इस लेख को खबर लहरिया की पत्रकार प्रियंका सिंह ने लिखा है। यह लेख उनकी राय और अनुभव पर आधारित है।
चार सौ साल पुरानी एक भेदभावकारी और रूढि़वादी परंपरा को तोड़ कर महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी गई। यह महिलाओं के बराबरी हासिल करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। लेकिन किसी भी रूढि़ या सामाजिक बुराई को तब तक नहीं बदला जा सकता जब तक कि उसके संस्थानिक स्वरूप को न बदल दिया जाए। मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति के बाद द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि शनि मंदिर में औरतों के प्रवेश से बलात्कार बढ़ जाएंगे क्योंकि शनि ‘पापों वाला ग्रह’ है!
शंकराचार्य स्वामी ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र में सूखा शिरडी साईं बाबा की पूजा के कारण पड़ा है! शंकराचार्य, पंडे और पुजारियों के रूप में आज भी मौजूद है। महिलाओं और दलितों के लिए अपमानजनक व्यवस्था करने वाली मनुस्मृति कानून के रूप में भले नहीं लागू हो, लेकिन उसने हमारे समाज का ढांचा तैयार किया है। हिंदुओं के शीर्ष धर्मगुरु यदि यह मानते हैं कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश से धर्म भ्रष्ट न भी हो तो उनका बलात्कार हो जाएगा, तो उनकी यह टिप्पणी हिंदू धर्म, मंदिरकृमंठों की दयनीय हालत एवं औरतों के प्रति धर्मगुरुओं की अमानवीय मर्दवादी सोच को प्रदर्शित करती है।
वे जानते हैं कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देना पुरुषों के एकाधिकार में हिस्सेदारी देना है। चूंकि इसके पीछे कोई तर्क नहीं है, इसलिए सिर्फ बलात्कार की धमकी ही उन्हें मंदिर आने तक रोक सकती है।
यह सही है कि धर्म का मायाजाल स्त्रियों के लिए चैतरफा जकड़न से अधिक कुछ नहीं, लेकिन साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि जिन क्षेत्रों में पुरुष आराम से जा सकता है, स्त्री के लिए वह क्षेत्र वर्जनीय बनाए रखने का मतलब है कि वह कमतर मनुष्य है। इस भेदभाव को परास्त करना भी महिलाओं की जीत है।