीजिए। तब जाकर सांसद अनुराग शर्मा के पिता ने एक रोडवेज बस पाली से बरेली तक की चलवाई थी। जिसमें किसान पान लेकर बरेली मंडी में देकर आते थे फिर वहां से रामपुर सहारनपुर हर जगह पान भेजे जाते थे। तब 600 की एक पान की टोकरी पड़ती थी। अब एक टोकरी 3200 की 4000 की पड़ती है क्योंकि अपने निजी साधन से जाना पड़ता है। सभी किसान पैसे इकट्ठा करते हैं फिर एक गाड़ी बुक करते हैं और फिर अपने-अपने पान लेकर के बरेली मंडी पहुंचते हैं। अब पान हम एक हफ्ते में तोड़ते हैं पहले हर रोज तोड़ते थे। इसकी वजह से पान महंगा बिकता था और पान अच्छा भी रहता है। अब रोज गाड़ी बुक लगे तो उसका भाड़ा हम दे नहीं सकते और ज्यादा पान हो जाने की वजह से मंडी में लोग सही रेट में लेते भी नहीं है।”

पान की खेती से निराश हो पलायन करने को मजबूर 

बद्री चौरसिया कहते हैं, “बचपन से हम पान की खेती खुद की जमीन पर करते आए हैं और थोड़ी बहुत ठेके पर भी करते हैं। पूरा परिवार पान की खेती में लगे रहता है  लेकिन अब लगता है कि जो हमने किया अब अपने बच्चों को नहीं करने देना चाहिए क्योंकि इसमें कोई भविष्य नहीं। पाली के लगभग 1000 परिवार पान की खेती से निराश होकर पलायन कर चुके हैं। पहले यहां के लोग कहीं भी नहीं जाते थे सिर्फ पान की खेती ही यहां के चौरसिया लोगों का व्यवसाय था। 

पहले यहां लगभग 2000 एकड़ में किसान पान की खेती करते थे अब यहां पान की खेती सिर्फ 100 एकड़ में सिमट कर रह गई है। कोरोना की वजह से साहू समाज के लोगों का रोजगार चला गया। कोरोना के समय से दोबारा यहां की बस वापस नहीं चली। पहले हम ₹600 में बरेली तक पहुंच जाते थे अब हमारा भाड़ा 32-35 सौ  लगता है। फिर वहां का खर्च,आना-जाना, खाना-पीना, जितने का पान नहीं बिकता उससे ज्यादा हमारा खर्च हो जाता है इसलिए हमारा पान खेत के अंदर ही सूख जाता है, पीला पड़ जाता है।”

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रोडवेज बस की है मांग 

वहां हम अपनी फसल को अपनी मेहनत को इसी तरह बर्बाद होते देखते रहते हैं हम चाहते हैं कि इस लोकसभा चुनाव के बाद हमारे लिए, हमारे पान व्यापारियों के लिए एक रोडवेज बस चलानी चाहिए जिससे हम अपना रोजगार अपने ही क्षेत्र में फैला सके।  हमारे यहां के बच्चे बहार न जाएं। इस लोकसभा चुनाव से हमें उम्मीद है कि बस फिर से पाली से बरेली की दौड़ लगाएगी और पाली का पान अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी खुशबू बिखेरेगा। 

इन्डिया गठबंधन के प्रत्याशी प्रदीप जैन आदित्य ने दिया आश्वासन 

जब खबर लहरिया की रिपोर्टर ने इस मुद्दे पर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी प्रदीप जैन आदित्य से बात की तो उन्होंने कहा, “अगर मैं जीतूंगा तो पाली के पान व्यापारियो के लिए बस जरूर चलवावाऊंगा। मैंने उनसे (किसानों) वादा किया है उसे पूरा करूंगा। यह पान हमारे क्षेत्र की पहचान हैं विलुप्त नहीं होना चाहिए।

 

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