कोरोना महामारी के दौर में सबसे उनका रोज़गार छिन गया है। इसमें सबसे ज़्यादा परेशानी मज़दूरों को हुई है। यह वह मज़दूर है जिनकी जीविका रोज़ कमाने से होती है। इस समय परिवार का भरण-पोषण कर पाना बेहद मुश्किल हो गया है। आज हम आपको चित्रकूट के उन व्यक्तियों के बारे में बताएंगे, जिसकी जीविका उसकी मज़दूरी से ही चलती है।
चित्रकूट जिले के ब्लॉक मऊ गाँव खण्डेहा के रहने वाले इजाईल,अब्दुल कलीम और राम कली साड़ी का घेरवा बनाने का काम करते हैं। यह बताते हैं कि पहले इन्हे ज़्यादा मज़दूरी का काम नहीं मिलता था। एक बार वह जमुनापुर गए और वहां उन्होंने मशीन से घेरवा बनाना सीखा। जिसके बाद उन्होंने भी लगभग चार हज़ार की घेरवा बनाने वाली मशीन खरीद ली। फिर वह लोग गांव-गांव जाकर लोगों के लिए साड़ी का घेरवा बनाने लगे। इनका कहना है कि घेरवा बनाने का काम दो-तीन लोगों के बिना नहीं हो सकता। इस काम से उनका घर-खर्च चल जाता है।
गाँव के लोगों का कहना कि पुरानी और फटी साड़ियों का घेरवा बनावाने में उन्हें काफी फायदा होता है। एक तो यह सिर्फ 20 रूपये में बन जाता है। वहीं अगर इसे बाज़ार से खरीदो तो इसकी कीमत दो सौ रूपये होती है। इसका इस्तेमाल वह रस्सी की तरह कुएं से पानी भरने और घर के काम के लिए इस्तेमाल करते हैं। लोग बताते हैं कि यह जल्दी खराब नहीं होता और ज़्यादा समय तक चलता है।