खबर लहरिया Blog मज़दूरों के मौत का डाटा होने से सरकार ने किया इंकार, उठा केंद्र और राज्य पर सवाल

मज़दूरों के मौत का डाटा होने से सरकार ने किया इंकार, उठा केंद्र और राज्य पर सवाल

सोमवार 14 सितम्बर को लॉकडाउन के बाद संसद का पहला मानसून सत्र शुरू हुआ। लोकसभा में बैठे संसद के सदस्यों ने प्रश्न 174 (ए और बी) के तहत प्रवासी मज़दूरों के बारे में सरकार के सामने सवाल रखा। कहा कि तालाबंदी के दौरान मज़दूर देश के अलग-अलग हिस्सों से अपने राज्यों और अपने घरों की तरफ़ लौट रहे थे। जिसके दौरान कई प्रवासी मज़दूरों ने अपनी जान भी गवां दी। सरकार से उन सभी प्रवासी मज़दूरों की जानकारी मांगी, जो अपने घर जीवित नहीं पहुंच पाए और रास्तें में ही उनकी मौत हो गयी। 

नहीं है जान गवाएं गए प्रवासी मज़दूरों की जानकारी 

संसद के सवाल पर श्रम और रोज़गार मंत्री, संतोष कुमार गंगवार ने प्रवासी मज़दूरों की हुई मौतों को पूरी तरह से नकार दिया। उनका कहना था कि सरकार के पास ऐसे कोई जानकारी नहीं है। और जब प्रवासी मज़दूरों की हुई मौतों की जानकारी ही नहीं है तो मुआवज़े का सवाल कहां से आता है। गंगवार के इस बयान के बाद दूसरी राजनितीक पार्टियों ने मोदी सरकार को घेर लिया। सवाल खड़े करे कि केंद्र सरकार बस इसके ज़रिये अपनी छवि बनाये रखने की कोशिश कर रही है। एकतरफ़ जहां लॉकडाउन के दौरान मज़दूर पैदल, नंगे पांव मीलों चलने के लिए मज़बूर थे। न कोई यातायात का साधन था, न ही उनके रहने-खाने की व्यवस्था। उस दौरान न जाने कितने हीं मज़दूरों ने भूख और प्यास से अपनी जान गवां दी। कई जान चले जाने के बाद सरकार अपनी नींद से जागी। प्रवासी मज़दूरों के लिए श्रमिक ट्रेन, निजी बसें और गाड़ियों के इंतज़ाम किए। लेकिन ये सब चीज़े मज़दूरों के लिए देरी से आयीं। 

श्रम और रोजगार मंत्री डाल रहे हैं अपने बयान पर पर्दा 

श्रम और रोजगार मंत्री संतोष कुमार गंगवार, बुधवार 16 सितम्बर को अपने दिए हुए बयान से भागते दिखाई देते हैं। अपनी बात पर पर्दा डालते हुए गंगवार का कहना है कि राज्य और केंद्र सरकार प्रवासी मज़दूरों के लिए उनके हिसाब से कानून बना सकती है। साथ ही मज़दूरों के लिए सरकार द्वारा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोज़गार योजना भी चलायी जा रही है,जिससे कई मज़दूरों को फ़ायदा भी हुआ है। लोकसभा में दिए हुए बयान को ढकने के लिए गंगवार ने चल रही योजनाओं की काफ़ी तारीफ़ की। ताकि मज़दूरों की मौत को लेकर उनके बयान को लोग भूल जाएं। 

मज़दूरों की जानकारी सरकार कर रही थी एकत्र 

गंगवार के बयान का विरोध करते हुए द वायर ने सूचना के अधिकार एक्ट द्वारा मज़दूरों की हुई मौतों का आंकड़ा पेश किया। जिसके ज़रिये यह भी पता चला की सरकार उन मज़दूरों की जानकारी इकट्ठा कर रही थी जिनकी मौत अपने घर जाते वक़्त रास्ते में हो गयी थी। भारतीय क्षेत्र के 18 रेलवे स्टेशन में आरटीआई की गयी थी। जिसमें भारतीय रेलवे ने बताया कि श्रमिक ट्रेनों में यात्रा करने के दौरान लगभग 80 मज़दूरों की मृत्यु हुई थी। जिसमें सबसे कम उम्र का एक आठ महीने का बच्चा और 85 साल का एक वृद्ध था। 

 ‘द वायर ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि रेलवे सुरक्षा बल को मज़दूरों की मौतों की जानकारी रखने को कही गयी थी। और फिर उन जानकारियों को रेलवे प्रभारी को पहुंचानी थी। रिपोर्ट में यह भी बताया गया जो मज़दूर ट्रेन में चढ़े थे, उनमें से कुछ लोगों में पहले से ही कोरोना के लक्ष्ण थे। कुछ मज़दूरों की मृत्यु इसलिए हो गयी क्यूंकि उन्हें सही वक़्त पर इलाज नहीं मिला था। हालाँकि अभी तक सभी भारतीय रेलवे स्टेशन ने मज़दूरों की मौत की पूरी जानकारी आरटीआई के बाद भी नहीं दी है। 

तकरीबन 1000 मज़दूरों की हुई थी मौत 

स्वतन्त्र शोधकर्ताओं के एक ग्रुप ने बताया कि 19 मार्च से 4 जुलाई के बीच लगभग 1000 मज़दूरों की मौत हुई थी। जिनके मरने की वजह कोरोना महामारी से ज़्यादा लॉकडाउन में बढ़ती समस्याएं थीं। इसकी जानकारी सार्वजनिक हित टेक्नोलॉजिस्ट थीजेश जी. एन , सामाजिक कार्यकर्ता और शोधकर्ता कनिका शर्मा और जिंदल ग्लोबल स्कूल ऑफ़ लॉ के सहायक प्रोफेसर अमन ने एकत्र की थी।  

        मरने की वजहमरने वालों की संख्या ( 4/7/ 2020 ) तक
भूख और आर्थिक संकट          216
इलाज की कमी          77 
सड़क और ट्रेन के हादसें         209
श्रमिक ट्रेन में हुई मौतें         96
आत्महत्या         133
क्वारंटाइन केंद्र में हुई मौतें         49
लॉकडाउन से जुड़े अपराध        18
पुलिस बर्बरता         12
शराब वापसी संबंधित        49
थकावट          48
अवर्गीकृत लोग       65
कुल लोगों की संख्या      971 

इसके आलावा 133 लोगों ने महामारी के डर, अकेलापन , कहीं न जाने पाने की वजह से आत्महत्या कर ली थी।

सरकार द्वारा बड़ी ही लापरवाही से यह कह देना कि उन्हें जान गवाएं गए मज़दूरों की जानकारी है ही नहीं, जुमला सा लगता है। इतना ही नहीं कुछ टीवी चैनल इस बात का समर्थन करते हुए अपने चैनलों पर यह खबर चलाते हैं कि मज़दूरों की मौतों की खबर बस एक अफ़वाह थी। यहां सवाल प्रशासन, केंद्र सरकार, राज्य सरकार और उन सभी लोगों पर उठता है जो यह कहते हैं कि वह महामारी के दौरान मज़दूरों और लोगों को राहत पहुँचाने के लिए काम कर रहे थे या हैं। यहां सरकार मृत मज़दूरों के परिवारों को मुआवज़ा देने से डर रही है और बहाने बना रही है। सरकार यहां बस अपनी ज़िम्मेदारियों से भागती दिखाई दे रही है। क्या सरकार की ज़िम्मेदारी सिर्फ योजनाएं और बयान देने तक ही सीमित हैं ? इस बात पर कौन ध्यान देगा की लोगों को उन योजनाओं से लाभ मिल रहा है या नहीं ? या फिर जिस तरह से मज़दूरों की मौत को सरकार ने नकार दिया वैसे ही वह और समस्यांओ को भी ऐसे ही नज़रअंदाज़ करती रहेगी।  

 

(दिया हुआ डाटा द वायरसे लिया गया है)