जिला महोबा। कमल ककड़ी नाम ही इतना सुन्दर है तो खाने में कितनी स्वादिष्ट होगी। क्या आपको पता है कहां से और कैसे मिलती है कमल ककड़ी? नहीं पता है तो आइये आपको मिलवाते है बेलाताल के लोगों से जो कमल ककड़ी खोदनें का काम करते हैं। यहाँ की भाषा में कमल ककड़ी को मुरार कहते है और चित्रकूट में इसे भसीड़ा के नाम से जानते हैं।
खचोरा का कहना है कि पन्द्रह बीस दिन से मुरार खोदने का काम कर रहे है। दो मन मिट्टी खोदने के बाद ढाई सौ ग्राम का एक मुरार निकलता है। मुरार को बेंचकर अपना परिवार चलाते है परिवार में चार बच्चें हैं।
गंगादीन ने बताया कि मंहगाई ज्यादा है काम नहीं मिलता है इस कारण मुरार खोदनें का काम करते है। खानें और बेंचने के लिए खोदते है। सुबह से शाम तक चार पांच किलो खोद लेते है।मुरार बाजार में पचास रूपये किलो बिकता है।
लखा ने बताया कि हम बारों महीने मुरार खोदनें का काम करते है क्योंकि हमें कोई काम नहीं मिलता हैं।
कमल ककड़ी खाने में स्वादिष्ट होने के साथ रोगों को भी दूर करती है। इससे पाचन में फायदा तो मिलता ही है साथ ही ये ब्लडप्रेशर को भीं नियन्त्रित करनें में उपयोगी होती है।
बाई लाइन-श्यामकली