यूपी के बांदा जिला के किसान धान खरीद को लेकर काफ़ी परेशान है। जिसे लेकर उन्होंने अतर्रा मंडी के केंद्र प्रभारी पर टोकन गड़बड़ी का आरोप लगाया है। 21 दिसंबर 2020 , सोमवार को भड़के हुए किसानों ने टोकन में गड़बड़ी और धान खरीद में देरी को लेकर केंद्र प्रभारी के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया। मामले को देखते हुए जिला के एसडीएम जेपी यादव द्वारा किसानों को टोकन में गड़बड़ी की जाँच और धान खरीद में तेज़ी लाने का भरोसा दिलाया गया।
1 नवंबर 2020 से धान खरीद के लिए मंडियां खुली हुई है। लेकिन धान बेचने आए किसानों का आरोप है कि जब भी वह खरीद केंद्र में धान बेचने के लिए जाते हैं तो उन्हें उसके लिए बहुत लंबा इंतजार करना होता है। यहां तक की कई बार उन्हें बिना धान बेचे हुए ही घर वापस जाना पड़ता है क्योंकि उनका नंबर ही नहीं आता। धान खराब होने के डर से मज़बूर किसानों को कम दाम में अपने धान को बेचना पड़ता है। इसमें मुनाफ़ा सिर्फ व्यापारी को होता है जो किसान से कम दाम में उसका धान खरीदता है। कम मिले पैसों से ही किसान को अगली फसल तक अपना और अपने परिवार का गुजारा करना पड़ता है।
धान बेचने आए किसानों का यह है कहना
बांदा के अतर्रा मंडी में धान बेचने आये ख़्महौर गांव के किसान लखनलाल और सुरेश कुमार का कहना है कि मंडी में धान बेचने के लिए उन्हें लगभग 1 हफ़्ते तक ठंड में इंतज़ार करना पड़ता है। लेकिन फिर भी उनके धान तौलने का नंबर नहीं आता। उनका कहना है कि बहुत मेहनत से वह धान उगाते हैं और उसे मंडी लेकर आते हैं। खरीद केंद्र में किसानों के धान हफ़्तों तक बिना खरीद के पड़े रहते हैं।
आऊ गांव के किसान रमेश का कहना है कि पहले धान बेचने के लिए टोकन नहीं लेने पड़ते थे। लेकिन इस बार से उन्हें धान बेचने के लिए पहले टोकन लेना होता है, जिससे उन्हें काफ़ी दिक्कत होती है। उनका कहना है कि पहले तो टोकन लेने के लिए उन्हें मंडी के चक्कर लगाने पड़ते हैं और फिर धान बेचने के लिए हफ़्तों तक इंतज़ार भी करना पड़ता है। कई बार टोकन मिलने के बावजूद भी उनके धान को नहीं तौला जाता। वह कहते हैं कि धान मंडी में लेकर नहीं आते तो उसे जानवर खा जाते हैं। उनका कहना है कि मंडी में सरकारी कीमत पर उन्हें धान की अच्छी कीमत मिल जाती है लेकिन धान बेचने में उन्हें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
धान खरीद के लिए रुकने पर होता है दैनिक खर्च
किसानों का कहना है कि कड़कती ठंड में उन्हें मंडियों में धान बेचने के लिए रुकना पड़ता है। रातभर जागकर उन्हें अपने धान की निगरानी करनी पड़ती है ताकि कोई जानवर उसे ना खा जाए। मंडियां खुली जगह पर होती है, जहां किसी भी तरह का घेराव नहीं होता। जिसकी वजह से मंडी में रुके किसानों को पूरी रात जागकर अपने धान पर नज़र रखनी पड़ती है।
रुकने के लिए वह अपने घरों से खाना–पीना, कंबल आदि चीज़ों को लेकर आते हैं। रोज़ाना सुबह के नाश्ते , चाय और भोजन में उनके दो सौ से तीन सौ रुपये खर्च होते हैं। कई किसान जो अपना ट्रेक्टर लेकर आते हैं, वह उसी में रहते हैं। धान बेचने आये किसानों का यह भी आरोप है कि खरीद केंद्र द्वारा बड़े व्यापारियों का माल बिना किसी नंबर के खरीदा जाता है। लेकिन उन्हें इंतज़ार कराया जाता है। किसानों का यह भी कहना है कि कई बार केंद्र प्रभारी द्वारा धान को अच्छा ना बताकर उन्हें वापस भेज दिया जाता है।
मंडी सहायक का धान खरीद को लेकर यह है कहना
मण्डी सहायक अनिल कुमार बताते है कि अतर्रा मंडी के अंतर्गत 38 केन्द्र आते हैं और इस समय सभी चालू हैं। मण्डी के अंदर कुल 6 तौल केन्द्र है और हर रोज नियम के अनुसार 300 क्यूंटल तौल होना चाहिए। लेकिन इतना नहीं हो पाता। वहीं वह किसानों पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि कुछ किसान बिना टोकन के धान बेचने आ जाते हैं, जिसकी वजह ज़्यादा दिक्कते होती हैं। लेकिन धान की तौल से किसानों का क्या संबंध? यह जिम्मेदारी तो केंद्र प्रभारी की है फिर उन पर सवाल क्यों नहीं उठाया जा रहा?
धान खरीद को लेकर की गयी रिपोर्टिंग
8 दिसंबर 2020 को खबर लहरिया द्वारा धान की खरीद और किसानों की समस्याओं को लेकर रिपोर्टिंग की गयी थी। जिसमें गांव तेंदुही के किसान सुरेश कुमार गर्ग का आरोप है कि केंद्र अधिकरियों द्वारा मनमाने तरीके से धान को तौला जाता है। व्यपारियों के धान को सही तरह से तोला जाता है और किसानों के धान को तौलते समय उसमें कमियां निकाली जाती है। जिनकी पहचान होती है सिर्फ उन्हीं को लाभ होता है।
आऊ गांव के किसान आनंद कुमार का कहना है वह 16 नवंबर 2020 से मंडी में है और अपने धान बेचने के नंबर का इंतज़ार कर रहे हैं। केंद्र अधिकारी द्वारा कहा जाता है कि जब गोदाम खाली होगा तो धान की तौल होगी। वह कहते हैं धान बेचने के बाद यह भी नहीं पता होता कि पैसे कब तक आएंगे।
अतर्रा मंडी के प्रभारी का यह है कहना
अतर्रा धान ख़रीद केंद्र के प्रभारी अजय यादव का कहना है कि रोज़ाना मंडी में 30 से 40 क्यूंटल धान की तौल होती है। जितने किसान मंडी में आते हैं उनके धान की तौल वह कर देते हैं। जबकि नियम यह कहता है कि प्रतिदिन 300 क्यूंटल धान की तौल होनी चाहिए। जो कि मौजूदा धान की तौल की आधी भी नहीं है। वहीं प्रभारी अजय यादव द्वारा किसानों की समस्याओं को नकारते हुए कहा गया कि किसानों को कोई परेशानी नहीं है और सबको एक बराबर महत्व दिया जाता है।
अगर केंद्र प्रभारी द्वारा सभी किसानों और व्यापारियों को समान महत्व दिया जा रहा है तो किसानों को धान बेचने के लिए हफ़्तों तक इंतज़ार क्यों करना पड़ता है? जबकि किसानों को छोड़कर कोई भी व्यापारी इतना लंबा इंतज़ार नहीं करता। अगर प्रतिदिन 300 क्यूंटल धान की तौल होनी चाहिए तो वह क्यों नहीं हो रही है? किसानों को मंडियों में भी राहत नहीं है तो वह कहां जाकर अपना धान बेचें?