आज के समय में बॉलीवुड में कई ऐसे सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाई जा रही हैं जिन पर लोग बात करने में आज भी शर्माते हैं. जैसे सेंटरीपैड हो या समलैंगिकता इन मुद्दों पर बॉलीवुड फिल्में बना रहा है ताकि इन पर खुलकर बात की जा सके. फिल्म उत्तर प्रदेश के एक जिले की है जहां कंडोम की बिक्री बेहद कम है क्योंकि लोगों को कंडोम मांगने में शर्म आती है। इसलिए कोई इसका का नाम भी नहीं लेता। वैसे हमारे खुद के भी रिपोर्टिंग के अनुभव यही कहते है लोगों को जब कॉन्डोम किसी संस्थाय या सरकारी योजना के तहत भी दिया जाय तो वो जल्दी लेते नहीं अगर ले लिया तो वो बच्चों के खेलने की सामग्री बन जाती है. खैर हम फिल्म पर वापस आते है.
कहानी है अनाथ लकी यानी अपारशक्ति खुराना और रूपाली यानी प्रनूतन बहल की। उत्तर प्रदेश के किसी छोटे शहर में लकी एक शादी बैंड का स्टार सिंगर है। वहीँ रूपाली एक अमीर और घमंडी शख्स की बेटी है। जो शादियों में डेकोरेशन का काम भी करती है। लकी और रूपाली एक दूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं। लेकिन रोड़ा बनता है दोनों के सामाजिक और आर्थिक स्तर का फ़र्क। लकी रूपाली का हाथ मांगने उसके घर जाता है, मगर रुपाली का पिता उसे बेइज़्ज़त करके निकाल देता है। अब रूपाली से शादी करने के लिए लकी के सामने एक ही रास्ता है कि वो कहीं से पैसे का जुगाड़ करे और अपना बैंड खोल ले। क्योकि वो जिस बैंड में काम कर रहा होता है वो रुपाली के मामा का ही होता जो उसे अपने बैंड से निकाल देता है.
ये भी देखें :
रूपाली के पिता ने रुपाली की शादी एक विदेशी लड़के से तय कर दी है। रुपाली संग शादी की ख़ातिर लकी को पैसे जुटाने है मतलब इनको जल्दी अमीर बनना है. जिसके लिए ये शॉर्टकट अपनाते हैं. यानी लकी अपने दोस्तों सुल्तान और माइनस के साथ मिलकर एक ऑनलाइन शॉपिंग कंपनी का ट्रक लूटता है उन्हें लगता है कि उस ट्रक में मोबाइल है पर डिब्बे खोलने पर पता चलता है कि ट्रक में मोबाईल नहीं कंडोम थे. इतने सारे कंडोम्स हैं कि जला नहीं सकते. ऊपर से पैसा भी चाहिए. इसलिए तीनों कंडोम की होम डिलीवरी शुरू कर देते हैं. क्योकि उस जिले में कॉन्डोम का नाम लेने पर भी मार पड़ती है तो अपना सर बचाने और पहचान छुपाने के लिए ये लोग मुंह पर हेलमेट लगाकर कंडोम बेचते हैं. इसलिए कंपनी का नाम भी हेलमेट ही रख देते हैं. आगे इनके हेलमेट वाले सिर पर कैदी की टोपी लगती है या मुकुट, ये फिल्म देखकर पता चलेगा.
वैसे किसी सीरियस टॉपिक को कॉमिडी के तरीके से कैसे समझाया जाय ये इस फिल्म में खूब दर्शाया गया है. इसका एक डायलॉग है चाहिए सबको पर मांगता कोई नहीं है. ये हमारे समाज और उसकी मानसिकता पर भी फिट बैठता है. बच्चे अगर 5 -6 हो तो मर्दानगी दिखाई जाती है. भले ही अंदर वो टूटते हो पर जाहिर नहीं करना। आप खुद ही सोचिये न अभी भी स्कूलों में प्रजनन वाले चैप्टर पर लोग नज़रें चुराने लगते है यहाँ तक की टीचर भी खुल कर बात करने से बचते है . परिवार के साथ टीवी देख रहे हों और अचानक कंडोम का ऐड आ जाए, तो लोग रिमोट टटोलने लगते हैं. जैसे ये गन्दी चीज है.कॉन्डोम को लेकर लोगों की झिझक को फ़िल्म में राष्ट्रीय समस्या के तौर पर पेश किया गया है और आबादी बढ़ने की रफ़्तार के पीछे इसे प्रमुख कारण माना गया है। निरोध या कॉन्डोम का इस्तेमाल ना करने की वजह से यौन रोगों का ग्राफ भी बढ़ रहा है, जिसे महिला यौनकर्मियों के ज़रिए दर्शाया गया है, जो कॉन्डोम की सेल बढ़ाने में लकी टीम की मदद करती हैं.
अगर बात करें अभिनय की तो ये देखकर अच्छा लगा कि अपारशक्त्ति को हीरो के दोस्त वाली इमेज से बाहर लाया गया है और वो कहानी को लीड कर सकते हैं. बशर्ते कहानी दमदार होनी चाहिए. फिल्म में प्रनुतन बहल ने उनकी गर्लफ्रेंड रूपाली का किरदार निभाया है मतलब इस फिल्म में भी एक लड़की को सिर्फ शो पीस की तरह ही दिखाया गया है. लेकिन वो जितने भी सीन्स में थीं, उन्होंने अच्छा काम किया. सुल्तान बने अभिषेक बैनर्जी तो शायद ‘स्त्री’ के बाद हम उन्हें ऐसे रोल्स में देख रहे है लेकिन अगर पातळ लोक के हथौड़ा सिंह आपको याद हो तो ये रोल उनके साथ ना इंसाफ़ी सी लगती है.पर उन्हें स्क्रीन पर देखकर मज़ा आता है.माइनस के रोल आशीष वर्मा है जो एकदम बेवकूफ टाइप आदमी है. तीन दोस्तों में जो प्लान खराब करने वाला बंदा होता है, बस वही है माइनस.
कुल मिलाकर अगर मैं बात करूँ फिल्म के नज़रिए से तो अगर आप किसी सामाजिक मुद्दे पर फिल्म देखना चाहते हैं तो इस फिल्म को देख सकते हैं.
ये भी देखें :
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)