खबर लहरिया फैजाबाद कैफ़ी और मैं

कैफ़ी और मैं

 कर चले हम फिदा जान ओ तन साथियों अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों‘ यह गाना आपने जरूर सुना होगा। गाने के शब्द उर्दू के मशहूर शायर कैफी आजमी ने लिखे हैं। कैफी 1919 में आजमगड़ के एक गाँव मिजवां में पैदा हुए थे। यह ऐसा समय था जब हमारे देश में आजादी की लड़ाई चल रही थी। अंग्रेजों के खिलाफ इस लड़ाई में कैफी भी जुड़े। दबे और शोषित लोगों के संघर्षों में कैफी हमेशा जुड़ते रहे और बाद में वे कमुनिस्ट पार्टी (सी पी आई) के साथ जुड़ गए। 

’उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे…डर अब तक तेरी तारीख ने जानी ही नहीं..’यह भी कैफी की ही कविता है जो उन्होंने औरतों पर लिखी। औरतों को उन्होंने समानता का दर्जा दिया। ऐसे जमाने में जब औरतों का हर जगह दूसरा दर्जा ही था। ऐसे प्रगतिशील विचारों के आदमी से प्यार हुआ शौकत नाम की महिला को। शौकत और कैफी दोनों ही एक दूसरे को बहुत चाहते थे। परिवार की रोक टोक के बावजूद उनकी चाहत बड़ती ही गयी। आखिर दोनों की शादी हुई और 55 साल तक दोनों ने एक दूसरे का साथ निभाया।
कैफी की मौत 2002 में हुई। अपने प्रेमी और पति की याद में शौकत ने ’यादों की राहगुजर’ नाम की किताब लिख डाली। किताब के कुछ अंश ‘कैफी और मैं’ नाम के नाटक में शामिल हैं। इस नाटक में शौकत की भूमिका में हैं उनकी बेटी शबाना आजमी जो खुद एक मशहूर फिल्मी हीरोइन हैं। कैफी की भूमिका निभाते हैं शबाना के पति जावेद अख्तर। दोनों कैफी और शौकत के प्यार को नाटक के जरिये दोबारा जिंदा कर देते हैं। और देखने वालों के होठों पर भी कैफी के गानों से मुस्कुराहट आ जाती है- ‘तुम जो मिल गए हो, तो लगता है, ये जहां मिल गया…’