“मैडम! इस गाँव में जवान, बूढ़े, महिलाओं की बात छोड़िए यहाँ 15 साल के बच्चे भी शराब और ड्रग्स के आदी हो चुकें हैं। अगर हम प्रतिशत में बात करें तो 90 प्रतिशत लोग शराब का सेवन करते हैं। पूरे गाँव में कई जगह कच्ची शराब बिकती है, वो भी सस्ते दाम पर। यह शब्द थे 22 वर्षीय जयपाल के।”
बात 29 अक्टूबर की है जब मैं अपने ऑफिस की तरफ से हरियाणा राज्य के जींद जिला के एक गाँव कशिन्दु में द जेंडर लैब की बतौर रिफ्रेशर ट्रेनर के रूप में गई हुई थी। ट्रेनिंग के दौरान दो घंटे के लिए इस गाँव में लड़कियों के साथ रिपोर्टिंग करने जाने का मौका मिला। लड़कियों से बातचीत में पता चला की कशिन्दु गाँव में शराब की बहुत बड़ी समस्या है। बच्चे, बूढ़े और जवान सब शराब की लत में बुरी तरह से फंस चुके हैं।
खैर…हम गाँव पहुंचे संस्था की लड़कियों ने रिपोर्टिंग शुरू की, मैं भी उनके सपोर्ट में उनके साथ थी। गाँव का मंजर अजीब था ज्यादातर पुरुष हमें शराब के नशे में झूमते हुए दिखे। बड़ी-बड़ी आँखें शराब के नशे की लालिमा से भरी हुई थी। देखने में डर लग रहा था। हम गाँव में चलते जा रहे थे कि कोई महिला मिले तो हम उनसे बात करें। अचानक एक व्यक्ति ने पूछ ही लिया, मैडम! किस चीज का सर्वे कर रही हैं? मैंने अपना परिचय दिया और कहा कि मैंने सुना है इस गाँव में शराब का कारोबार बहुत ही ज्यादा मात्रा में होता है? फिर क्या था बोलना शुरू हुए तो चुप ही नहीं हुए।
उन्होंने हमें बताया कि कशिन्दु गाँव की आबादी लगभग 5000 हजार है जिसमें15 शराब के ठेके हैं, जो चोरी छुपे चलते हैं। जब उनसे सवाल किया गया कि शराब बनती कहाँ हैं? वह तपाक से बोल पड़े मैडम! लोगों के घरों में चोरी छुपे बनती हैं। तभी तो 40 रूपये में एक पैकेट शराब मिलती है। लोगों को यह सस्ती भी लगती है।
इतने सस्ते दाम में मिलने के चलते लोग पैसा कहीं न कहीं से जुगाड़ ही लेते हैं। यही वजह है कि बच्चे भी इसकी गर्त में डूबते चले जा रहे हैं। यहाँ किसी को कोई रोंकने वाला नहीं है। कहने का मतलब कि हर कोई जानता है कि शराब के नशे की गर्त में पूरा गाँव डूब रहा है लेकिन छोड़ना कोई नहीं चाहता।
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एक महिला ने अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि उनके पति हर रोज शराब पीकर आते हैं और उनके साथ शारीरिक मानसिक हर तरह का शोषण करते हैं। उनकी जिन्दगी नरक हो चुकी है। इस खौफ में उनके छोटे-छोटे बच्चे भी जी रहे हैं। बच्चों की स्कूली शिक्षा भी बाधित हो रही है। जब वह कहीं आवाज उठाती हैं तो उन्हें और भी हिंसा झेलनी पड़ती है। लॉकडाउन के समय महिलाओं के साथ हो रही हिंसा जब बर्दास्त से बाहर होने लगी तो महिलाओं ने आवाज़ उठाया लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी।
हम थोड़े आगे बढ़े तो धूप सेंकते कुछ महिलाओं का झुंड दिखा। महिलाओं से हमने इस पर बात करने की कोशिश की। पहले तो वह बोलना नहीं चाहती थी उन्हें डर था कि वह शिकायत करेंगी तो यह बात उनके घर के मर्दों को पता चलेगी तो उन्हें दिक्कत हो सकती है। या पुलिस को सूचना मिली तो वह उनके घर आ धमकेंगे। कुछ देर बात करने पर वह कहने लगी कि वह चाहती हैं कि इस गाँव से शराब का ठेका हट जाये लेकिन ऐसा नहीं हो रहा। महिलाओं ने यह भी बताया कि उन्होंने शराब छुड़वाने के लिए पुरुषों को शराब छुड़ाने की दवाएं भी दी पर इसका असर कुछ ही दिन देखने को मिला है। जब मर्दों ने शराब पीना ही नहीं छोड़ा तो शराब की लत और बढ़ती गई।
महिलाओं ने आगे बताया कि लॉकडाउन में पुरुषों के पास दो ही काम थे। एक तो पैसे न होने पर दूसरों के घरों में चोरी करना और शराब पीकर महिलाओं को प्रताड़ित करना। लगभग सत्तर वर्षीय एक बूढी महिला ने घूंघट उठाकर बोलना शुरू किया। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन में यहाँ की महिलाएं पूरी तरह से घरों में कैद थी।
चूल्हा-चौका करना और शाम होते ही शराब पीकर आये पुरुषों की बाते सुनना इसके अलावा कोई काम नहीं था। आवाज़ उठाये भी तो कहाँ जाएँ? इसलिए उनकी यही मांग है कि शराब का ठेका हटवाया जाये। छोटे बच्चों का झुंड जो हमारे साथ ही घूम रहा था मानों उन्हें हमसे कोई उम्मीद हो। उसमें से एक लड़की ने कहा दीदी हमने सुना है गाँव या स्कूल से एक किलोमीटर दूरी तक शराब का ठेंका होना ही नहीं चाहिए पर हमारा तो पूरा गाँव ही शराब के ठेके से घिरा है। और गाँव के लोग उसकी लत में हैं। जिससे हमारी पढ़ाई पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। यहाँ के सारे बच्चे पढ़ना चाहते हैं पर क्या करें? बच्चे ने ऊँगली दिखाकर ठेके के तरफ इशारा करते हुए कहा दीदी वह देखिए वह जो बड़ी सी बिल्डिंग दिख रही है वहां भी कई घरों में शराब मिलती है। हम स्तब्ध थे हमारे पास कोई शब्द नहीं था कि जब यहाँ के बच्चे इतने जागरूक हैं तो माँ-बाप क्यों नहीं?
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युवा जयपाल से जब हमने पूछा की आप युवा हैं क्या आप नहीं चाहते कि इस गाँव से शराब का ठेका हट जाये? एक युवा होने के नाते क्या आपने कोई पहल की है? जयपाल ने मुस्कुराते हुए कहा मैडम! हम क्या करें, युवा होने के नाते एक बार एक संस्था से मिलकर पहल की लेकिन सफल नहीं हुआ। लोग उल्टा ही कीचड़ उछालते हैं कि अपने घर में तो शराब बंद नहीं करवा पा रहे चले हैं हमें समझाने। ऐसे में वह क्या करें। एक लगभग 55 वर्षीय अंकल की तरफ से इशारा करते हुए उन्होंने बताया कि यह भी शराब बेचते हैं। जब हमने उन अंकल से बात कि तो उन्होंने कहा कि वही उनकी रोजी-रोटी है। और इस गाँव में उनके इतने पीने वाले ग्राहक हैं कि वह दुकान बंद भी कर देंगे तो दुबारा से खोलना पड़ेगा।
हेल्थ साइट की 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत की लगभग 30 प्रतिशत आबादी नियमित रूप से शराब का सेवन करती है। अगर सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की बात करें तो यहां शराब पीने की लीगल उम्र 25 साल है। इसके बावजूद भारी संख्या में लोग 25 बल्कि 18 की उम्र से पहले ही शराब पीना शुरू कर देते हैं। नशे के खिलाफ काम करने वाली और शराब पीकर काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन एनजीओ फॉर द ड्रग ड्राइविंग (सीएडीडी) द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वे से पता चलता है कि 25 साल की उम्र से नीचे के 88% से अधिक युवा अवैध रूप से शराब का सेवन करते हैं या खरीदते हैं। सर्वे के अनुसार, युवाओं में 18 वर्ष की आयु से पहले ही शराब का सेवन करने की लगभग 23% (2,310) घटनाएं सामने आती हैं। अफसोस की बात ये है कि गैरकानूनी रूप से शराब पी रहे इन बच्चों के पेरेंट्स इस बात से अनजान हैं।
नरेश प्रधान के चाचा जयपाल ने बताया कि इस गाँव में 48 लाख का शराब का ठेका हुआ है। शराब के छोटे- छोटे ठेके तो कई सारे हैं। उन्होंने इसका विरोध किया लेकिन कुछ हो नहीं पाया है। वह प्रयास कर रहे हैं गाँव शराब मुक्त हो जाये।
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