देश में 11 अगस्त को राखी का त्यौहार मनाया जा रहा था वहीं बांदा जिले के मरका क्षेत्र से फतेहपुर क्षेत्र के जरौली घाट जा रही एक नाव यमुना नदी में डूब गई। इस हादसे में 12 लोगों के शव बरामद हुए, 17 की जान बचाई गई और कई लापता हैं।
उत्तर प्रदेश 13 एक्सप्रेसवे वाला देश का पहला राज्य है जिनमें से छह चालू है जबकि 7 पर काम चल रहा है। एक्सप्रेसवे उत्तर प्रदेश को कहीं ना कहीं तरक्की की नई राह दे रहा है। गाँव को शहरों से जोड़ने में भागीदारी दे रहा है। पर सवाल ये है की जिस राज्य में एक गांव को दूसरे गांव से जोड़ने के लिए पुल नहीं है, उस राज्य में पुल से ज्यादा एक्सप्रेसवे जरूरी है क्या?
खबर लहरिया ने 11 अगस्त के बांदा नाव हादसे की ग्राउंड रिपोर्ट में पाया की, जिले के मरका क्षेत्र से फतेहपुर क्षेत्र के जरौली घाट के यमुना नदी पर औगासी पुल है, जो की निर्माणाधीन है। लोगों का कहना है कि पुल 10 साल से बन रहा है और अभी तक नहीं बन पाया। सवाल ये है की जहां एक 300 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेसवे को बनाने में मात्र कुछ साल या कुछ महीने लग रहे हैं वहीं एक पुल को बनाने में 10 साल लगते हैं क्या?
ज़रा सोचिए राखी के दिन नदी के छोर पर एक भाई अपनी बहन का इंतजार कर रहा हो और तभी जिस नाव से उसकी बहन आ रही हो वह नदी में डूब जाए। इस दृश्य की कल्पना करते ही कलेजा मुंह को आ जाता है। पर बाँदा नाव हादसे में ऐसे बहुत से परिवारों को इस दर्द से गुज़रना पड़ा।
“ये पुल अब तक बना होता तो ये हादसा नहीं होता, इतने लोग नहीं मरे होते। अब नाव नहीं चलनी चाहिए और पुल बनना चाहिए”, घटनास्थल पर मौजूद महिला ने कहा।
आपको बता दें कि एक तरफ जहाँ आप देश में 11 अगस्त को राखी का त्यौहार मना रहे थे वहीं बांदा जिले में मातम पसर गया था । बांदा जिले के मरका क्षेत्र से फतेहपुर क्षेत्र के जरौली घाट जा रही एक नाव यमुना नदी में डूब गई। इस हादसे में 12 लोगों के शव बरामद हुए, 17 की जान बचाई गई और कई लापता हैं। इस हादसे में 7 से 8 बच्चों की जाने भी गई हैं, जिनका ज़िक्र न तो प्रशासन ने किया और न ही किसी बड़े मीडिया चैनलों ने । गांव के निवासियों की मानें तो 40 से 50 लोग उस नाव पर सवार थे।
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पुल के नाम पर सरकार की चुप्पी
प्रशासन से नाव डूबने की वजह पूछने पर बस वही रटा -रटाया जवाब मिला की नाव में अधिक मात्रा में सवारी होने की वजह से नाव डूब गई पर किसी का ध्यान इस बात पर नहीं गया कि शायद अगर पुल बना होता तो नाव चलाने की नौबत ही नहीं आती और न ही ये हादसा होता।
सवाल यह की ऐसे हादसे कब तक होते रहेंगे और लोगों की जान कब तक जाती रहेंगी? सरकार हादसे के बाद मुआवज़ें की बजाय, हादसों की वजह का आंकलन कर कोई कठोर कदम क्यों नहीं उठाती?
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पुल निर्माण के सवाल पर प्रशासन की आना-कानी
प्रशासन की लापरवाही
नेताओं का आरोप-प्रत्यारोप
बांदा नाव हादसे पर जहां एक तरफ़ लोग रो रहे हैं, बिलख रहे हैं, वहीं नेता अपनी सत्ता की रोटी सेंकनें से बाज़ नहीं आ रहे। औगासी पुल का काम समय पर पूरा न होने के सवाल पर नेता एक दूसरे की पार्टियों पर बस इलज़ाम लगाते और अपना पल्ला झाड़ते नज़र आए।
कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने कहा, “पिछली सरकार की खराब नीतियों की वजह से जो जनता के पुल बनाने के लिए पैसे आए थे, जो समय निर्धारित था पुल बनाने का उस समय तक नहीं हो पाया”।
वहीं दूसरी तरफ क्षेत्र के विधायक विशम्भर यादव ने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा, “ भाजपा सरकार जुमलो की सरकार है, हादसे में मृत लोगों के आंकड़े छुपाने की कोशिश कर रही है, नदी से शव को निकालने में आना-कानी कर रही है”।
हमारे देश में नेता आज तक यही तो करते आए हैं। खुद सवालों से बचने के लिए दूसरे पार्टी पर इलज़ाम लगाकर लोगों का मुद्दे से भटकाते हैं ताकि उन्हें जनता को जवाब ना देना पड़े। बांदा नाव हादसे में गई जानें न जाने कितने अनगिनत सवाल छोड़ गई हैं। पर जवाब के नाम पर हमें मिला तो नेताओं का आरोप-प्रत्यारोप, प्रशासन की आना-कानी। न जाने प्रदेश में यह हाल कब तक रहेगा और न जाने कितने मासूम लोगों की जाने जाएंगी और ना जाने कितने लोग अपने परिजनों को खोते रहेंगे? हादसे में गई लोगों के जानों की जवाबदेही आखिर कौन होगा?
इस आर्टिकल को खबर लहरिया के लिए प्रीति यादव द्वारा लिखा गया है।
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