खबर लहरिया Blog विश्व मानवाधिकार दिवस

विश्व मानवाधिकार दिवस

विश्व मानवाधिकार दिवस :

10 दिसंबर का दिन भी इतिहास के पन्नों में बेहद खास है  क्योंकि ये दिन मनाया जाता है विश्व मानवाधिकार दिवस  के रूप में।
इस साल इस दिन को क्या आप मनाएंगे और क्यों मनाएंगे? इस दिन को लेकर मेरे दिल और दिमाग में बहुत सारे सवाल हैं। मैं तो बिल्कुल भी नहीं मनाऊंगी। मेरा बस चले तो मैं सब को मना कर दूं पर हमारा संविधान कानून के अंदर रहकर हर प्राणी को अपने मन मुताबिक कार्य करने की आज़ादी जो देता है। कुछ लोग खानापूर्ति के लिए तो कुछ लोग इसको अपने हित के लिए मनाएंगे। तो आइए बात कर लेते हैं कि इस दिन की शुरूआत क्यों और कैसे की गई।
सन 1950 में संयुक्त राष्ट्र ने 10 दिसंबर के दिन को मानवाधिकार दिवस घोषित किया था ताकि लोगों को उनके अधिकारों के बारे सही और सटीक जानकारी मिल सके। दरअसल, संविधान में हर इंसान के कुछ मौलिक अधिकार हैं जिनकी जानकारी हर एक को नहीं होती लिहाज़ा ये दिन लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए ही मनाया जाता है।
इस दिवस को मनाने के तरीके पर बात करें तो एक बिल्डिंग के अंदर कुछ प्रशासनिक और राजनीतिक लोगों को बुलाकर भाषणबाजी, माल्यार्पण और फीता काटकर ताली बजवाकर मिठाई खा लेते हैं, बस मना लिया गया यह दिवस। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 में भारत देश की 36.9 करोड़ (27.9 प्रतिशत) आबादी गरीबी से गुजर रही है। सोचिए जरा कि देश के अंदर लगभग 28 प्रतिशत ग्रामीण आबादी जिसमें गरीब, किसान, मज़दूर, महिलाएं और हासिए पर रहने वाला समुदाय ऐसे में कैसे जागरूक होगा। जो लोग हर साल इस दिवस को ऐतिहासिक दिन के रूप में मनाते हैं क्या वह लोग ऐसे लोगों को जागरूक करने की अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझेंगे?विश्व दूरदर्शन दिवस- आपको अपना पहला टेलीविजन चैनल याद है?
कुछ देर के लिए मान लिया जाए कि इस दिन को मनाने का मतलब है लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना। इन अधिकारों के प्रति जागरूक तो हो गए पर इससे क्या कोई फर्क पड़ेगा? क्या करेंगे जागरूक होकर जब उन हक़ अधिकारों को मिलना ही नहीं है। हां ये हक़ और अधिकार भी बहुत महंगे हैं इसीलिए तो धन और बाहुबली सम्पन्न लोगों को ही मिलते हैं। जो गरीब है चाहे वह धन से हो या बाहुबल से हो वह कितना भी पढ़ा लिखा और जागरूक क्यों न हो उसको हक़ अधिकार मिलते नहीं जबकि छिनते हैं। वह कितना भी चिल्लाए, धरना, आंदोलन करे, अदालत और प्रशासन के चक्कर लगाए उसको नहीं मिलते अपने हक़ अधिकार। चाहे आप हर रोज विश्व मानवाधिकार दिवस बनाएं, आपको क्या लगता है कुछ फर्क पड़ेगा?
आज देश जिस स्थिति से गुजर रहा है उस स्थिति में यह दिन एक बिल्डिंग के नीचे कार्यक्रम मनाने से अच्छा कि किसी भी बड़े केस में निष्पक्ष रूप से कोर्ट फैसला करे। सरे आम लड़कियों और महिलाओं का बलात्कार कर देना, उनको जिंदा जला देना। अदालत से बेगैर आरोप सिद्ध हुए एनकाउंटर कर देना। कानून की हत्या कर देना। संविधान, अदालत और पुलिस व्यवस्था को  निष्क्रिय कर देना। ये सब बड़ा सवाल उठाने के लिए काफी हैं कि क्या सच में इस दिवस को मनाना  ठीक है। एनकाउंटर के इर्द गिर्द ऐसे लोग शिकार हुए हैं जो धन और बाहुबल से बहुत कमजोर हैं। ऐसी घटनाएं दुनिया के सामने ये बताने के लिए काफी हैं कि कहां है मानवाधिकार? और इसे किसी खास दिन विश्व मानवाधिकार दिवस के रूप में क्यों मनाया जाए?