लोक सभा चुनाव करीब ही हैं। टी.वी., रेडियो, अखबार चुनाव की खबरों से भरे पड़े हैं। आचार संहिता के कारण चुनाव प्रचार का हल्ला तो रुक गया है पर चैराहों, चाय की दुकानों में चर्चाएं जारी हैं। कोई नेता जो कभी भी किसी इलाके में नहीं गया है, वहां से उम्मीदवार है। अगर जनता वोट दे तो किस आधार पर केवल पार्टी के नाम पर या उम्मीदवार का काम देखकर। भाजपा के नरेंद्र मोदी हों या आप के अरविंद केजरीवाल, सपा के मुलायम हों या फिर कांग्रेस के राहुल सभी जनता से वादे करने और प्रचार में लगे हैं। जनता को बताया जा रहा है कि दूसरी पार्टी के नेता कामचोर और भ्रष्ट हैं। पर ज़़मीनी स्तर पर मुद्दे क्या हैं, इस पर बात नहीं हो रही। भाजपा तो नरेंद्र मोदी के आगे पीछे कुछ और नहीं देख पा रही है। यह वही मोदी हैं, जो गुजरात दंगों में आरोपी रहे हैं। उत्तर प्रदेश और गुजरात में वोट बटोरने के लिए मोदी दोनों जगह से खड़े हो रहे हैं। मोदी ने बनारस इसलिए चुना क्योंकि इससे सटे बिहार पर भी असर पड़े। सवाल यह उठता है कि गुजरात में जो विकास की तस्वीर पेश की जा रही, वह कितनी सही है। मीडिया तो मोदी गान में लगे हैं। लोग कह रहें हैं कि जैसे मोदी ने गुजरात राज्य का विकास किया वैसे ही पूरे देश का करेंगे। पर थोड़ा गहराई में जाएंगे तो गुजरात की हकीकत प्रचार से अलग है। असल में गुजरात में बड़ी कम्पनियां और अमीर वर्ग के लोगों को ही फायदा है। स्कूल में बच्चों कि स्थिति हो या कुपोषण, स्थिति काफी गंभीर है। प्रचार यह भी हो रहा है कि मोदी में जल्दी निर्णय लेने और शक्ति से शासन करने की क्षमता है। तो क्या गुजरात दंगों में – जहां हजारों लोग मरे – मोदी का निर्णय सही था? जिस बल का प्रयोग वहां अल्पसंख्यकों पर किया गया वह सही था? गुजरात दंगों में अपने पति को खो देने वाली जाकिया जा़फरी दस सालों से न्याय की मांग कर रहीं हैं। जनता को चाहिए कि गहराई से विचार करके ही अपना नेता चुने।
झूठे वादे, झूठे इरादे
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