पानी की कमी ने लोगों के बीच छुआछूत को बढ़ावा देने का काम किया है। ग्रामीण पानी की कमी को लेकर शिकायत करते हैं तो उस पर सुनवाई तक नहीं होती।
एमपी के छतरपुर जिले के देरी गांव में पानी व उससे जुड़ी छुआछूत की लड़ाई छिड़ी हुई है। देरी गांव की लगभग आबादी 600 की है और गांव में एक ही हैंडपंप है। गांव में अहिरवार व पाल समाज के लोगों के बीच पानी पर छुआछूत की लड़ाई होती रहती है। इस बीच न लोगों को पानी मिल पाता है और न ही शिकायत करने पर कोई सुनवाई होती है।
ये भी देखें – बिहार : आर्सेनिक युक्त पानी पीने से लोगों में बढ़ रहा कैंसर का खतरा
क्या कहते हैं दोनों समाज के लोग?
कल्लू अहिरवार ने खबर लहरिया को बताया, जब वह पानी लेने जाते हैं तो पाल समाज के लोग उनके साथ छुआछूत करते हैं। उन्हें पानी भरने नहीं देते। उनसे कहा जाता है,’पहले हमें भरने दो उसके बाद भरना।’ एक ही हैंडपंप होने की वजह से उन्हें समस्या का सामना करना पड़ता है।
पानी नहीं मिलता तो लोगों को दूसरे गाँवो में पानी के लिए जाना पड़ता है। यूं तो हर चुनाव में उनसे हैंडपंप लगवाने का वादा किया गया था जो आज भी अधूरा है।
जब पानी को लेकर होती छुआछूत के बारे में पाल समाज के लोगों से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि अहिरवार समाज के लोग हैंडपंप पर ही नहाते-धोते हैं। उन्हें वहां से पूजा-पाठ के लिए पानी भी भरना होता है इसलिए वह उन्हें बाद में पानी भरने के लिए कहते हैं। अहिरवार समाज के लोग बेहद गंदगी फैलाते हैं जो उन्हें पसंद नहीं।
आगे बताया, हैंडपंप के बगल में नाली है तो कई बार महिलाओं द्वारा वहीं पर बच्चों को शौच कराया जाता है। हैंडपंप से लोग खाना बनाने के लिए भी पानी भरते हैं।
पानी की समस्या पर होगा काम – अधिकारी
मामले को लेकर गांव के सरपंच राजाराम अहिरवार ने बताया, उन्होंने हाल ही में कार्यभार संभाला है और ग्राम पंचायतों में भी काम शुरू नहीं हुआ है। जैसे ही काम शुरू होता है वह हैंडपंप के लिए आवेदन डालेंगे। इसके साथ ही जहां पानी की पाइपलाइन बिछी हुई है, वह कोशिश करेंगे कि उसमें भी पानी आने लगे ताकि ग्रामीणों को पानी की समस्या न हो।
छतरपुर जिले के कार्यपालन अधिकारी संजय कमरे का कहना है कि अभी बजट नहीं है। वह यह विश्वास दिलाते हैं कि बजट आते ही वह जांच-पड़ताल कराकर सबसे पहले हैंडपंप ही लगवाएंगे।
अतः, पानी की कमी ने लोगों के बीच छुआछूत को बढ़ावा देने का काम किया। अगर पानी की उचित सुविधा होती तो शायद लोग एक ही स्थान पर सारे क्रियाकलाप नहीं करते। लोगों के बीच पानी को लेकर मतभेद नहीं होता। अगर पानी की कमी से लोगों के बीच छुआछूत का सवाल उठ रहा है तो समस्या की ज़िम्मेदारी कौन लेगा?
ये भी देखें – पानी ही नहीं जाति भी एक समस्या है , देखिये चित्रकूट जिले के इटवा गाँव की समस्या
इस खबर की रिपोर्टिंग अलीमा द्वारा की गयी है।
‘यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते है तो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’