19 जनवरी का दिन देश के राजनीतिक इतिहास में अपनी महत्त्वपूर्ण जगह रखता है। 16 जनवरी 1966 का ही वह सुनहरा दिन था, जब इंदिरा गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया था। वह देश की सबसे पहली महिला प्रधानमंत्री थीं। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मौत के बाद इंदिरा गांधी ने देश की बागडोर अपने हाथों में ली थी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार उनके पिता जवाहर लाल नेहरू ने देश की कमान इंदिरा गांधी उर्फ प्रियदर्शिनी के हाथों में सौंपी थी।
इंदिरा गांधी का राजनीतिक सफर
42 वर्ष की उम्र में 1959 में वह कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष बनी थी। जिस पर कई आलोचकों ने दबी जुबान से पंडित जवाहरलाल नेहरू को पार्टी में परिवारवाद फैलाने का दोषी ठहराया था। फिर 27 मई 1964 को नेहरू के निधन के बाद इंदिरा गांधी चुनाव जीतकर सूचना और प्रसारण मंत्री बनी थीं।
11 जनवरी 1966 को भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की अकस्मात मृत्यु के बाद 24 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी भारत की तीसरी और प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनीं। इसके बाद वह लगातार तीन बार 1967-1977 और फिर चौथी बार 1980-84 तक देश की प्रधानमंत्री रही। 1967 के चुनाव में वह बहुत ही कम बहुमत से जीत सकी। लेकिन 1971 में फिर से वह भारी बहुमत से प्रधामंत्री बनीं और 1977 तक रहीं। 1977 के बाद वह 1980 में एक बार फिर प्रधानमंत्री बनीं और 1984 तक प्रधानमंत्री के पद पर रहीं।
16 वर्ष तक देश की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी के शासनकाल में कई उतार–चढ़ाव आए। लेकिन 1975 में आपातकाल की घोषणा और 1984 में सिख दंगा जैसे कई मुद्दों पर इंदिरा गांधी को भारी विरोध–प्रदर्शन और तीखी आलोचनाएं झेलनी पड़ी थी। इंदिरा गांधी ने 1971 के युद्ध में विश्व शक्तियों के सामने न झुकने के नीतिगत और समयानुकूल निर्णय क्षमता से पाकिस्तान को हराया था और बांग्लादेश को आज़ादी दिलाकर स्वतंत्र भारत को एक नया गौरवपूर्ण क्षण दिलवाया था।
अंगरक्षकों ने की थी इंदिरा गांधी की हत्या
सोनिया गांधी ने अपनी किताब ‘राजीव‘ में बताया था कि 30 अक्टूबर 1984 की रात को उन्हें नींद नहीं आई थी। 31 अक्टूबर की सुबह साढ़े सात बजे तक वह तैयार हुई और नाश्ता किया। इसी बीच उनके पारिवारिक डॉकटर केपी माथुर उनके चेकउप के लिए। जिसके बाद वह धूंप सेंकने बाहर आ गयी। उनके साथ उनके सिपाही नारायण सिंह काला छाता लेकर उनके साथ चल रहे थे। साथ में आरके धवन भी थे। 9 बजकर 20 मिनट पर वहां तैनात बेअंत सिंह ने पिस्तौल निकाली और इंदिरा गांधी पर गोली चला दी। बेअंत सिंह के साथी सतवंत सिंह ने भी अपनी ऑटोमैटिक करबाइन से इंदिरा गांधी पर धड़ाधड़ 25 गोलियां चला दी और उनकी मृत्यु हो गयी।
50 सैकंड के बाद सतवंत और बेअंत ने हथियार डाल दिए और कहा कि उन्होंने अपना काम कर लिया है। जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। ख़ुफ़िया एजेंसियों ने इंदिरा गांधी से पहले ही कहा था कि उन पर हमला हो सकता है। उन्हें अपने निजी लोगों से ही खतरा है। लेकिन फिर भी, शायद उनका यह फैसला लेना ही उन्हें “आयरन लेडी” का खिताब देता है।
भाषण में कही देश को मजबूत करने की बात
इंदिरा गांधी ने ओडिशा के भुवनेश्वर में 30 अक्टूबर 1984 के दिन अपने चुनावी भाषण में कहा था, ‘मैं आज यहां हूँ कल शायद ना रहूं। मुझे चिंता नहीं। मैं रहूं या ना रहूं। मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया। मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी। जब मैं मरूंगी तो मेरे खून का एक–एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।‘
इंदिरा गांधी को उनके पक्के इरादों, कठोर फैसलों और विवादास्पद फैसलों के लिए याद किया जाता है। उनके फैसलों से यह बात भी साफ़ होती है कि वह किसी भी फैसले को लेने से डरती नहीं थी। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान खुद पर किसी को भी हावी नहीं होने दिया और स्वतंत्र रूप से अपने अनुसार देश के हित के लिए फैसले लेती रहीं। वह किसी के सामने नहीं झुकीं और जिसने भी उन्हें चुनौती दी। उन्होंने उसे उसका मुंहतोड़ जवाब भी दिया। एक ऐसी महिला प्रधानमंत्री जिसने उस दौर में सबको जवाब दिया, जिस समय महिलाओं को बोलने तक अधिकार नहीं था। ऐसे समय में उन्होंने अपना जीवन सिंहनी की तरह जीया।
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