सावन का महीना शुरू होते ही चित्रकूट जिले में ढोलक की धुन सुनने को मिलेगी। हर गांव और कस्बे में ढोलक बेचने वाले देखने को मिलते हैं।
ढोलक बनाने वाले इसमाइल, यूनुस, मुश्ताक और हिकमत अली ने बताया कि ढोलक बनाने का काम उनके परिवारों में पीढि़यों से होता आ रहा है।
महोबा शहर में कजली महोत्सव की तैयारियां ज़ोर शोर से चल रही हैं। जिला बाराबंकी से आए मोहम्मद सफर और टल्लन ने बताया कि वे ढोलक बनाकर अपना पेट पालते हैं। ढोलक बनाने का सामान औरैया जिला से लाते हैं। इसे आम और कटहल के पेड़ की लकड़ी से बनाते हैं। इनका कोई ठिकाना नहीं है। ये अलग अलग गांव जाते हैं। ऐसे उन्हें बहुत सारे गांव और शहर घूमने का मौका मिलता है।
मध्य अमेरिका में होंदुरास नाम के देश में पिछले सौ से ज़्यादा सालों से हर साल मई से जुलाई तक मछलियों की बारिश होती है। आसमान में काले बादल गरजते हैं, बिजली कड़कती है, और दो तीन घंटे बारिश होती है। बारिश के बाद ज़मीन पर सैकड़ों छोटी-छोटी जीवित मछलियां रह जाती हैं। लोग इन्हें पकाते हैं और खाते हैं।