खबर लहरिया छतरपुर छतरपुर: एक ऐसा गाँव जहाँ 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़ने को मजबूर किशोरियां

छतरपुर: एक ऐसा गाँव जहाँ 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़ने को मजबूर किशोरियां

मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले का ढोड़न गाँव जो पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र जंगल के बीच कई पीढ़ियों से बसा हुआ है। यह गांव इंटरनेट की पहुंच से कोसों दूर है। लोग मोबाइल पर बात करने तक को तरसते हैं तो डेटा नेटवर्क की बात ही छोड़िए। हमारी सरकारें कोविड-19 के बाद से ऑनलाइन पढ़ाई को बढ़ावा दे रही हैं। क्या सरकारें इस तरह के गांवों से अपरिचित हैं? ऐसे गांवों की नेटवर्क व्यवस्था कौन करेगा?

पन्ना और छतरपुर के बॉर्डर में बसा यह गांव दोनों मुख्यालयों से बहुत दूर है। जंगल को चीरते हुए गांव को रास्ता जाता है। दूर दूर तक उबड़ खाबड़ और जंगली जानवरों के रास्ते सिर्फ एक जीप है जो सुबह गांव से शहर को जाती और और शाम को फिर वापस हो जाती है।

कोसाबाई आदिवासी बताती है कि उनके गांव में कुल दो बच्चों ने पढ़ाई करके जॉब पाई है। एक टीचर है और दूसरा पुलिस में है। उन्होंने शहर में रहकर पढ़ाई की। उनके माता पिता के पास इतना पैसा था कि उन्होंने पढ़ाई के लिए शहर भेज दिया। सबके पास उनके जैसे पैसे थोड़े हैं। यहां जूनियर तक सरकारी स्कूल तो है लेकिन ठीक से पढ़ाई नहीं होती है। जंगली जानवरों के डर और इतनी दूरी के कारण कोई अधिकारी यहां देखभाल के लिए नहीं आता। ऐसे में टीचरों को कोई डर नहीं है पढ़ाये चाहे न पढ़ाएं।

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पूजा आदिवासी कह रही हैं कि वह की-पैड फोन चलाती हैं। जियो की सिम है क्योंकि उनके दरवाज़े के कुछ दूर में जियो का नेटवर्क आता है। बाकी आइडिया, एयरटेल का नेटवर्क आता ही नहीं है।

हमने कवरेज के समय कुछ किशोरियों से भी बात की जो आठवीं तक पढ़ चुकी थीं और कुछ पढ़ रही थीं। तुलसा कक्षा 8 तक पढ़ चुकी है। सोमवती, चेतना और रोशनी कक्षा 8 में और आशा कक्षा 6 में अभी पढ़ रही हैं। सभी ने बताया कि वह आठ के बाद आगे की पढ़ाई करना चाह तो रही हैं लेकिन 8 के बाद आगे की पढ़ाई शहर में जाकर करनी पड़ेगी इसलिए आगे की पढ़ाई नहीं कर पाएंगी। यहां पर ज्यादातर लड़के या लड़कियां 8 वीं के बाद नहीं पढ़ पाते। गरीबी और घर के कामों की जिम्मेदारी लड़कियों पर होने के कारण भी वह नहीं पढ़ पा रही हैं।

शासकीय माध्यमिक शाला के टीचर बताते हैं कि यहां नेटवर्क की बहुत दिक्कत है। उनको सरकारी काम करने में बहुत दिक्कत होती है। उनको सरकाई काम करने के लिए किसी ऊंचाई वाली जगह पर जाना पड़ता है। किसी किसी दिन तो काम होता ही नहीं है। इंटरनेट सर्चिंग नहीं हो पाती है। ऑनलाइन पढ़ाई की बात छोड़ ही दीजिए। इस गांव के लिए यह शब्द सिर्फ एक सपना है। यहां के बच्चे शिक्षा और नेटवर्किंग व्यवस्था दोनों से बहुत-बहुत दूर हैं।

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