खबर लहरिया Blog चित्रकूट: महिलाओं की पहल- किचन गार्डन बनाने से खाने को मिल रही हैं हरी सब्ज़ियां

चित्रकूट: महिलाओं की पहल- किचन गार्डन बनाने से खाने को मिल रही हैं हरी सब्ज़ियां

गाँव के आदिवासी लोगों ने अपने घरों के पीछे हरी सब्ज़ियां लगाना शुरू कर दिया है। इन सब्ज़ियों के उगने से इन लोगों को सर्दियों में ताज़ी सब्ज़ी खाने को मिली जिससे ये लोग बहुत खुश हैं और पोषण युक्त आहार खाकर इनके बच्चे अब कुपोषण से बाहर निकल पा रहे हैं।

चित्रकूट जिले के गाँव अकबरपुर के मजरा नई दुनिया में आदिवासी लोग रहते हैं। यहाँ लगभग 50 घर हैं और ये सारे लोग
भरतकूप क्रेशर में काम करते हैं। पिछले साल लॉकडाउन के कारण बहुत से क्रेशर सरकार ने बंद कर दिए थे। जिसके चलते
इन आदिवासी लोगों के पास रोज़गार का कोई जरिया नहीं बचा था। इस कारण इन लोगों को काफी दिक्कतों का सामना पड़ा
था।पर अपनी परेशानी से मुक्ति पाने का इन आदिवासी महिलाओं ने एक हल निकाला। जब हम इन आदिवासी महिलाओं से
मिले तो उन्होंने हमें बताया कि इन लोगों ने अपने घरों के पीछे हरी सब्ज़ियां लगाना शुरू कर दिया है। इन सब्ज़ियों के उगने
से इन लोगों को सर्दियों में ताज़ी सब्ज़ी खाने को मिली जिससे ये लोग बहुत खुश हैं।

 

लॉकडाउन के चलते बंद हो गए थे रोज़गार के सारे ज़रिये-

श्यामा ,कल्ली ,सुवकलिया ने हमें बताया कि क्रेशर में लॉकडाउन के समय से काम बंद हो गया था और बीते साल ज़्यादातर क्रेशर बंद रहे, जो क्रेशर चल रहे थे उसमें वहां के मालिक महिलाओं एवं लड़कियों को काम नहीं दे रहे थे, क्यूंकि पुलिस ने महिलाओं को क्रेशर में काम देने पर रोक लगा दी थी। इन महिलाओं ने बताया कि क्यूंकि लॉकडाउन के समय यौन हिंसा के भी बहुत मामले सामने आ रहे थे, और एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार इस गाँव के क्रेशर में काम कर रहे पुरुषों के ऊपर भी यौन हिंसा के आरोप लगे थे जिसके चलते यहाँ कर्फ्यू जैसा महौल हो गया था और दिन-रात पुलिस अधिकारी सड़कों पर तैनात रहते थे और महिलाओं को क्रेशर में काम करने से जाने को रोकते थे। लोग चाह के भी रोज़गार ढूंढने बाहर नहीं निकल पाते थे।

ऐसे में ये आदिवासी परिवार खाने-पीने और परिवार का पेट पालने में नाकाम हो रहे थे। इन लोगों का कहना है कि घर का थोड़ा बहुत राशन जैसे गेहूं, चावल तो कोटे पर मिल जाता था लेकिन फल-सब्जी, दालें इतनी महंगी हैं कि बाज़ार से लाने के पैसे नहीं होते थे। इन लोगों ने कई बार नमक रोटी तो कभी खाना नहीं भी खा कर समय व्यतीत किया है। जो लोग मज़दूरी करते थे वो रोज़ की कमाई से थोड़ा बहुत राशन लाकर गुज़ारा करते थे, लेकिन इस गाँव की महिलाओं की मानें तो ये मज़दूर पुरुष जो कमा के लाते थे वो परिवार की रोटियों पर नहीं बल्कि अपनी शराब पर उड़ा देते थे।

परिवार को हरी सब्ज़ियां खिलाने के लिए महिलाओं ने घर में ही बनाया किचन गार्डन-

घर के ऐसे ही हालात देखकर, इन महिलाओं ने घरों में ही सब्ज़ियों की खेती करने की ठानी। गाँव की चाइल्डलाइन काउंसलर नीलू नाम की महिला ने गाँव की सभी महिलाओं को इकट्ठा कर एक दिन हरी सब्ज़ियों को घर में उगाने के फायदे बताये। उन्होंने बताया कि कैसे घर में उगी हुई सब्ज़ियां उनके लिए पौष्टिक आहार बन सकती हैं और इसे उगाने के लिए लोगों को ज़्यादा पैसे भी नहीं खर्च करने पड़ेंगे । इन लोगों के पास इतनी जगह या खेत नहीं थे जहाँ कोई खेती हो सके, तब नीलू ने इन लोगों को बताया कि छोटी सी जगह में भी ये सब्ज़ियां आराम से उगाई जा सकती हैं।

नीलू ने इन सभी महिलाओं को पालक, बैंगन, मूली, हरी मिर्च, टमाटर आदि के बीज बांटे जिसके बाद इन महिलाओं ने अपने-अपने घरों के पीछे छोटी-छोटी जगहों में इन बीजों को बोया। थोड़े ही दिनों में सब्जियां उगने लगीं और इन महिलाओं की मेहनत रंग लाने लग गयी। अब ये लोग वो सारी सब्ज़ियां खा पा रहे हैं, जो ये पहले पैसे ना होने के कारण खरीद नहीं पाते थे।

दाल- सब्ज़ी न मिलने के कारण बच्चे हो रहे थे कुपोषित-

नीलू ने हमें बताया कि सितम्बर माह में पोषण माह चलता है, इस अभियान को सरकार ने आंगनवाड़ी के तहत शुरू किया है। जब नीलू पोषण माह के चलते सर्वे के लिए इस गाँव में आयीं तो उन्होंने देखा कि यहाँ के बच्चे बहुत बच्चे कुपोषित हैं, जब उन्होंने लोगों से उनके खानपान के बारे जानकारी ली तब यहाँ के लोगों ने बताया कि पैसे न होने के कारण उन्हें दाल खाये हफ़्तों बीत जाता है और हरी सब्जी इतनी महंगी होने के कारण तो बिलकुल नहीं खा पाते, और अगर कभी खायी भी तो सिर्फ आलू की सब्ज़ी।
लोगों के खाने-पीने के इतने बुरे हालात देख कर नीलू ने उन्हें सब्ज़ियां उगाने के तरीके बताये, इसके साथ ही घर- घर जाकर ज़मीन में सब्ज़ी बोना सिखाया। उन्होंने महिलाओं को बताया कि कैसे वो इस किचन गार्डन को बना कर लाभ उठा सकती हैं। नीलू अब तक इस गाँव की 32 महिलाओं के घर किचन गार्डन बनाने में सहायता कर चुकी हैं। नीलू का कहना है कि इन सभी किचन गार्डन का निधिकरण चाइल्डलाइन की तरफ से किया जा रहा है। इसके साथ ही नीलू ने हमें यह भी बताया कि मौसम के हिसाब से यहाँ की महिलाओं को सब्ज़ियों के बीज दिए जायेंगे।
क्यूंकि अब गर्मियां आ रही हैं इसलिए अब जल्द ही नीलू इन लोगों को भिंडी, लौकी, कद्दू, तोरई, टमाटर, हरी मिर्च, बैंगन आदि के बीज वितरण करेंगी।

अब इस गाँव की महिलाएं हरी सब्ज़ियों का सेवन करती हैं और अपने बच्चों को भी सब्ज़ियां खिलाती हैं जिससे महिलाएं और बच्चे पहले से बहुत स्वस्थ्य और कुपोषण मुक्त नज़र आ रहे हैं। ये हमारे लिए गर्व की बात है कि इन छोटे-छोटे गाँव की महिलाएं खुद अपने दम पर आगे बढ़ रही हैं और ऐसे छोटे-छोटे कदम उठाकर अपने परिवार को पोषण युक्त खाना खिला पा रही हैं। हम यही आशा करते हैं कि इस देश के हर गाँव में नीलू जैसी एक महिला हो जो उस गाँव की बढ़ोत्तरी और महिलाओं के हित के लिए काम कर सके।

इस खबर को खबर लहरिया के लिए नाज़नी रिज़वी द्वारा रिपोर्ट और फ़ाएज़ा हाशमी द्वारा लिखा गया है।