खबर लहरिया Blog असम के डिब्रूगढ़ में बना पहला गौशाला अस्पताल, फिर भी “गाय माता” की स्थिति दयनीय

असम के डिब्रूगढ़ में बना पहला गौशाला अस्पताल, फिर भी “गाय माता” की स्थिति दयनीय

असम के डिब्रूगढ़ में पहला गौ शाला अस्पताल खोला गया है। 23 नवंबर को गोअष्टमी के दिन गौशाला का उद्घटान किया गया। जिसका नाम सुरभी आरोग्य शाला रखा गया। यह पूर्वोत्तर भारत में खोला जाने वाला पहला गौशाला अस्पताल है। श्री गोपाल गौशाला के प्रबंधक निर्मल बेदीया न कहा कि अस्पताल 30 किमी. के दायरे में सेवाएं प्रदान करेगा।

17 लाख लागत में बना अस्पताल 

निर्मला बेदिया का कहना है कि गौशाला अस्पताल बनाने में लगभग 17 लाख रुपयों की लागत आयी है। उन्होंने बताया कि इस नए स्थापित गौशाला में 368 गायें हैं। उनका कहना है कि वह इन गायों की देखरेख के साथ अन्य गायों को भी पनाह देंगे। ताकि गौसेवा के माध्यम वह समाज की सेवा भी कर सकें। 

गाय हमारी माता है” कितना सच और झूठ

First Gaushala Hospital built in Dibrugarh

भारत में गाय को माता का दर्जा दिया जाता है। ज़्यदातर लोग गाय को गाय माताकहकर भी पुकारते है। माता का दर्जा हमेशा से ही सबसे ऊँचा और पूजनीय माना गया है। असम में गायों के लिए गौ अस्पताल की शुरुआत करना काफी अच्छी पहल है। लेकिन हम इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते कि हम गाय को जिस तरह का दर्जा देने का दावा करते हैं ,वह दर्जा हमने गाय को कभी उसी प्रकार से दिया ही नहीं। भारत में रोज़ाना कितनी ही गायें ऐसी हैं, जिनके रहने के लिए कोई गौशाला नहीं है। वह आपको आमतौर पर आपकी गलियों में घूमती हई नज़र आएँगी। 

गलियों में घूमते समय कभी-कभार कोई उसे रोटी खिला देता है। लेकिन हर दिन उसे खाने को रोटी नहीं मिलती। रोटी ना मिलने से वह कई बार प्लास्टिक भी खाती है, जो उसकी मौत का भी कारण बन जाती हैं। लेकिन इन गलियों में घूमने वाली गायों की तरफ कोई ध्यान नहीं देता। तब यह गायें किसी की माता नहीं होतीं। 

बुंदेलखंड में भूख से हुई कई गायों की मौत

First Gaushala Hospital built in Dibrugarh

न्यूज़ क्लिक की अप्रैल 2020 की रिपोर्ट में बांदा के किसान नेता प्रेम सिंह कहते हैं कि इस साल जनता कर्फ्यू और लॉकडाउन के दौरान तकरीबन 60 प्रतिशत गायों की मौत हुई है। इनमें मुख्य रूप से सड़कों पर घूमने वाली गायें थीं, जिनकी मौत चारा-पानी की कमी और भुखमरी से हुई।

गायों की मौत से जुड़े कुछ तथ्य

लाइव हिन्दुस्तान की साल 2019 की रिपोर्ट के अनुसार यूपी के  बाराबंकी, रायबरेली, हरदोई, जौनपुर, आजमगढ़, सुलतानपुर, सीतापुर, बलरामपुर और प्रयागराज में गौशालाओ में लापरवाही के चलते बहुत से गायों की मौत हो गयी थी। हालाँकि, गायों की संख्या को कोई भी खुलासा नहीं किया गया था। जिसके बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश के अनुसार सभी दोषियों पर गोधाम अधिनियम और पशु क्रूरता निवारण के तहत कार्यवाही की गयी। 

First Gaushala Hospital built in Dibrugarh

इंडियन एक्सप्रेस की 25 फरवरी 2020 की रिपोर्ट में बताया गया कि यूपी में साल 2019 में 9,261 गायों की मौत हुई थी। जिस पर यूपी के पशुपालन मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी का कहना था कि“सारी मौतें प्राकृतिक थी, जिसकी वजह से किसी पर भी कोई कार्यवाही नहीं की गयी।” साथ ही पशुपालन मंत्री द्वारा यह भी कहा गया कि उनके द्वारा गायों की हुई मौत का पोस्टमार्टम नहीं करवाया गया है। 

इससे यह सवाल खड़ा होता है कि जब पोस्टमार्टम कराया ही नहीं गया तो पशुपालन मंत्री द्वारा किस तथ्य पर यह कहा गया कि गायों की मौत प्राकृतिक थी।

गायों के रहने लिए नहीं है ज़्यादा गोशालाएं

वाशिंगटन पोस्ट की 2018 की रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में तकरीबन 5 मिलियन गाये सड़कों और गलियों में घूमती और रहती हैं। उनके रहने के लिए ना तो कोई गौशाला है और ना ही उनके इलाज के लिए कोई गौ अस्पताल। एक शोध में पाया गया कि भारत में सिर्फ 1800 गौशाला है, जो पंजीकृत हैं। क्या 1800 गौशालाएं 5 मिलियन गायों के लिए काफी हैं

गाय के नाम पर राजनीति

हमारे देश में गाय के नाम पर भी राजनीति की जाती हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच की 2019 की रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले तीन सालों में  गायों के नाम पर, गायों की सुरक्षा करने वाले समूह ने तकरीबन 44 लोगों की हत्या की है। मरने वालों में अधिकतर मुस्लिम डेरी किसान और वह लोग थे, जिन पर गाय का मांस खाने का शक था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना को देखते हुए कहा कि गाय के नाम पर इस तरह से किसी की हत्या कर देना, मान्य नहीं है। 

वहीं आर्काइव इंडिया ने 2017 की रिपोर्ट में बताया कि तकरीबन 25 लोगों को गाय के नाम पर मारा गया था। सिर्फ इस संदेह में कि उस व्यक्ति ने गाय का मांस खाया होगा।

गाय के लिए कोई काम या तो सामाजिक सेवा के दृष्टिकोण से किया जाता है या तो राजनीति करने के लिए। पूर्वोत्तर भारत में गौ अस्पताल का खुलना सकारात्मक संदेश देता है। लेकिन आंकड़ों में गायों की स्थिति दयनीय हैं। क्या सरकार का यह दायित्व नहीं कि जिसे वह गाय माता का दर्ज़ा देती है, उनके लिए और भी गौशालाएं बनवायी जाएं? उनकी देख-रेख के लिए लोगों को रखा जाए?