रायपुर स्थित एक मशरूम फैक्ट्री में 19 नवंबर की देर शाम अधिकारियों के निर्देश पर छापा मारा। इस कार्रवाई में 100 से ज़्यादा नाबालिग लड़के-लड़कियों को बंधुआ मज़दूरी से मुक्त कराया गया जिनमें बड़ी संख्या में आदिवासी बच्चे शामिल थे।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के खरोरा इलाके में स्थित मोजो मशरूम फैक्ट्री से 100 से अधिक नाबालिग लड़के-लड़कियों से बंधुआ मज़दूरी के रूप में काम करवाया जा रहा था। बताया गया कि बच्चों से फ़ैक्ट्री के सभी काम मुफ़्त में और जबरन करवाए जा रहे थे।
नई दिल्ली से पहुंची राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की टीम, महिला एवं बाल विकास विभाग, पुलिस और गैर सरकारी संगठन एवीए (स्वैच्छिक कार्रवाई संघ) ने मिलकर संयुक्त छापामार कार्रवाई की। लगभग चार घंटे तक चली इस कार्रवाई में 14 से 17 साल की उम्र की करीब 80 लड़कियां और 40 लड़के रेस्क्यू किए गए। वैसे मामले की जांच जारी है और जांच पूरी होने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
इन राज्यों से हैं बच्चे
द हिंदू के रिपोर्ट के अनुसार एनएचआरसी सदस्य प्रियांक कानूनगो ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि उन बच्चों में ज़्यादातर असम, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखंड और ओडिशा के आदिवासी हैं और उन्हें बंधुआ मज़दूर बनाकर रखा गया था। उनसे दिन में 12 से 14 घंटे काम करवाया जाता था। उन्हें फॉर्मेल्डिहाइड के संपर्क में रखा गया था जो कैंसर पैदा करने वाला एक रसायन माना जाता है।
उन्होंने लिखा है कि “सूचना के अनुसार फैक्ट्री के मालिक,एजेंट द्वारा एडवांस देकर बच्चों को लाकर न्यूनतम वेतन से भी कम पर बच्चों से काम करवा रहे थे और बच्चों को बेहद छोटे कमरों में रखा जाता था। दुर्भाग्य से प्रशासन रसूखदार फैक्ट्री मालिकों को छोड़कर केवल बिचौलिए एजेंटों पर कार्यवाही करता है तब यह अपराध रुकते नहीं हैं।”
रायपुर की एक मशरूम फैक्ट्री में कल देर शाम मेरे निर्देश पर छापामार कार्रवाई कर 100 से अधिक नाबालिग लड़के-लड़कियों को बंधुआ मजदूरी से रेस्क्यू किया गया। इनमें बड़ी संख्या में आदिवासी बच्चे शामिल हैं।
बच्चों से फ़ॉर्मल्डहाइड जैसे कैंसरकारी केमिकल के सीधे संपर्क में 12–14 घंटे काम… pic.twitter.com/vRJHdYG4MZ— प्रियंक कानूनगो Priyank Kanoongo (@KanoongoPriyank) November 18, 2025
उन्होंने लिखा कि एक गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन (एवीए) की शिकायत पर स्थानीय कलेक्टर और जिला पुलिस को कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए जिसके बाद छापेमारी की गई।
एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन (एवीए)
एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए काम करने वाले देश के सबसे बड़े नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) का सहयोगी संगठन है। जेआरसी देशभर के 451 जिलों में सक्रिय नागरिक समाज संगठनों के साथ मिलकर काम करता है। इसके अलावा करीब 250 संगठनों का यह नेटवर्क कानूनी हस्तक्षेपों और बच्चों को मुक्त कराने जैसे अभियानों की अगुवाई भी करता है।
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अंधेरे कमरों में डरा धमका कर रखा जाता था
मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार गैर सरकारी संगठन एवीए ने बताया कि फैक्ट्री में मौजूद बच्चों का गंभीर रूप से शोषण किया जा रहा था। उनकी आवाजाही पर रोक थी और उन्हें लगातार डरा-धमका कर रखा जाता था। संस्था के अनुसार यह स्थिति मानव तस्करी और बंधुआ मज़दूरी जैसे अपराधों से कम नहीं है।
मुक्त कराए गए बच्चों ने भी बताया कि उन्हें फैक्ट्री परिसर में बने छोटे, अंधेरे कमरों में रखा जाता था। उनसे रोज़ 12 से 15 घंटे तक काम कराया जाता था और कई बार रात का खाना भी नहीं दिया जाता था।
संस्थापक भुवन ऋभु ने क्या कहा?
अमर उजाला के रिपोर्टिंग अनुसार जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा कि कल्पना ही की जा सकती है कि हाड़ कंपा देने वाली ठंड में 12-15 घंटे काम करने वाले एक बच्चे की क्या हालत होगी? यह ट्रैफिकिंग जैसे संगठित अपराध का सबसे घिनौना चेहरा है और विकसित भारत की राह में सबसे बड़ा रोड़ा। मैं रायपुर की इस मशरूम प्रसंस्करण यूनिट से ट्रैफिकिंग के शिकार 100 बच्चों को मुक्त कराने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, स्थानीय पुलिस और एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन को बधाई देता हूं। सरकार को इस मामले के त्वरित निपटारे और और इन बच्चों का पुनर्वास सुनिश्चित करने की दिशा में तत्काल कदम उठाना चाहिए।
तीन महीने में उसी फैक्ट्री में तीसरी बार छापेमारी
अमर उजाला के रिपोर्टिंग अनुसार एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन के वरिष्ठ निदेशक मनीष शर्मा ने बताया कि छापेमारी के दौरान फैक्ट्री में मौजूद बच्चे भूखे, घायल, उदास और डरे हुए मिले। वहां की स्थिति इतनी ख़तरनाक थी कि टीम के सदस्य भी देखकर हैरान रह गए।
उन्होंने यह भी कहा कि यह कार्रवाई सिर्फ़ एक अस्थायी सफलता है क्योंकि पिछले तीन महीनों में उसी फैक्ट्री पर यह दूसरी छापेमारी है। यह साफ़ इशारा करता है कि इकाई के मालिकों की इसमें किसी न किसी रूप में सक्रिय और गंभीर भूमिका रही होगी। इसके बावजूद दर्ज की गई एफआईआर में महत्वपूर्ण धाराएं शामिल नहीं की गईं।
इतने सारे बच्चे आखिर आए कहां से? उन्हें आगे किस स्थान पर भेजा जाएगा? उनके परिवारों का पता कैसे लगाया जाएगा और क्या सभी बच्चों को सुरक्षित रूप से घर लौटाया जा सकेगा? इन सारे सवालों के जवाब जांच के बाद ही पता लग पाएगा। फिलहाल सभी बच्चों को रायपुर के बाल देखभाल संस्थानों में सुरक्षित रखा गया है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (रायपुर) लाल उमेद सिंह का कहना है कि मामले की जांच जारी है और जांच पूरी होने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।
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