खबर लहरिया National बांदा: जल संकट से मिली पानी बचाने की सीख

बांदा: जल संकट से मिली पानी बचाने की सीख

बांदा जिले के बबेरू ब्लॉक के अन्तर्गत आने वाले अंधाव गांव में ‘खेत का पानी खेत में- गांव का पानी गांव में’ अभियान के तहत जल संरक्षण के लिए नया प्रयोग शुरू किया गया है। शोध छात्र और जल संरक्षण के लिए काम करने वाले पर्यावरण कार्यकर्ता रामबाबू तिवारी ने बताया कि गांव खेतों में मेड़ बनाकर बरसात के पानी को इकट्ठा करने के लिए काम किया जा रहा है।

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किसान देव नारायण ने बताया कि खेत में बरसात का पानी भर जाने के बाद वे लोग धान की खेती करने लगे है। पहले इस इलाके के लोग धान नहीं बो पाते थे। कारण था कि बरसात का पानी खेत में रुकता नहीं था। जो पानी बरसता था, वह बहकर नालों के ज़रिये यमुना में चला जाता था। मेड़ चढ़वाने से अब खेतों में बरसात का पानी रुकने लगा है। इससे अंधाव गांव में भी धान बोया जाने लगा है क्योंकि खेतों में रुके पानी की वजह से ज़मीन में नमी रहती है। यह नमी बनाए रखने के लिए मेड़ों पर पेड़ लगाने की भी योजना है जिससे किसानों को फल भी मिलते हैं।

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किसान राजाभइया कहते हैं कि बुन्देलखण्ड भीषण गर्मी और पानी की कमी से जूझने वाला क्षेत्र मना जाता है। जब से उनके गांव में खेतों में मेड़ और मेड़ में पेड़ का अभियान चला तो कई तालाबों की साफ-सफाई हुई तालाब सुरक्षित हुए।  वहां पर पेड़ लगे और खेतों में भी मेड़बंदी बांध कर लोगों ने पानी रोका है। अब बारिश का पानी यमुना नदी में बहकर नहीं जाता इसलिए पहले की अपेक्षा दुगनी पैदावार होती है और लोग धान की बुवाई भी धड़ल्ले से करते हैं। साथ ही जिनके पास ज़्यादा खेती है तो वह चौड़ी मेड़ बनाकर मेड़ो में फलदार पेड़ और शीशम,सागवान जैसे पेड़ लगाते हैं जिससे उनकी आय भी बढ़ती है और खाने को फल भी मिलता है। मेड़ में पेड़ इसलिए लगाया जाता है ताकि मेड़ में कटान ना हो बारिश के कारण। गांव में और भी किसानों से हमने जाना तो लोगों ने बताया कि उनको जानकारी नहीं है कि रामबाबू तिवारी पानी के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन उनके गांव में काफी मेड़बंदी ग्राम पंचायत से बंधी है। उनके गांव में काफी बदलाव हुए हैं।

 

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