खबर लहरिया औरतें काम पर योगी का एक साल: मंगल या दंगल?

योगी का एक साल: मंगल या दंगल?

शुरू कर रहे हैं एक ख़ास श्रृंखला जिसमें भाजपा सरकार के साल भर पूरे होने पर, हम उत्तर प्रदेश में उनके द्वारा शुरू किये गए अभियानों का विश्लेषण करेंगे। साथ ही जानेंगे की राज्य की परेशानियों के समाधान निकालने के वादों पर कितनी खरी उतरी है योगी सरकार      

पानी की कमी इस साल बुंदेलखंड में गर्मिंयोंके आने से पहले ही शुरू हो गई है

 

हाल ही में दक्षिण अफ़्रीका में संपन्न हुई क्रिकेट सीरीज की श्रृंखला के दौरान एक खबर ने सभी का ध्यान खिंचा था। यह विराट कोहली की कोई शानदार पारी की खबर नही थी बल्कि यह खबर थी दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन में  पड़ने वाले सूखे की, जिसके चलते खिलाड़ियों को वहां परेशानी हुई। वो शहरजीरो दिवसके करीब है जो 1 जून से शुरू होने वाला है, जब शहर में पीने के लिए भी पानी नहीं बचा होगा। ऐसे में वहां घरों और कार्यालयों में पानी के स्रोतों को हटा दिया जाएगा।
यह चौंकाने वाली खबर है कि आज केप टाउन जो एक आधुनिक शहर है वो  21 वीं सदी में जलवायु परिवर्तन के कारण पानी के लिए तरस रहा है। हालांकि, यहाँ जलवायु परिवर्तन ही नहीं बल्कि सत्तारूढ़ दलों के शासन और प्रबंधन में उदासीनता होने के कारण भी केपटाउन पानी की समस्या से जूझ रहा है, हालांकि इस साल पानी की कमी होने से आने वाले सालों में पानी के लिए युद्ध होने के संकेत मिलते हैं।
कुछ ऐसा ही हाल बुंदेलखंड का है जहाँ के चित्रकूट जिले के रामपुर गांव में पानी की समस्याएं अपने पैर पसारे हुए हैं। रामपुर गांव की निवासी वंदना यादव ने कहा, “यहाँ लोग जमीन के नीचे बोरिंग कर अपने और अपने खेतों के लिए पानी पाने की कोशिश करते हैं लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं आता।वंदना पानी के लेने के लिए कम से कम तीन किलोमीटर की दूरी तक चल कर जाती हैं। यह एक यात्रा है जिसे वह हर दिन कई बार दोहराती हैं। वह पानी को साफ़ करने के लिए अपने पास एक साफ़ कपड़ा रखती हैं जो पानी छानने के काम आता है।  हमारे सवालों के जवाबों से वह गुस्से से कहती हैं किहम इसी पानी को ले जायेंगे और पियेंगेऔर इसका क्या करेंगे? हमें पता है ये हमारे लिए हानिकारक हो सकता है लेकिन हम इसे पिए तो और क्या करें?”

रामपुर गांव की कहानी देखिए

गीता देवी बताती हैं कि वह पानी लाने के लिए हर रोज तीन किलोमीटर की दूरी तय करती हैं, “एक दिन में मेरे घर में 10 बाल्टी पानी लगता है वह एक दिन में पांच से 10 बार पानी लेने के लिए चक्कर लगाती हैं, वह बाल्टीयों को अपने सर पर रख कर लाती हैं, एक बार में कम से कम तीन से चार बाल्टी उनके सर पर होती हैं।
रामपुर में भूजल संकट के बारे में बात करते हुए, गांव के प्रधान श्रीकृष्ण का कहना है,  “आज की तारीख में, पूरे ग्राम सभा में, केवल एक ही तालाब है, जिसके पानी का उपयोग लोग करते हैं। सभी कुओं और हेंडपंपों में पानी का स्तर नीचे जा चूका है हालांकि बोरिंग करायी गयी है लेकिन एक इंच और आधे से ज्यादा स्तर नहीं बढ़ पा रहा है। यहाँ के सूखे कुएं और गिरता पानी का स्तर, बिगड़ते मौसम के कारण है, यहाँ बारिश नहीं होती जिसकी वजह से पानी के स्त्रोतों में भराव नहीं हो पाता।
उन्होंने आगे कहा कि यहाँ करीब पांच हजार की आबादी के लिए 40 हैंडपंप है जिनमें से केवल 18 हैंडपंप काम कर रहे हैं। कुल 20 हैंडपंप पानी देने की स्तिथि में हैं।  प्रधान ने बताया कि हैंडपंप बनाने के लिए  पाइप आदि तैयार हैं लेकिन जमीन में पानी ही नहीं है वंदना ने भी इस बारे में बताया था कि पानी पीने के लायक ही नहीं है और गाँववालों के पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने इस महीनें की शुरूआत में कहा था कि देश के 91 प्रमुख जलाशयों में पानी का स्तर 2% कम हो गया है। वर्तमान में यह अपनी कुल क्षमता का 39% है। यह आंकड़ा देश में पानी की समस्या को पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं कर सकता है, लेकिन चित्रकूट जिले के रामपुर गांव के जल  संकट को उजागर करने के लिए शायद यह आँकड़े जरूरी हैं।
रामपुर, करीब 70 साल से पानी की समस्या से जूझ रहा है। यहाँ गर्मियों में लोगों को गड्ढे से पानी निकाल कर पीना पड़ता है। लेकिन इस साल लोगों को जनवरी से ही पानी की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। जिसके कारण, सर्दियों की फसलें भी पानी होने से बुरी तरह से प्रभावित हो गई है। अब पीने, खाना पकाने और नहाने के लिए पानी लाना एक कठिन काम हो गया है। जैसा कि प्रधान कहते हैं, “जब से लोग यहाँ बसे हैं तब से यहाँ पानी का कोई स्थायी स्रोत नहीं रहा है। लेकिन तब ये अच्छा था क्योंकि यहाँ के कुएं, तालाब और झीलें अच्छी बारिश के कारण भरे रहते थे।
गांव के एक निवासी गंगा प्रसाद ने दुःख के साथ बताया कि कैसे बारिश होने की वजह से उन पर मुसीबत आन पड़ी है, वह कहते हैं कि यहाँ बारिश है नदी, कुएं और ही तालाब।
इस पर अपनी भेंसों को लेकर परेशान युवराज कहते हैं कि यहाँ मेरे नहाने के लिए ही पानी नहीं है, उस पर मैं इनको कैसे नेहलाऊ… हमें पीने तक का पानी ठीक से नहीं मिलता और जो मिल रहा है वो भी जल्दी सूख जायेगा।
रामपुर की स्थिति पर चित्रकूट के एक स्थानीय विधायक के साथ हुए एक साक्षात्कार में  हमने सरकार के तरफ से किये जाने वाले प्रयासों को जानने की कोशिश की। उन्होंने बताया किसभी तालाबों  और कुएं आदि के निरक्षण के बाद हमने रामपुर ग्राम पंचायत के सभी मजारों में पानी प्रदान करने के लिए बुंदेलखंड विकास निधि को 25 करोड़ रुपए की मांग भेजी है और यह अनुमोदित होने के चरण पर पहुंच चुकी है। हमने रामपुर और कल्याणगढ़ के साथ आने वाले सभी क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति करने के लिए एक विस्तृत रणनीति तैयार की है।हैंडपंप वहां बने रहेंगे लेकिन नई जल योजना के तहत हम बोरिंग करेंगे, टैंकों का निर्माण और पानी की पूर्ति करने के लिए इस नई योजना को जल्द लागू करेंगे।
हमने उन्हें बताया कि रामपुर के निवासियों का दावा है कि भूजल का स्तर 300 फीट है। इस पर विधायक पटेल ने कहा कियहां अगर जल स्तर 400 पर भी है, तो भी हम उन्हें पानी देंगे।पहले से ही कम पानी के  स्तर पर बोरिंग कर कैसे पानी आएगा? इस तरह के दावे हमें अधिकारियों की ओर से जल प्रबंधन और संरक्षण के संबंध में उनकी उदासीनता को दर्शाता है। दरअसल, इस तरह की सोच ही सबसे बड़ा खतरा है जिसके परिणाम अंतरराष्ट्रीय रुप से खतरों के साक्षी हैं।
2017 में मानसून से पहले, जल संसाधन मंत्रालय ने सूखाग्रस्त क्षेत्रों के सभी राज्यों में मनरेगा के तहत रोजगार देने की सलाह दी थी। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार, केवल पिछले दशक में ही केंद्र सरकार ने जल संचयन संरचनाओं के निर्माण के लिए 15,000 करोड़ रुपए विशेष रूप से खर्च किए हैं।इस सभी धन के साथ, बुंदेलखंड में 116,000 से अधिक कटाई ढांचे का निर्माण 10 साल (2006 से 2015) में किया गया है। इनमें 700 चेक बांध और 236 लघु सिंचाई परियोजनाएं शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सूखे से लड़ने के लिए बारिश का पानी कम से कम फसलों के लिए पर्याप्त होना चाहिए।

योगी का एक साल: मंगल या दंगल

दरअसल, सरकार द्वारा किये जाने वाले समाधान इस समस्या की जड़ हैं। बुंदेलखंड ने ऐतिहासिक जलाशयों को अब तक बचा के रखा हुआ है। जिसमें पारंपरिक जल स्रोत, तालाब, क्षेत्र के बनावट सर्वोत्तम हैं। इनकी जमीन चट्टानों से बनी है जिसमें ग्रेनाइट और गनीस जैसे ठोस पत्थर इस्तेमाल किये गए हैं पानी व्यर्थ होने से बचाते आये हैं। स्थानीय लोग हमेशा से पानी के लिए तालाबों पर निर्भर रहे हैं, लेकिन ये तालाब अब सूख गए हैं। इन पारंपरिक स्रोत को फिर से जीवंत करने पर ध्यान देने के बजाय, सरकार भूजल प्रबंधन की हेराफेरी में लग गई है, जिसके लिए अधिक से अधिक नहरों और बांधों और अन्य रणनीतियों के निर्माण में धन और संसाधन दोनों को व्यर्थ करती है।खन्ना गांव से जुड़े एक मामले पर आधारित।
लेकिन यहाँ,  सबसे ज्यादा परेशान करने वाला अब क्या है,  2018 के शुरूआती दौर में ही शुरू हुआ पानी का संकट! खबर लहरिया पिछले 16 सालों से लगातार इन सूखाग्रस्त इलाकों की रिपोर्टिंग करता आया है। हमने सबसे ज्यादा सूखे दिनों और महीनों अप्रैल, मई और जून के बीच में यहाँ रिपोर्टिंग की है। यह पहली बार है कि जनवरी के आखिरी दिनों में हमारी इस रिपोर्टिंग की शुरुआत हुई है। प्रधान कृष्ण के शब्दों में, यह उनके लिए एक अशुभ समाचार है कि  “मार्च के अंत तक, यहां बड़े पैमाने पर, पानी की भारी कमी हो जाएगी। हम नहीं जानते कि अब क्या होने वाला है।
इस साल की शुरुआत ही परेशान करने वाली हुई है, बुंदेलखंड में युद्ध होने वाला है।

हमारे इस लेख का अंग्रेजी रुपंतार द वायर में यहां पढ़िए