खबर लहरिया Blog गर्मी-बरसात से फैल रही बीमारियां, अस्पताल में लगी भीड़, दिखी अव्यवस्था

गर्मी-बरसात से फैल रही बीमारियां, अस्पताल में लगी भीड़, दिखी अव्यवस्था

बाँदा जिले के गाँवों में गर्मी और बरसात से हो रही बीमारियां। अस्पताल में इलाज के लिए लगी भीड़।

फैली बीमारी की वजह से सरकारी अस्पताल में उमड़ी हुई भीड़

जिला बांदा- इस समय बरसात का मौसम चल रहा है। मौसमी बीमारियों और उमस भरी गर्मी ने लोगों को बेहाल कर के रख दिया है। लोग इस समय कई तरह की बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं। जिसका मुख्य कारण है उमस भरी गर्मी और मच्छरों का प्रकोप। जिसके चलते अस्पताल पूरी तरह से मरीजों से भर गया है। जिसकी वजह से उन्हें ठीक से उपचार तक नहीं मिल पा रहा है। भीड़ की वजह मरीज इधर-उधर दौड़ रहे हैं चिल्ला रहे हैं। चाहें वह सरकारी अस्पताल हो या फिर प्राइवेट अस्पताल। इस समय फैली बीमारी के कारण मरीजों की स्थिति बेहद खराब है।

 अस्पताल के हॉल से लेकर वार्डों में भरें हैं मरीज़

एक दिन हम अचानक से बांदा जिले के अस्पताल पहुंचे। जहां हमने देखा कि अस्पताल के जनरल वार्ड, जहां पर मरीजों को भर्ती किया जाता है वह पूरी तरह से भरे हुए हैं। इतना ही नहीं लोग बाहर हॉल में अस्पतालों की गलियों में ज़मीन पर पड़े हुए हैं। जब हमने लोगों से बात की तो लोगों ने बताया कि इस समय बहुत ज़्यादा दिक्कतें आ रही हैं।

वार्ड ने जगह न मिलने पर अस्पताल के हॉल में लेटी हुई      ग्रामीण महिला

ऐसा इसलिए क्योंकि उमस भरी गर्मी पड़ रही है। जिसके कारण मच्छरों ने बहुत परेशान किया हुआ है। जैसे ही मच्छर काटते हैं लोगों को ज़ुखाम,बुखार, पेट दर्द, डायरिया आदि जैसी बीमारियां हो रही हैं। ग्रामीण स्तर पर इतने ज़्यादा अस्पतालों के रूप में संसाधन नहीं है। इस कारण वह जिले तक आते हैं या फिर ब्लॉक स्तर के अस्पतालों में जाते हैं। लेकिन वहां भी उनको सही तरीके से इलाज नहीं मिल पाता है और वह परेशान होते रहते हैं।

 अस्पताल की व्यवस्था ठप, बुलाने पर भी नहीं आते डॉक्टर

बबेरु ब्लॉक के गांव की रहने वाली आशा बताती हैं कि वह 2 दिन से बांदा जिला अस्पताल में अपनी लड़की को लेकर भर्ती हैं। उनकी बेटी को पेट दर्द की शिकायत है। उसने गांव में कुछ प्राइवेट डाक्टरों से इलाज करवाया लेकिन सही नहीं हुआ। इस कारण वह जिला अस्पताल आई हैं। अस्पताल में जो व्यवस्थाएं हैं वह ठीक ही हैं इसके साथ ही यहां कोई किसी की सुनने वाला भी नहीं है।

‘रात के समय अगर किसी मरीज को दिक्कत होती है तो उस समय डॉक्टर बुलाने के बाद भी नहीं आते हैं। चाहें मरीज़ को कुछ भी हो जाए। कहने को तो कहा जाता है कि डॉक्टर भगवान का रूप होते हैं लेकिन सरकारी अस्पतालों में बहुत ज़्यादा धंधागर्दी चल रही है।’

सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों की चलती है मनमानी

इसी तरह बड़ोखर खुर्द के गांव मोहनपुरा की रहने वाली कुंता बताती हैं कि वह अपने बेटे का इलाज करवाने आई हैं। उनका गांव बांदा से लगा हुआ है लेकिन वहां पर अच्छे डॉक्टरों की सुविधा नहीं है। सब झोलाछाप डॉक्टर रहते हैं। उन्हीं से चाहें जो दो-चार, दस रुपये की दवा-गोली लेकर खा लो। उसमें भी वह लोग पैसे आज लेते हैं लेकिन इलाज ठीक से नहीं हो पाता। इसी वजह से वह जिला अस्पताल आई हुई हैं। यहां पर उनके बेटे का इलाज हुआ है और वह ठीक भी हो गया है। लेकिन सरकारी अस्पताल में भी बहुत ज़्यादा मनमानी होती है। कई बार तो डॉक्टर दवा बाहर से मंगवाते हैं और उनको मजबूरी में दवा लेकर देना पड़ता है क्योंकि उन्हें अपने मरीज़ को ठीक करना है।

उन्होंने बताया कि उनके बगल में एक मरीज़ पड़ा हुआ था जिसको काफी दिक्कत आ रही थी। दो-तीन बारी उसने डॉक्टर को बुलाया तब जाकर मुश्किल से डॉक्टर आया। उसने कहा कि यह दवा बाहर से मंगवा लीजिए तब जाकर उसके परिवार के एक व्यक्ति ने बाहर से दवा लाकर दी। अब उसे यह तो नहीं पता की दवा कौन-सी थी लेकिन जब सरकारी अस्पताल में निःशुल्क इलाज लिखा हुआ है। सरकार इसलिए ही सरकारी अस्पताल खोलती है ताकि गरीबों को निःशुल्क इलाज मिले। वह स्वस्थ हो सकें तो फिर सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त दवाइयां क्यों नहीं होती?

                                दवा खरीदते लोग

कुंता ने हमें यह भी बताया कि जब वह अपने बेटे को लेकर आई थीं तो उसे काफी दिक्कत थी। कोई भी बेड खाली नहीं दिख रहा था। कई बार विनती करने के बाद डॉक्टरों ने उसे बेड दिया और इलाज किया। लेकिन जिस उम्मीद के साथ गरीब लोग सरकारी अस्पताल में आते हैं उस तरह का काम सरकारी अस्पतालों में नहीं हो रहा है। इसी वजह से लोग बहुत परेशान होते हैं। कई बार तो मरीजों को दिक्कत होने पर हंगामें भी हो जाते हैं।

डॉक्टरों की लापरवाही का आरोप लगाते हुए किया हंगमा

बबेरू कोतवाली क्षेत्र के भदेहदू गांव में 26 अगस्त को सिलिंडर में गैस लीकेज से लगी आग में राजा बाबू (29) गंभीर रूप से झुलस गए थे। उन्हें बचाने में उसका बड़ा भाई भी झुलस गया था। फिर उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

रविवार की शाम को राजा बाबू की मौत हो गई। डॉक्टरों पर इलाज न करने और लापरवाही का आरोप लगाते हुए परिवार द्वारा हंगामा किया गया। राजा बाबू के भाई पीसी पटेल ने बताया कि रविवार को राजा बाबू की हालत बिगड़ने पर उसने ट्रामा सेंटर के डॉक्टर को जगाने की बहुत कोशिश की थी। जमकर दरवाज़े भी पीटे थे लेकिन डॉक्टर बाहर नहीं निकले।

उसने आरोप लगाया कि डीएम ने भी फोन नहीं उठाया। मंडलायुक्त ने डॉक्टर को भेजने का आश्वासन भी दिया था लेकिन सब बेअसर रहा। आखिरकार इलाज के अभाव में उसके भाई की मौत हो गई।

पीसी पटेल ने कहा कि कहने को ज़रूर कहा जाता है कि डॉक्टर भगवान का रूप होता है लेकिन यहां पर तैनात डॉ. जिनकी ड्यूटी रात में होती है वह बेहद लापरवाही करते हैं। इसी कारण उसके भाई की मौत हुई है। उसने बताया कि जब उसके भाई को बोतल लगी थी उसके खत्म होने के बाद वह तड़प रहा था। उसकी हालत बिगड़ गई थी।

उसने हर जगह फोन लगाया और डॉक्टरों के लिए चिल्लाता रहा कि, ‘मेरी मदद करिए’ लेकिन जो ड्यूटी पर डॉक्टर लगे हुए थे वह कूलर लगाए अंदर सोते रहें। आखिर में उसके भाई ने दम तोड़ दिया। इसलिए वह चाहता है कि ऐसे डॉक्टरों के ऊपर भी कड़ी से कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए।

इसके साथ ही लोगों ने हमें यह भी बताया कि उन्हें अस्पताल की व्यवस्थाओं को लेकर बहुत शिकायतें हैं। लोगों को जिस प्रकार का इलाज मिलना चाहिए उन्हें उस तरह का उपचार नहीं मिलता। डॉक्टर खास करके लापरवाही करते हैं।

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सिर्फ डॉ. विनीत सचान मरीजों का रखतें हैं ध्यान – लोग

लोगों ने हमें बताया कि यहां पर अस्पताल में सिर्फ एक ही डॉक्टर हैं विनीत सचान जो मरीजों पर थोड़ा ध्यान देते हैं।

डॉक्टर विनीत सचान ने हमें बताया कि इस समय मौसम में बदलाव के कारण अस्पताल में भीड़ रहती है क्योंकि इस समय गर्मी का माहौल है और मौसम बदला भी है। इस कारण ज़ुखाम, बुखार और डायरिया जैसी बीमारियां फैल रही हैं। मच्छर भी लग रहे हैं।

यही कारण है कि अस्पतालों में भीड़ रहती है लेकिन उनकी तरफ से पूरी कोशिश होती है कि मरीजों का अच्छे से ध्यान रखा जाए और दवाइयां भी बाहर से नहीं लाई जाती हैं। दवाई के साथ-साथ वह खासकर के मरीजों के आस-पास साफ-सफाई की तरफ भी ध्यान देने की बात कहते हैं। वह लोगों को उबला हुआ पानी पीने के लिए कहतें हैं जो लोगों को बीमारियों से बचा सकती हैं।

सरकारी अस्पताल का हाल कब सही था? हमेशा से यह लोगों की परेशानियों का कारण बना रहा। सरकार कहती है कि सरकारी अस्पताल गरीबों के लिए है, उनके सही उपचार के लिए है। ये वो सरकारी अस्पताल है जहां न तो ज़्यादा डॉक्टर्स हैं, न स्टाफ़ है, न दवाइयां हैं और न ही कोई उचित व्यवस्था। अगर है तो बस अधिकारियों की लापरवाही और सरकार की झूठी बातें। कोरोना के दौर में अस्पताल में भीड़ लग जाना साफ़तौर पर गंभीर बीमारियों को बुलावा देना है। क्या अब भी सरकार कहेगी कि महामारी में लोगों के स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जा रहा है? अस्पतालों में सुविधाओं की व्यवस्था की जा रही है?

इस खबर की रिपोर्टिंग गीता देवी द्वारा की गयी है। 

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