फतेहपुर जिले के अढावल घाट में सालों से एक पुल मौजूद है। यह पुल पीपा का पुल के नाम से प्रसिद्ध है। लोग इसे अपने आवागमन के लिए इस्तेमाल करते हैं। बाढ़ के समय जून के महीने में यह पुल तोड़ दिया जाता है और लोग स्टीमर के सहारे आना-जाना करते हैं।
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शांति देवी कहती हैं कि उन्हें दो घंटे इंतजार करना पड़ता हैं ताकि वह नाव या स्टीमर के सहारे उस पार जा सकें। नाव के एक हादसे के बाद से ही लोगों की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं कि कहीं नाव जलधारा में डूब न जाए। इसलिए जब तक वे नाव में बैठे रहते हैं, उन्हें चिंता रहती है और उन्हें अपनी जान हाथों में लेकर स्टीमर के सहारे उस पार जाना पड़ता है।
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ठेकेदार विनोद सिंह कहते हैं कि हर साल इसका ठेका होता है और लोग पुल निर्माण के लिए 8 महीने तक काम करते हैं। पुल तोड़ने का आदेश 15 जून को दिया जाता है, लेकिन इस साल बारिश कम होने के कारण पुल का काम पूरे जून तक ज़ारी रहा है। अब बरसात शुरू हो रही है और बाढ़ की संभावना है, इसलिए पुल को तोड़कर एक तरफ लगा दिया जाता है। जब तक बाढ़ समाप्त नहीं हो जाती, कुंवार के महीने के बाद नए सिरे से पुल बनाना शुरू हो जाता है और यह स्टीमर द्वारा चालित होता है। यह स्टीमर ठेकेदार द्वारा प्रदान की जाती है और निःशुल्क होती है।
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