खास 6 तरह के पान बंगला, देसावरी, कपूरी, मीठा, कलकतिया और साँची यहां पाये जाते हैं। राज्य के पान अनुसंधान केन्द्र के वरिष्ठ सहायक शोध अधिकारी राम प्रसाद वर्मा ने बताया कि इनमें देसावरी सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। यही नहीं बुन्देलखंड इलाके में जहाँ पानी की कमी है वहां पान बहुत उपयोगी है। इसमें पानी की मात्रा अस्सी प्रतिशत होती है। इसे खाने से प्यास भी कम लगती है। जैसे इलाके में जहाँ पान किसानों को खेती के आधुनिक तरीके सिखाने के लिये केन्द्र की तरफ से कार्यशालाएं की जाती हैं।
कैसे होती है पान की खेती
पान की एक फसल तैयार करने में कम से कम तीन महीने लगते हैं। फारवरी मार्च से शुरू होकर मई -जून तक पान खाने लायक हो जाता है।हालांकि इसकी बेल बनकर तैयार होने में लगभग पूरा साल लग जाता है। दिन में तीन बार इसकी सिंचाई की जाती है। बेल को पतली सीकों द्वारा चढ़ाते हैं। सीकों से लिपटकर ये छत तक फ़ैल जाती हैं। ऊपर लोहे के तारों पर फूस की छत बनाई जाती है।
आगे कौन उगाएगा पान
महोबा ब्लाक के रामनगर इलाके में रहने वाले वीरेंद्र कुमार चौरसिया पान किसान हैं। सिचाई करते हुए उन्होंने बताया कि पान की खेती का हुनर उन्हें अपने दादा से मिला है। दादा को ये हुनर उनके दादा से मिला था। लेकिन आगे की पीढ़ी अब खेती नहीं करना चाहती है। क्यूंकि पान की खेती में मेहनत ज्यादा है और फायदा कम। सरकार भी बड़े किसानों के लिये ही योजनायें चलाती है। जिन किसानों के पास 150 सौ मीटर वर्ग वाले किसानों को 7 5 0 0 रुपय की मदद और खेती के उपकरण भी देती है। यहीं के एक और पान किसान देवीदीन चौरसिया की भी सरकार से यही शिकायत है।