महिलाओं के साथ होती हिंसाओं का ज़िम्मेदार कौन है? उसका पति, उसका ससुराल, उसका मायका या वह लोग जो समाज में झूठी इज़्ज़त और नाम का हवाला देकर आपको चुप हो जाने को कहते हैं? कौन है वो?
घरेलू हिंसाओं के बढ़ते मामलों का उत्तरदायी कौन है? यह सवाल जितना गंभीर है इसका जवाब उससे ज़्यादा संकीर्ण है और वह है समाज और समाज की रूढ़िवादी विचारधाराएं, नियम, रीति-रिवाज़ जिन्होंने समय के साथ बदलना नहीं सीखा।
एक महिला के साथ उसका पति मारपीट करता है, दहेज़ के नाम पर उसे ज़िन्दा जला दिया जाता है, घर की चार दीवारी से बात को बाहर नहीं निकलने दिया जाता, मायके वाले भी सहते रहने को कहते हैं, कहतें हैं वही तुम्हारा घर है, और यह सब कुछ किसलिए? यह सब बस इसलिए कि कहीं समाज में यह बात सामने आ गयी तो समाज क्या कहेगा? समाज के सामने बदनामी हो जायेगी। समाज में इज़्ज़त नहीं रहेगा। सिर उठाकर चल नहीं पायेगा। सब थू-थू करेंगे।
लेकिन ये समाज है कौन? कौन रहता है इसमें? तुम नहीं रहते क्या इस समाज में? कहीं ये तुम खुद ही तो नहीं, इज़्ज़त का हवाला देते हुए सवाल उठाने वाले? कहीं वो तुम खुद ही तो नहीं तो जो कह रहा है कि चुप हो जाओ?
समाज में बदनामी करने वाला व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि वो तो हम खुद है। हमने खुद इन क्षीण बातों का आगे रखते हुए महिलाओं को हिंसा सहते रहने की बात समझाई है। यह समाज तो मैं, तुम और हम ही है न ?
फिर महिलाओं के साथ होती इन हिंसाओं का ज़िम्मेदार कौन है? उसका पति, उसका ससुराल, उसका मायका या वह लोग जो समाज में झूठे इज़्ज़त और नाम का हवाला देकर आपको चुप हो जाने को कहते हैं? कौन है वो?
अब समाज से परे इस समस्या को लेकर आती है सरकार की ज़िम्मेदारी और उसका रोल।
देश में बढ़ती घरेलू हिंसाओं को देखते हुए साल 2005 में घरेलू हिंसा कानून बनाया गया था ताकि घरेलू हिंसाओं के मामले पर सख्ती से कार्यवाही करते हुए महिलाओं पर होती हिंसाओं को रोका जा सके। यह साल 2022 चल रहा है। 2005 से लेकर अभी तक हिंसाओं के मामले व संख्या में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। कानून व उससे होने वाली सज़ाओं को लेकर आरोपियों में भय नज़र नहीं आता।
जो घरेलू हिंसाएं बड़ी राजधानियों या शहरों में होती है उन्हें कहीं न कहीं कानून व पुलिस का साथ मिल जाता है। वह मामले रिकार्ड्स में दर्ज़ कर दिए जाते हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों व कस्बों में होती घरेलु हिंसाओं की आवाज़ तो चौखट के बाहर तक नहीं जा पाती। इस भय से की समाज में उनके घर की बदनामी होगी। गाँव में कोई इज़्ज़त नहीं करेगा। बस यहीं से शुरू होती है, ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले घरेलू हिंसाओं की अनदेखी।
इन घरेलू हिंसाओं के कई कारण हैं जो खबर लहरिया की रिपोर्ट में सामने आये। अमूमन इन मामलों में ससुराल वालों द्वारा महिला को दहेज़ के लिए प्रताड़ित करना, घर के चिराग के नाम पर महिला से लड़के की मांग करना, लड़का पैदा न होने पर शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न देना। महिलाएं चाह कर भी इन प्रताड़नों से नहीं निकल पातीं। उनके सामने उनके आगे के जीवन को लेकर भय और सामाजिक रूढ़िवादी विचारधारों की बंदिशे लगी होती हैं जिसे वह तोड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं। शायद इसलिए क्योंकि उनका मस्तिष्क प्रताड़नाओं से इतना घायल हो चुका होता है कि वह और कुछ करने की हिम्मत ही नहीं कर पाता।
इस आर्टिकल के ज़रिये हम खबर लहरिया द्वारा यूपी बुंदेलखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के साथ हुई घरेलू हिंसाओं के कुछ मामलों के बारें में बात करेंगे।
ये भी देखें – वाराणसी: दहेज़ के लिए ससुराल वालों ने जान से मार दिया। जासूस या जर्नलिस्ट
घरेलू हिंसाओं से जुड़े ग्रामीण मामले
– नशे में पति करता था मारपीट
खबर लहरिया की हालिया 19 सितंबर की वीडियो रिपोर्ट में बताया गया कि किस तरह बाँदा जिले में रहने वाली महिला के साथ उसके पति द्वारा रोज़ाना मारपीट की जाती है। पति रोज़ दारु के नशे में उसे पीटता है। वह मेहनत-मज़दूरी करके जो पैसे कमाती है उसे भी ले लेता है। पांच बच्चे हैं और पति के दारू की लत की वजह से बच्चों के लिए कुछ नहीं बचता।
पति की रोज़-रोज़ की मारपीट से परेशान होकर वह मायके चली गयी। एसपी कार्यालय पहुँच कर उसने अपने पति के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाई और पति को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर उसे सज़ा दिलाने की मांग की।
अब वह बिना किसी हिंसा या डर के अपने बच्चों का पालन-पोषण मेहनत, मज़दूरी करके करना चाहती है।
ये भी देखें – बांदा: 9 महीने की गर्भवती पत्नी को घर से निकाला-आरोप
– दहेज़ के लिए बहु को मारने का आरोप
18 सितंबर, 2022 को चित्रकूट जिले के भरतकूप थाने के अंतर्गत आने वाले कस्बे में ससुराल वालों पर अपनी बहु को फांसी पर लटका मारने का मामला सामने आया। मृतिका के भाई ने खबर लहरिया को बताया कि 5 जुलाई 2022 को ही उसने अपनी बहन की शादी बड़े ही धूमधाम से की थी। अपनी हैसियत से बढ़कर दान-दहेज़ दिया था लेकिन ससुराल वालों का पेट नहीं भरा।
आये दिन ससुराल वाले उसकी बहन के साथ मारपीट, गाली-गलौच कर उसे प्रताड़ित करते। वह दहेज़ में मोटरसाइकिल की मांग करते रहे। घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी तो ससुराल वालों की इस मांग को वह लोग पूरा नहीं कर पाए।
आरोप लगाते हुए कहा कि आखिर में ससुराल वालों ने उसकी बहन को मारकर फांसी पर लटका दिया और यह इल्ज़ाम लगा दिया कि उसकी बहन ने खुद ही फांसी लगाई है।
मृतिका ने दहेज़ व उसके साथ होती प्रताड़ना को लेकर अपने मायके में भी बताया हुआ था लेकिन उन्होंने इस बात को कभी गंभीरता से नहीं लिया। अब वह अपनी बहन के लिए न्याय की मांग कर रहें हैं।
ससुर घनश्याम की बात की जाए तो उनके अनुसार उन्होंने कभी दहेज़ की मांग ही नहीं की। मृतिका के मायके वाले उन पर गलत आरोप लगा रहें हैं।
भरतकूप के थाना प्रभारी दुर्गेश कुमार ने भी बस यही कहा कि पोस्टमॉर्टेम की रिपोर्ट आने के बाद आगे की कार्यवाही होगी।
– अपनी बच्चियों के लिए महिला सहती रही हिंसा
अम्बेडकर नगर के कटेहरी ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले प्रतापपुरा चमुर्खा में रहने वाली अनीता की दो लड़कियां है। लगभग 22 साल पहले उसकी शादी अजीत कुमार से हुई थी। दो बेटियों के बाद अनीता का बेटा न हुआ जिसे लेकर उसका पति छोटी-छोटी बातों को लेकर उसके साथ गाली-गलौच करता। उसे मारता-पीटता। घरेलू हिंसाओं से वह तंग आ चुकी थी लेकिन फिर भी अपनी बेटी की वजह से वह यह सब सहती रही।
बेटी के साथ-साथ अनीता के सामने सबसे बड़ी समस्या आर्थिक सहायता का न होना था। पढ़ी-लिखी न होने की वजह से नौकरी करने का भी कोई जरिया नहीं था। लगभग एक साल पहले अनीता का पति घर का सारा सामान और उसके जेवर लेकर फरार हो गया तब से उसका कुछ नहीं पता। अब वही अपनी बच्चियों के लिए मज़दूरी करती है और उनका भरण-पोषण करती है।
वह अपने पति के खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज़ नहीं करना चाहती। उसकी बस यही मांग है कि पति उसे अच्छे से रखे, बच्चियों का खर्चा देखे और खाने का खर्चा दे।
महिला का यह वाक्य आज भी उसकी इस उम्मीद की तरफ इशारा करता है कि वह अपने परिवार को दोबारा से खड़ा करना चाहती। वह एक खुशहाल ज़िंदगी और बेटियों के लिए उसके साथ हुई सारी हिंसाओं को भूलने के लिए तैयार है। बस एक यही वजह है कि वह अपने पति के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज़ नहीं करा रही।
रिपोर्ट के आखिर में अभी भी एक बेहद बड़ा सवाल है, इन घरेलू हिंसाओं का ज़िम्मेदार कौन? ढीले क़ानूनी नियम? सुस्त व्यवस्था या फिर हम खुद?
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’