खबर लहरिया जवानी दीवानी पुरुषो के क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही महोबा की अर्चना

पुरुषो के क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही महोबा की अर्चना

जिला महोबा ब्लाक जैतपुर कस्बा कुलपहाड़ किशोर गंज वार्ड नंबर 4 के रहने वाली 14 वर्ष की लड़की अपने जिले का नाम रोशन किया है लड़की बताती है कि दिवारी खेलने का मुझे बहुत शौक है मैं बचपन से ही तिवारी खेलती हूं जब से मेरी उम्र 5 साल की थी जब से मैं अपने चाचा दादा भाइयों के साथ में शुरुआत किया था जैसे ही मुझसे बनने लगी आज से लगभग 8 साल हो गए हैं जो बहुत दूर-दूर दीवारी खेलने का प्रदर्शन करती हूं

दिवारी खेलना बहुत चुनौती भरी खेल होता है लेकिन मैं हार ना मानी हूं और ना मानूंगी क्योंकि मुझे अपना और अपने माता-पिता का नाम रोशन करना है दिवारी महिलाएं नहीं खेलती हैं और सबसे ज्यादा मैं लड़कों के साथ में रहती हूं जो मुझे बहुत शौक है बाहर जाना दिवारी खेलना आज से बसंत अवार्ड मुझे मिल चुके हैं

इस दिवारी खेलने से मेरी उम्र लगभग 14 साल है कक्षा 9 में इस साल पढ़ाई करती हूंवैसा ही मैं पढ़ाई करती हूं पढ़ाई के साथ-साथ दिवारी भी मैंने अपना लिया है खेलना जैसे कहते हैं कि रानी लक्ष्मीबाई थी वह किसी को डरती नहीं थी वैसा ही मैं लाठियों से डरती नहीं हूं दिवारी खेलने में दिवाली खेलने में सबसे ज्यादा हाथों का सावधानी और नजर की सावधानी होती है अगर कोई चूक गया तो खतरा ही रहता है पर ऐसा आज तक मुझे कुछ नहीं हुआ है मैं बराबर लड़कों के साथ लाठी डंडा से खेलती हूं महोबा जिले में कोई जरूरी नहीं है कि दीपावली में ही दिवारी खेली जाती हैंकृष्ण लीला, वीरता प्रदर्शन के साथ और कई चीजों की संकेत है ये दिवारी नृत्य

जैसे कि गांव में छोटे-छोटे मेला जैसे प्रोग्राम होते ही रहते हैं तो हम लोगों को अन्य गांव के बुलाते हैं खेलने के लिए जैसे ही बुलाते हैं तो हमें तो पहचान नहीं पाते हैं कि लड़की है या लड़का है जो दिवाली खिलाते हैं वह मेक्सिको करते हैं कि यह लड़की की पहचान है और लड़की है लोग देखते रह जाते हैं कि लग तो नहीं रहा है कि लड़की है लड़कों की तरह रहती है और लड़कों की ही तरह खेलती है जब मैं दिवाली खेलने मंच में जाती हूं मेरा नाम आता है और मेरे पिताजी का नाम आता है तो मुझे बहुत गर्व महसूस होता है कि अगर मैं दिवारी नहीं खेलती तो शायद है मेरा नाम भी नहीं आता और तालियों की भी बारिश हो जाती है