चुनावी माहौल है। देश के विकास के दावे किए जा रहे हैं। हरेक नेता खुद को देशभक्त बता रहा है। कुछ बयानों के जरिए देशभक्ति का प्रमाण देने की कोशिश भी की गई। हाल ही में भाजपा के एक नेता ने कहा कि जो लोग नरेंद्र मोदी के विरोधी हैं वह पाकिस्तान चले जाएं। एक दूसरा बयान आया कि आजमगढ़ आतंकवादियों के लिए सुरक्षित अड्डा है। राहुल गांधी ने मुजफ्फरनगर दंगों के मामले में कहा कि यहां के कुछ मुस्लिम आई.एस.आई., यानि पाकिस्तान की खूफिया संस्था, के लिए काम करते हैं। ऐसे में करीब डेढ़ सौ साल पहले पैदा हुए एक चिंतक, लेखक और कवि रवींद्रनाथ टैगोर के नजरिए से देशभक्ति के मायने समझना जरूरी है।
टैगोर ‘कट्टरता’ के विरोधी थे। फिर वह चाहे वह धार्मिक कट्टरता की बात हो, राजनीतिक कट्टरता या फिर राष्ट्रीय कट्टरता। टैगोर ने साफ कहा कि ‘अगर हिंदू होने का मतलब मुसलमानों से नफरत करना है तो मैं अपनी हिंदू होने की पहचान को बदलना चाहूंगा।’ उनका नजरिया ‘मानवतावादी’ था। लोगों को समझने और दुुनिया को जानने के लिए उन्होंने पूरी दुनिया घूमी और नतीजे पर पहुंचे कि कट्टरता हमेशा नफरत पैदा करती है। टैगोर के अनुसार देशभक्त होने का मतलब है कि आप अपने देश या जिस समाज में रह रहे हैं उसके लिए कुछ ऐसा करें जिससे वहां के लोगों का विकास हो। कट्टर राष्ट्रवादिता नफरत सिखाती है। जिससे लोगों को नुकसान पहुंचाता है। यही कट्टरता इन दिनों राजनीति में छाई है। रवींद्रनाथ टैगोर के जन्मदिन पर उन्हें याद करते हुए उनके विचारों को अपना सकें तो राजनीति बदल सकती है।
देश के लिए खतरनाक है कट्टरता
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