बालों को लाल, पीले, सुनहरे, हरे रंग में रंगना वह भी सामने की जुल्फे अब छोटे-छोटे बच्चों का भी फैशन बनता जा रहा है। यह कलर यानी कलर वाली मेंहदी और शैम्पू अब गांवों की छोटी-छोटी दुकानों में भी आसानी से मिलने लगा। बाल कलर करने के लिए उनको नाई की दुकान या फिर किसी ब्यूटी पार्लर में जाने की जरूरत नहीं होती। वह एक दूसरे के लिए नाई और ब्यूटीशियन का काम कर लेते हैं। खबर कवरेज के दौरान बहुत ऐसे बच्चे मिले जो अपनी जुल्फों को कलर कराए थे और पूंछने पर बताते हुए बहुत खुश नजर आए।
टिक टॉक देखकर बढ़ गया शौक
जब बारह साल के गोलू से ये पूछा गया कि उसने बाल कलर करना कैसे सीखा और कैसे शौक बढ़ा तो पता है उसने क्या कहा। बोलता है कि उसका बड़ा भाई जो गुजरात में एक कम्पनी में काम करता है वहां से स्मार्टफोन लाया और उसमें टिक टॉक के वीडियो खूब देखता था। जो बच्चे एक्टिंग करने वाले हैं सब बाल कलर किये रहते थे। उनको देखकर उसे बाल कलर करने की सूझी। लेकिन ये कलर आये कहां से तो उसके लिये यूटयूब पर देखा और बस तब से शुरू हो गए बाल कलर करना।
बड़े बुजुर्गों से मिलती है डांट
ये बाल जब कलर करते हैं तो बड़े बुजुर्गों से बहुत डांट मिलती है लेकिन चोरी चुपके वह इन बालों को कलर कर ही लेते हैं। एक बार की बात है कि मां अपने पैरों में लगाने वाला रंग (महावर) घोल के रखी थीं अपने पैरों में लगाने के लिए। उसने उस कलर को बहुरा लिया और सामने के बाल कलर किये और बुझा ली शौक। लेकिन बदले में मां से बहुत मार पड़ी थी।
बाल कलर खरीदने को जब बेचना पड़ा चाट
बाल कलर खरीदना था लेकिन दस रुपये वह भी बाल कलर के लिए मांगना उनको महंगा पड़ सकता था लेकिन उसने चाट खाने के नाम पर पैसे मांगे। पैसे न मिलने पर कुछ नन्हे दोस्तों ने प्लान बनाया कि वह सब पैसे मिलकर जोड़ेंगे। छह की टोली में दो ने पांच-पांच रुपये जुगाड़े और बाज़ार से चाट खरीदकर लाये। थोड़ा और मैटेरियल डालकर उसके छह हिस्से किये और बेच दिया चाट। यह मेहनत और तरक़ीब रंग लाई और जुगाड़ लिए साठ रुपए। फिर क्या था उन छह दोस्तों ने एक दूसरे के कलर कर लिए बाल और पूरी कर ली फ़ैशन।