खबर लहरिया ने अपनी रिपोर्टिंग के दौरान पाया कि बांदा से लेकर चित्रकूट, ललितपुर से लेकर छतरपुर के स्वास्थ्य केंद्रों का यह हाल है कि वहां मरीज़ों को इलाज के लिए घंटों सिर्फ डॉक्टरों के इंतज़ार में बैठना पड़ता है और कई बार तो डॉक्टरों की गैर-मौजूदगी या लापरवाही के कारण कई मरीज़ों की जान भी चली जाती है।
बुंदेलखंड में विकास की कमी, महिलाओं की असुरक्षा, पानी की कमी आदि मामलों से रूबरू तो आप होंगे ही। कई सामजसेवी, मीडिया-कर्मी और आम जनता की हज़ारों कोशिशों के बावजूद भी आज भी बुंदेलखंड के अंतर्गत आने वाले ज़्यादातर क्षेत्रों में यह समस्याएं ख़तम होने का नाम नहीं ले रही हैं। लेकिन हाल ही में हमारी रिपोर्टिंग के दौरान हमने पाया कि बुंदेलखंड के ग्रामीण इलाकों में एक ऐसी समस्या थी जिससे कई लोगों ने अपनी जानें भी गवां दीं।
डॉक्टर जिसे भगवान का दर्जा दिया जाता है, जब वही डॉक्टर अपने पद की चिंता किए बिना मरीज़ों को बीच मझधार में छोड़ दे, तो फिर वो लाचार मरीज़ किसके आगे अपनी जान की भीख मांगेगा? जी हाँ सही सोच रहे हैं आप, हम बात कर रहे हैं बुंदलेखंड में ध्वस्त होती सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में।
खबर लहरिया ने अपनी रिपोर्टिंग के दौरान पाया कि बांदा से लेकर चित्रकूट, ललितपुर से लेकर छतरपुर के स्वास्थ्य केंद्रों का यह हाल है कि वहां मरीज़ों को इलाज के लिए घंटों सिर्फ डॉक्टरों के इंतज़ार में बैठना पड़ता है और कई बार तो डॉक्टरों की गैर-मौजूदगी या लापरवाही के कारण कई मरीज़ों की जान भी चली जाती है।
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ललितपुर में 2 महीने से बंद पड़ा स्वास्थ्य केंद्र-
हाल ही में जिला ललितपुर के ब्लॉक महरौनी के गाँव गौना के लोगों ने हमें बताया कि गाँव में बने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर ही नहीं है। यहाँ तक कि दो महीने से अस्पताल में भी ताला पड़ा हुआ है। ग्रामीणों का कहना है कि पहले यहां सुविधाएं थी तो इलाज हो जाता था, पर अब उन्हें बहुत परेशानी हो रही है। लोग इलाज के लिए जाते हैं तो उन्हें बन्द अस्पताल मिलता है। इन गरीब परिवारों के पास सरकारी अस्पताल में इलाज कराने के आलावा कोई और दूसरा उपाय भी नहीं है, लेकिन अब जब सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर ही नहीं है, इसलिए इन ग्रामीणों को प्राइवेट डॉक्टरों या प्राइवेट अस्पताल में इलाज के लिए जाना पड़ रहा है।
बता दें कि इस अस्पताल से करीब 90 गाँव जुड़े हुए हैं। इन 90 गावों के लोग इस अस्पताल में इलाज के लिए आते थे। गाँव के प्रधान पदम सिंह पटेल का कहना है कि उनके गाँव गौना में ज़्यादातर सहरिया आदिवासी लोग हैं। उनके पास कोई ज़मीन नहीं है और ज़्यादातर लोग मज़दूरी करके अपना घर चलाते हैं। उन्होंने बताया कि अस्पताल बंद होने की वजह से लोग झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज करा रहे हैं। यह डॉक्टर सिर्फ उनका फायदा उठाते हैं। यहाँ तक कि गर्भवती महिलाओं को भी कोई सुविधाएं नहीं मिल रही है। वह कहतें हैं कि गांव वालों द्वारा कई बार नेता व मंत्रियों से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टरों को तैनात करने की मांग की गयी है। लेकिन कुछ नहीं हुआ। ललितपुर के सी एम ओ जी.पी शुक्ला का कहना है कि जनपदों में ज़्यादातर डॉक्टरों की कमी चल रही है इस वजह से दिक्क्त रहती है, लेकिन प्रयास करेंगे कि जल्द ही डॉक्टर की व्यवस्था हो जाए।
बांदा, छतरपुर में इलाज के लिए इधर-उधर भटक रहे मरीज़-
कुछ ऐसा ही हाल बांदा और छतरपुर ज़िले में भी है, जहाँ सरकारी अस्पतालों में आए दिन डॉक्टरों की लापरवाही देखने को मिल रही है। बांदा जिला के सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही की वजह से मरीज़ दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं। अगस्त के महीने में एक ऐसा ही मामला सामने आया था जिसमें अस्पताल में मौजूद एक व्यक्ति ने हमें बताया कि वह दो दिनों से सरकारी अस्पताल में अपनी बच्ची को लेकर पड़े हुए थे पर यहां के डॉक्टरों द्वारा सही इलाज नहीं किया जा रहा था। न ही कोई व्यवस्था की जा रही थी और न ही कोई डॉक्टर देखने पहुंचा था।
इस मामले में बाँदा के सीएमओं के.के सिंह ने मरीजों को आकर देखा और उन्हें आश्वासन दिया कि उनका इलाज सही से किया जाएगा। इस मामले में उन्होंने और कोई जानकारी देने से मना कर दिया था।
वहीं छतरपुर जिले के जिला चिकित्सालय में भी डॉक्टरों की गैर-मौजूदगी साफ़ देखने को मिल रही है, जिससे लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। लोगों का कहना है कि वह सुबह 10 बजे आकर बैठ जाते हैं लेकिन डॉक्टरों का अता-पता नहीं होता।
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पर्ची बनवाने की लाइन भी लगती है पर डॉक्टर ही नहीं आते। लोग कहते हैं कि वह दूर- दराज़ के गावों से अपना या अपने परिजनों का इलाज कराने आते हैं और डॉक्टर के न आने पर बिना दिखाए ही घर वापस लौटना पड़ता है। एक महिला ने हमें बताया कि उनकी बेटी की तबियत चार दिन से खराब थी, वह चार दिनों से जिला अस्पताल के चक्कर लगा रही थीं पर अस्पताल में डॉक्टर ही नहीं थे। चौथे दिन वो बहुत उम्मीद से आयीं थी कि उन्हें शायद डॉक्टर मिल जाए परन्तु इस दिन भी उन्हें निराशा ही हाँथ लगी। उस महिला ने हमें बताया कि जिला अस्पताल के ज़्यादातर डॉक्टर अपने घरों में मरीज़ देखते हैं और फिर फीस के नाम पर मरीज़ से मोटी रकम भी लेते हैं। ऐसे में जो गरीब परिवार सिर्फ सरकारी अस्पताल या मुफ्त परामर्श के भरोसे बैठे हैं, उनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं होता।
जब हमने इस बारे में सिविल सर्जन से बात की तो उनका कहना था कि कुछ डॉक्टर छुट्टी पर हैं और जो नहीं आए हैं वह उनकी जांच करवाएंगे कि वह क्यों नहीं आए हैं। अगर कुछ होगा तो उन पर कार्यवाही की जाएगी।
मजबूरन कराना पड़ रहा है झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज-
सरकारी अस्पतालों में सही इलाज न मिल पाने और डॉक्टरों की कमी के चलते आज भी देश के अधिकतर ग्रामीण झोलाछाप डॉक्टरों की तरफ अपना रुख करते हैं। इन लोगों के पास इतने पैसे नहीं होते कि ये प्राइवेट अस्पतालों या प्राइवेट डॉक्टरों को हज़ारों पैसे खर्च करके दिखा पाएं, इसलिए गावों में मौजूद झोलाछाप डॉक्टर में ही इनकी आखरी उम्मीद बसती है। लेकिन ऐसे डॉक्टरों से इलाज करवाना कितना सफल होता है यह तो हम सभी जानते हैं। हमें आए दिन ख़बरों में झोलाछाप डॉक्टरों की लापरवाहियों या गलत दवाओं के दुष्प्रभाव की खबरें सुनने को भी मिल जाती हैं। कुछ ऐसा मामला हाल ही में सामने आया चित्रकूट में।
जिला चित्रकूट के ब्लॉक रामनगर के गाँव बल्हारा के मुन्नी लाल और छोटेलाल ने हमें जानकारी देते हुए बताया कि झोलाछाप डॉक्टर द्वारा उसके भाई को ठीक करने का वादा किया गया था लेकिन असल में उसने इलाज के नाम पर उसे ठगा है। जिसके बाद उसके भाई की भी मृत्यु हो गयी है।
छोटेलाल के भाई को बुखार आया था और गाँव में ही इलाज कराने के कई दिन बाद ही मरीज़ का बुखार नहीं उतरा था, जिसके बाद ये लोग मरीज़ को लेकर रामनगर गए। वहां के झोलाछाप डॉक्टर ने कहा कि वह उसके भाई को बिल्कुल ठीक करेंगे। इसी विश्वास में उसने अपने भाई को झोलाछाप डॉक्टर के पास छोड़ दिया और इलाज के पैसों के जुगाड़ में लग गया। पूरे इलाज का उसे 60 हज़ार और दवाई का 7 हज़ार रूपए बताया गया। उसके भाई को अस्पताल में भर्ती तो किया गया लेकिन पूछने पर भी उसकी हालत के बारे में नहीं बताया और छोटेलाल को अंधविश्वास में रखा।
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19 सितंबर को छोटेलाल को कहा गया कि वह मरीज़ को इलाहाबाद ले जाए, वह मरीज़ का इलाज अब और नहीं कर सकते। जब वह उसे इलाहबाद के एक अस्पताल लेकर पहुंचे तो उसे वहां मृत घोषित कर दिया गया। मौके पर पुलिस भी आई। छोटेलाल ने समझौते के तौर पर 50 हज़ार मांगे, लेकिन इन सब के बीच सिर्फ डॉक्टर की लापरवाही के चलते किसी व्यक्ति ने अपनी जान गवां दी।
रामनगर के अधीक्षक डॉ शैलेन्द्र सिंह का कहना है कि जब तक वह पहुंचे तब तक आरोपी भाग निकला था। और उसके कमरे को सील कर जांच की जा रही है। वह अपनी तरफ से सरकारी रिपोर्ट बनाएंगे।
इन सभी मामलों में जो एक बात निकल कर आयी है, वो है लगातार बढ़ रही डॉक्टरों की लापरवाही। और सोचने की बात तो यह है कि स्वास्थ्य विभाग भी डॉक्टरों के ड्यूटी पर से गायब रहने, मरीज़ों का समय पर इलाज न कर पाने आदि को लेकर कोई कदम नहीं उठा रहा है। विभाग और डॉक्टरों की इन गलतियों का भुगतान भरना पड़ रहा है उन गरीब परिवारों को जिनके पास अपनों की जान बचाने का और कोई दूसरा उपाय नहीं है। ऐसे में क्या ज़रूरी नहीं कि डॉक्टरों को अपने कर्तव्यों को भूलना नहीं चाहिए और छोटी या बड़ी हर बीमारी से ग्रसित मरीज़ के इलाज के लिए आगे आना चाहिए?
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