चित्रकूट के पाठा क्षेत्र में सफ़र के दौरान विकास और ग्रामीणों की परेशानियों से सांझा होती रिपोर्ट।
चित्रकूट: जिले का पाठा क्षेत्र जो कि मानिकपुर ब्लॉक का मुख्य गढ़ है। जिसके क्षेत्रफल की शुरुआत मुख्यालय से काफी पास से होकर दूर तक जाती है। इस समय कुछ बदला-बदला सा दिखने लगा है। कारण सुहाना मौसम हो सकता है। इस समय चल रही बारिश और ठंडा मौसम भी हो सकता है। इसके साथ ही कई पीढ़ियां गुज़र जाने के बाद कुछ-कुछ बदलाव देखने को मिलने लगा है। गांव में बिजली, सड़क और खड़ंजा देखने को मिला। यह भले ही वह गांव की कुछ कुछ बस्तियों में क्यों न हों।
हरियाली ने बनाया सुहाना सफर
पिछले हफ़्ते कुछ खास खबरों की रिपोर्टिंग के लिए मैंने पाठा क्षेत्र के जंगलों में तीन दिन बिताए। मैं अपनी रिपोर्टिंग के दौरान सैकड़ों बार उस जंगल जा चुकी हूं लेकिन इस बार का नज़ारा ही कुछ अलग था। कर्वी शहर से गुज़रते हुए जब हम रुखमा खुर्द गांव की तरफ बढ़ रहे थे तो बहुत ही सुकून देने वाली छवियां आंखों को देखते हुए गुजर रही थीं। बारिश की फुहारे, काली और सफ़ेद लाइन पड़ी सड़क, रास्ते में पड़ने वाले गहरे रंग के साइनबोर्ड और होले-होले चलती हमारी गाड़ी मानो सब कुछ हमारे लिए हो रहा हो। सड़क के अगल-बगल हरे भरे पेड़, झाड़ियां, पक्षियों की आवाजें और जंगल को चीरती हुई सड़क मन को सुख व सुकून देती हुई चल रही थीं। थोड़ी ही देर में जंगल के घुमावदार रास्ते के साथ घाटी की शुरुआत हुई और इस घाटी का नाम है देवांगना घाटी। यहां पर हवाई पट्टी भी बनी हुई है लेकिन उसके पास से हम नहीं गुज़र सके और हमारा रास्ता हवाई पट्टी आने से पहले ही मुड़ गया। इसी चलचित्र के साथ हम पहुंच गए पाठा क्षेत्रों के गांवों में।
अंधेर नगरी चौपट राजा वाला विकास कार्य
इस क्षेत्र का विकास करने के लिए राजनैतिक और प्रशासनिक तौर पर भाषणबाजी और वादे खूब किये जाते हैं लेकिन यहां पर आज भी लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। जो विकास कार्य हुए उनको बहुत ही चालाकी और चाटूकारिता के साथ कराया गया। मुझे जो बदलाव दिखा वह था कि उन गांवों को मुख्य सड़क और संपर्क मार्ग से जोड़ दिया गया जो मुख्य सड़क से पास-पास थे। कुछ-कुछ बस्तियों तक बिजली के खंभे और खंडजा देखने को मिलें भले ही वह व्यक्ति विशेष या जाति विशेष तक सीमित हों। ‘जैसे कि हमें मारकुंडी थाने के बगल वाले गांव किहुंनियाँ के मजरा महुलिया पुरवा में देखने को मिला कि जिस तरफ आदिवासी बस्ती थी उधर न बिजली के खम्भे थे और न ही खड़ंजा जबकि पूरे मजरे में बजली के खम्भे और सीसीरोड थी।’
मुख्य सड़क पर बड़ा सा चमकता हुआ गांव का नाम लिखा साइन बोर्ड लगा था और थोड़ी ही दूरी पर बहुत ही रँगाचूंगा गौशाला बना था। उसमें न गायें थीं और न ही चारा भूसा। मतलब कि देखकर पता चलना चाहिए कि गांव में विकास है। कहीं प्रशासन और राजनीतिक लोग ये तो नहीं सोच रहे हैं कि यही तो है विकास? उन्हें और क्या चाहिए? जबकि वह अच्छे से जानते हैं कि विकास में कौन-कौन सी योजनाएं हैं और वह किस तरह काम करती हैं।
करीब 180 नौनिहालों को स्कूल नसीब नहीं
इस दौरान हम जंगल के बीच बसे गांव घाटा कोलान पहुंचे। इस गांव में आदिवासी समुदाय और कुछ अनुसूचित जाति के ही लोग रहते हैं। वहां के लोगों के अनुसार कुल दो सौ घर होंगे जिनको आज तक विकास की आस है। खंडजा और बिजली के खम्भे यहां भी देखने को मिले लेकिन विकास न कराने की शिकायतों का अम्बार लग गया। महीनों से ट्रांसफरमर फूंका पड़ा है। पीने का पानी, अस्पताल, स्कूल न होना यहां की मुख्य समस्याएं हैं।
साथ ही बाकी योजनाएं न मिलने के बाद भी उनको कोई शिकायत नहीं है। यहां के निवासी दादूलाल बताते हैं कि उनको करीब 20 साल हो रहे हैं दरखास देते हुए जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को कि उनके गांव में पांचवीं तक सरकारी स्कूल हो जाए। स्कूल तो दो बार पास होकर आया लेकिन राजनीतिक दवाब के चलते उनके गांव में स्कूल नहीं बन पाया और उनको दूसरे गांवों में बनवा दिया गया। करीब 180 नौनिहालों को दो किलोमीटर दूर गांव लंकापुर जाना पड़ता है हालांकि अभी स्कूल बंद चल रहे हैं।
पाठा निवासी हैं मौजूदा विधायक, सांसद और मंत्री
बहुत ही हैरान करने वाली बात यह है कि मौजूदा सरकार के तीन बड़े और जिम्मेदार नेता चित्रकूट जिले के ही निवासी हैं। लोक निर्माण राज्यमंत्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय, सांसद आर.के. पटेल और विधायक आनन्द शुक्ला मौजूदा सरकार और बीजेपी पार्टी के दिग्गज नेताओं में जाने जाते हैं फिर भी पाठा क्षेत्र की तस्वीर नहीं बदली। ऐसे में सवाल उठाना और पूंछना तो बनता है ना कि कब तक.. आखिरकार कब तक यहां के लोगों को विकास होने का इंतजार करना होगा?
सफ़र और कवरेज का अनुभव जितना सुख देने वाला उससे ज्यादा कष्टदायी रहा। गांव से लेकर संसद तक यहां की जनता ने जिन नेताओं के ऊपर, प्रशासनिक अधिकारियों के ऊपर भरोसा किया, उन्हीं लोगों ने उन्हें धोखा दिया। ये सरकारें, नेता और पार्टियां तो बदलते रहेंगे लेकिन पाठा की तस्वीरें कब बदलेगी? है क्या इसका जवाब किसी के पास? चाहें वह व्यक्ति प्रशासनिक हो या राजनैतिक।
इस खबर को मीरा देवी द्वारा लिखा गया है।
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