खबर लहरिया Blog गौशालाओं में मरते मवेशी, लोगों के लिए बने बीमारी की आफत

गौशालाओं में मरते मवेशी, लोगों के लिए बने बीमारी की आफत

बांदा: इस साल की ठंड के दौरान गौशालाओं में रोज गायों के मरने की खबरें मिल रही हैं। ये खबरें बता रही हैं कि गौशालाओं के नाम सरकार और प्रशासन किस तरह से सरकारी बजट की लूट मचाए हुए हैं। ऊपर से मवेशी पर की जाने वाली राजनीति की दहशत और डर का ये आलम है कि मरे जानवरों की हड्डी और खाल भी उठाने कोई नहीं आता जिससे गौशालाओं के आस पास रहने वाले लोगों को भयंकर बदबू का शिकार होना पड़ रहा है। कुत्ते और कौवा मरे जानवरों का मांस और हड्डियां इधर उधर फेंक रहे हैं।

हम जनवरी 2020 के दूसरे सप्ताह इस कबरेज के लिए शहर से करीब 80 किलोमीटर दूर कमासिन ब्लाक के पछौहा गांव गए। इस गांव में सड़क किनारे ही गौशाला दिख गई। देखा कि पूरे गौशाला में पानी भरा हुआ है क्योकि कई दिन से बारिश हो रही थी जिससे लगातार कड़ाके की ठंड बढ़ गई थी। मुश्किल से दस गाएं गौशाला के अंदर पानी में भीगा और सड़ा पयार सूंघ सूंघ कर खा रही थीं। ऐसे लग रहा था कि कह रही हों कि भूख तो मिटानी ही है। थोड़ी दूर पर पानी में उतराता पयार का एक ढ़ेर दिखा और वह हिल रहा था। जब पास गए तो उस ढेर के अंदर एक मवेशी  और एक बच्चा तड़प रहे थे। गाय बुरी तरह घायल थी। मांस के लोथड़े दिख रहे थे पूंछ की जगह, कीड़े बुलबुला रहे थे।

गायों के कान में लगाया जाने वाले टैग इधर उधर बिखरे पड़े थे। कई गायों के कान छीने थे खून बह रहा था। गांव के लोगों से पूंछने पर पता चला कि कल ही इस गौशाला को दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया है। सभी गायों को नये गौशाला ले जाया गया जो यहां से लगभग तीन किलोमीटर दूर है। यहां पर बची गायें जाने में असमर्थ थीं इसीलिए इनको यहां छोड़ दिया गया है। इनके कान से टैग भी निकाल लिया गया है ताकि ये पहंचान न हो सके कि ये गायें गौशाला की ही हैं। अब गौशाला को इसलिए दूर बनाया गया कि आसानी से कोई देख न सकेगा कि गौशाला ठीक से चल रही है या नहीं। गायों को चारा डालने वाले सुंदर बताते हैं कि एक कारण और भी है कि नया गौशाला सरकारी जमीन में बनाया गया है। अभी तक किसी की निजी जमीन में गौशाला चल रहा था।

अब हम नए गौशाला जा रहे थे कि गांव से निकलते ही जो लोग आते दिखे सब नाक दबा के। जब तक हम कुछ समझ पाते कि जोरदार हवा के झोंके के साथ असहनीय बदबू आई। एक पल के लिए लगा उल्टी हो जाएगी पर हम आगे बढ़ गए। एक नाला दिखा और उसमें भरे पड़े थे मरे जानवर। कुत्तों, कौवे और चीलों का हुजूम सब नोच रहे थे। आखिकार बदबू की सच्चाई पता चल ही गई। हमको खड़े देख उस सड़क से गुजरने वाले लोग भी खड़े हो गए। सब ने इस बदबू की जो कहानी बताई सुनकर हम हैरान थे कि आखिरकार लोग कैसे सहन कर पा रहे हैं ये बदबू।

 

 

गांव के निवासी बब्लू और महेश बताया कि जो भी मवेशी  मरता है यहीं पर प्रधान फेंकवा देता है। ये तो एक जगह आपने देखी है गांव के आसपास कम से कम दस जगहें ऐसी हैं जहां पर रोज ऐसे ही जानवर मरे पड़े रहते हैं। कोई दूसरा रास्ता नहीं है इसलिए यहीं से गुजरते हैं। इस बात पर हम प्रधान का पक्ष जानने के लिए उसके घर गए लेकिन प्रधान ने अपना पक्ष जानबूझकर नहीं रख। बोलने के लिए लोग स्वतंत्र हैं, कुछ भी बोल सकते हैं।

शीबू सिंह ने बताया कि पहले ठीक था कि मरे जानवर की हड्डी और खाल उठाने वाले आते थे। बूढ़े मवेशी  को बेच दिया जाता था। किसानों को पैसा मिल जाता था। मतलब मरे और जिंदा जानवरों से किसानों और हड्डी व खाल उठाने वाले लोगों को फायदा था। कृषि कार्य के साथ साथ बिजनेस भी था इसलिए अन्ना मवेशीजैसी की विकराल समस्या नहीं थी। अब देखिए कि मौजूदा सरकार और बीजेपी पार्टी ऐसी राजनीति खेल रही है कि गायों को धर्म की आड़ से जिंदा रखने की जिम्मेदारी ले ली है पर करा धरा कुछ नहीं हो रहा। गायों की और स्थिति खराब होती जा रही है। मारे डर और दहशत के लोग हड्डी और खाल भी उठाने नहीं आ रहे। उनका रोजगार तो बन्द ही है। ऊपर से गांव भर में बदबू फैली हुई है। आखिकार ऐसी स्थिति का जिम्मेदार कौन? इस स्थिति के जिम्मेदार लोग भी कभी एक मिनट के लिए इस बदबू की जगह खड़े होकर देख लें। बदबू ही काफी है सरकार को कार्यवाही के लिए मजबूर करने के लिए।

 

  • -ब्यूरो चीफ, मीरा देवी