खबर लहरिया Blog एक आम जीवन की आशा-निराशा की कहानी

एक आम जीवन की आशा-निराशा की कहानी

जिला बांदा ब्लॉक नरैनी ग्राम पंचायत के पिपरहरी मजरा चौकिन पुरवा। यहां रहने वाले 35 वर्षीय चुन्नीलाल बताते हैं कि वह हाई स्कूल से पढ़े हुए हैं। उन्हें बचपन से पढ़ने का बहुत शौक था। वह कुछ बनना चाहते थे। जब उन्होंने हाई स्कूल पास किया तो वह बहुत ज़्यादा खुश हुए पर उनका परिवार गरीब था जिसकी वजह से उनके लिए आगे की पढ़ाई करना मुश्किल हो रहा था। इसके बावजूद भी उन्होंने जॉब के लिए फॉर्म डाला।

                                               चुन्नीलाल व उसका परिवार

उस समय हाई स्कूल पास में ही उनका कॉल लेटर आ गया। जल संस्थान में काम के लिए जब चुन्नीलाल वहां गए तो उनका इंटरव्यू भी हुआ। इसके बाद जल संस्थान वालों ने कहा कि वह बताएंगे। तब से आज तक उनका कॉल लेटर एक सपना बनकर उनके बक्से में बंद रखा हुआ है। आज तक किसी तरह की कोई खबर नहीं आई और इस समय चुन्नीलाल के घर की स्थिति बहुत ही दयनीय है।

इन सब चीजों के बाद उनका पढ़ाई करने का भी हौसला टूट गया कि क्या होगा पढ़ाई-लिखाई करके। डिग्री लेकर क्योंकि इतना पैसा भी नहीं है और नौकरी भी नहीं मिल रही है। उनके पास घूस देने के लिए पैसे नहीं है। ना इतना सोर्स है।

कुछ समय बाद उन्हें प्राइवेट सेक्टर में नौकरी मिली। उन्होंने 2 साल महोबा, बांदा और चित्रकूट जिले के न्यायालय में सीसीटीवी कैमरे की निगरानी को लेकर के काम किया। उन्हें यह काम प्राइवेट संस्था के ज़रिये मिला था। इस नौकरी से उन्हें 10 हज़ार रुपये महीना भी मिल रहा था। इसके बाद वहां से उनको महिंद्रा एजेंसी में डाल दिया गया। महिंद्रा एजेंसी में उन्होंने 1 महीने काम किया।

जब साल 2020 में लॉकडाउन लग गया तो उस दौरान कंपनी भी बंद हो गई। जो उन्होंने 1 महीने काम किया था वह वेतन भी नहीं मिला। तब से वह बेरोज़गार हैं। उनका कहना है कि गांव में भी किसी तरह की कोई मज़दूरी नहीं है। ना ही और कोई सहारा है। वहीं चैत,अगहन के महीने में कटाई और बुनाई का काम कर लेते हैं। उसी से खाने पीने के लिए गल्ला हो जाता है। कुछ कोटे में राशन मिल जाता है। कभी कभार काम मिल गया तो सब्ज़ी भाजी आ गई। अगर नहीं मिला तो हफ्तों सब्ज़ी नहीं बनती है।

मनरेगा का काम भी इस समय बरसात की वजह से बंद चल रहा है। वैसे भी मनरेगा का काम नहीं मिलता था। इस समय उनकी तबीयत भी खराब है। दवा के लिए भी पैसे नहीं है। कुछ खाने-पीने की सब्ज़ी बेचकर दवाई खरीदते हैं।

                                                 सालों पहले आया कॉल लेटर

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चुन्नीलाल की पत्नी कहतीं, बहुत सारे सपने देखे थे जब प्राइवेट जॉब मिली थी कि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाएंगे, अच्छे से खाना-पीना करेंगे और रहेंगे। खुशहाल जिंदगी जीयेंगे। जब काम था तो उसके हाथ में भी बराबर पैसा बना रहता था। उसको किसी भी तरह की दिक्कत नहीं आती थी लेकिन काम बंद होने से वह बहुत ज़्यादा निराश हैं। उसके सारे सपने टूट गए हैं। परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है।

पैसा ना होने के कारण अक्सर पति-पत्नी में झगड़े भी होते रहते हैं। वह चाहते हैं कि किसी भी तरह का कोई रोज़गार उन्हें मिल जाए। जिससे कम से कम उनको सहारा हो जाए लेकिन उन्हें हर जगह अंधेरा ही अंधेरा नज़र आ रहा है। छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर कहीं जाना भी मुश्किल हो रहा है इसलिए वह इस साल सोच रहे हैं कि भट्ठे में ही जाकर काम करेंगे।

यह कहानी सिर्फ चुन्नीलाल की ही नहीं बल्कि कई परिवारों की है। शायद आपकी भी यही कहानी है।

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