हमारा समाज आज भी सबको बराबर समानता का दर्जा नहीं देता। कहने को सब कह देते हैं की सबको बराबर का अधिकार है हम सबको बराबर समझते हैं। लेकिन अगर देखा जाए तो आज भी हमारे समाज में बहुत भेदभाव है। बेटी-बेटा में भेदभाव, जातिगत भेदभाव अगर कोई शरीर से किसी चीज में नॉर्मल इंसानों के बराबर नहीं है, किसी के हाथ में दिक्कत है, किसी के पैर में दिक्कत है, किसी को पोलियो हो गया है, कोई दृष्टिहीन है उनमें भी भेदभाव ऐसा नहीं है कि हर इंसान की सोच एक जैसी है। बदलाव भी बहुत है बहुत से अच्छी सोच वाले भी लोग हैं।
चित्रकूट जिले में दृष्टि नेत्रहीन बालिका विद्यालय है। जहाँ अलग-अलग जिले से नेत्रहीन लड़कियां आई हैं जहाँ उन्हें उन्हें चूल्हा चौका, गाना, हर तरह से सीख रही हैं। कहते हैं ना कि अगर थोड़ी सी कमी आ गई आजकल हमारा समाज अच्छी-अच्छी लड़कियों को तो नकार देता है उनको बराबरी का दर्जा नहीं देता। फिर इन नेत्रहीन बच्चियों को समाज कैसे जगह देगा? उनके खुद के काम वह कर नहीं पाती तो उनसे शादी कौन करेगा। इसी सोच के साथ दृष्टिहीन बालिका विद्यालय के शंकर लाल गुप्ता ने यह निर्णय लिया इन बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनको कुछ ट्रेनिंग दी जाए ताकि वह आगे जाकर अपने लिए कुछ कर सकें। चार पैसे का काम करें जो उनके काम आए। अगर उनसे कोई शादी करता है तो वहां पर भी जाकर वह खुद खाने के लिए बना सके और अपने पति या ससुराल वालों के लिए खाना बना सकें।
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शंकर लाल गुप्ता ने बताया कि यहां से लड़कियां पढ़ तो लेती हैं। आठवीं करने के बाद यह आगे की पढ़ाई नॉर्मल बच्चे के साथ करती हैं लेकिन इसके बाद भी इन बच्चियों की शादी के लिए कोई रिश्ते नहीं आते हैं। तो लोग यही पूछते हैं क्या घर का काम कर लेती है क्या खाना बना सकती है और अगर नहीं में जवाब हुआ तो इनकी शादी नहीं हो पाती तो इसलिए मैंने सोचा कि इनको कम से कम इतना तो सिखाया जाए कि खुद का खाना बना सकें। इसी सब सोच के साथ इन लड़कियों को होम मैनेजमेंट की 3 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है जिससे यह लड़कियां खाना बनाना सीख सकें। साड़ी पहनना सीख सके, मेकअप करना सीख सकें। फेशियल, कपड़ों में प्रेस करना कपड़े धोने दाल, चावल पकाना, सब्जी पकाना हर तरह का बनाना सीखते हैं। यह सारी चीजें कर लेती हैं सिखाया जाता है। यहां पर तो छोटी-छोटी चीजें जो होम मैनेजमेंट की है वह सब सीख रही है।
इसके अलावा स्वरोजगार के तहत यह लड़कियां मोमबत्ती बनाना अगरबत्ती बनाना डिब्बे बनाना यह सब काम भी सीख रही हैं ताकि आगे जाकर आत्मनिर्भर बन सकें। जब लड़कियों से बात की तो लड़कियों ने बताया कि हमें पहले गैस के करीब जाना मे भी डर लगता था। और हमारे घर वाले भी हमें काम नहीं करने देते थे। किचन में तो बिल्कुल नहीं जाने देते थे और हमें भी बहुत ही ज्यादा डर लगता था कुछ भी काम करने में या गैस होने तक में लेकिन अब हम यहां पर होम मैनेजमेंट की ट्रेनिंग करने के बाद खुद का तो खाना बना ही लेते हैं। यहाँ से सीखने के बाद 10 लोगों को भी बनाकर खिला सकते हैं। अब वह इतना आत्मनिर्भर हो गई हैं कि अपना खुद का काम करके चार पैसा कमा सकें और किसी के आगे हाथ ना फैलाएं।
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