खबर लहरिया Blog 26/11 हमला – कई ऐसे परिवार जिनकी नहीं सुनी गई कहानियां, न ही मिला मुआवज़ा

26/11 हमला – कई ऐसे परिवार जिनकी नहीं सुनी गई कहानियां, न ही मिला मुआवज़ा

26/11 में क्या हुआ, कैसे हुआ इसके बारे में तो बहुत बात की गयी लेकिन किसी ने उन लोगों की कहानियों के बारे में नहीं जाना जो हमले में तो बच गए थे लेकिन उनका जीवन उसके बाद कभी भी सामान्य नहीं रहा।

                                                                                                                        साभार – बिज़नेस स्टैण्डर्ड डॉट कॉम

आज मुंबई में हुए 26/11 के हमले को 13 साल बीत चुके हैं। जिन परिवारों ने इस हमले में अपने चाहने वालों और अपने करीबियों को खोया, यह दिन उनके लिए एक भयानक दिन को एक बार फिर से जीने की तरह होगा। कभी सोचती हूँ तो इस हमले के बारे में तो मेरे अंदर कई सवाल खड़े हो उठते हैं। हममें से कई लोग उस दौरान, उस साल, उस घटना की जगह नहीं थे लेकिन फिर भी तस्वीरों को देखने भर से ही हमारी रूह कांप उठती है।

क्या ये परिवार इस हमले के बाद कभी दोबारा से खुशहाल हो पाए होएंगे ? परिवारों ने अपने सदस्यों को खोने के बाद किस तरह से अपनी ज़िंदगियों को शुरू किया होगा ? उन्हें कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा होगा? वह उस समय से लेकर आज तक कभी चैन की नींद ले पाए हैं या नहीं ? जब भी आज के दिन के बारे में सोचती हूँ, न जाने ऐसे ही कितने ही सवाल मेरे ज़हन में उबाल मारने लगते हैं।

महिलाएं, घर के बुज़ुर्ग और बच्चे, उनके ज़हन में, उनके जीवन में इस घटना का क्या असर पड़ा? बहुत बेचैनी रही जानने की लेकिन घटना के बाद कभी इन परिवारों की कहानियों और समस्याओं को मैंने किसी भी मुंह-मिट्ठू अधिकारीयों द्वारा कहते नहीं सुना। हां, लेकिन आज बहुत कुछ उनकी याद और उनकी शहादत के लिए किया और कहा जा रहा है।

जो सैनिक इस हमले में शहीद हुए, उनके परिवारों की स्थिति क्या है? शायद ही, आज के दिन के आलावा किसी ने भी जानने की कोशिश की होगी। हर हमले और घटना के बाद, हमारी, जी हाँ हमारी चुनी हुई सरकार दो मीठे शब्द, मुआवज़ा और आश्वासन लेकर उनके घरों का दरवाज़ा खटखटाने लगती है जो हमले में शहादत हो गए।

जिन सैनिकों ने जनता और देश के लिए अपने परिवारों को छोड़ा, अपनी जान गवाई, क्या ये सब उनके परिवारों के लिए काफ़ी है? जिन परिवारों के पिता, पति, सैनिक,पत्नी, माँ, बहन, बेटा-बेटी, सब हमले में चले गए, वह फिर से किस तरह से उठाकर खड़े हुए होंगे? यहां सिर्फ सवाल ही है।

कहते हैं कि आज कल गूगल पर ढूंढ़ने पर सब कुछ मिलता है। मैंने भी सोचा कि शायद मेरे सवालों के जवाब वहां मिल जाएंगे। मैंने लिखा, “उन परिवारों का क्या हुआ जिनके घर के सदस्य इस हमले में मारे गए? क्या उन्हें समय से मुआवज़ा मिला ? क्या उनकी कहानियों को सुना गया? ”

ये भी पढ़ें – नग्न्ता लिबास नहीं ओढ़ती और मैं नग्न हूँ

मेरे जवाब में सिर्फ गिने-चुने आर्टिकल थे जो सामने आये। मैं सामने आये हुए जवाब से संतुष्ट नहीं थी। मैंने इस दौरान जाना कि 26/11 के हमले को अंजाम देने से पहले आतंकवादियों द्वारा पांच मछुआरों की हत्या की गयी थी। ज़ी न्यूज़ की 1 दिसंबर 2020 की रिपोर्ट में बताया गया कि 12 सालों बाद गुजरात सरकार द्वारा मछुआरों के परिजनों को पांच-पांच लाख रूपये दिए गए थे।

मुआवज़े से पहले मृतकों के परिजनों ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था। परिवार का कहना था क्यूंकि राज्य सरकार ने उन्हें मृत घोषित नहीं किया था तो उन्हें मुआवज़ा मिल पाना सम्भव नहीं था। जिसके बाद, जानकारी के अनुसार नवसारी की दीवानी अदालत ( राज्य से संबंधित मामले दीवानी अदालत में आते हैं) ने फरवरी 2017 में तीनों मछुआरों को मृत घोषित किया था।

न जाने ऐसे ही कितने परिवार होंगे, जिन्हें राज्य सरकार ने मृत घोषित नहीं किया होगा। वह अभी अदालत द्वारा किसी सुनवाई और उनके मुआवज़े का इंतज़ार कर रहें होंगे।

इसके आलावा बॉम्बे हाउस, जिसमें आग लगी थी और जिन कर्मचारियों की जान इस दौरान गयी, टाटा कम्पनी द्वारा उनके परिवारों को मुआवज़ा और आर्थिक सहायता देने का भी वादा किया गया था। ( स्त्रोत – हिंदुस्तान टाइम्स, 11 फरवरी 2011 )

हालाँकि, ऐसी कोई रिपोर्ट सामने नहीं आई है जिससे यह पता चले कि 26/11 हमले में कितने परिवारों को मुआवज़ा मिल पाया है। ऐसे में राज्य सरकार और मौजूदा सरकार पर सवाल उठाना लाज़मी है। जो आश्वासन आज दिए जा रहें आखिर लोगों को उनसे क्या ही लाभ है ? क्या ये कहे जाने वाली संवेदनशील बातें उनके जीवन को सजा सकती है ? हमले में तकरीबन 160 लोग जिहादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का शिकार हुए थे। क्या सरकार ये दावे से कह सकती है कि सबको मुआवज़ा मिला? जबकि मछुआरे वाले मामले के बाद यह बात तो कुछ हद तक साबित है कि बहुत से मृत व्यक्तियों को राज्य सरकार द्वारा मृत घोषित तक नहीं किया गया था। फिर हर 26/11 के दिन किस बात की सांत्वना दी जाती है ?

ये भी पढ़ें – पुरुष दिवस : पुरुषों का सामाजिक चित्रण, पुरुष होने की वास्तविकता नहीं