नई दिल्ली। साल 2012 में सामने आए कोयले घोटाले पर 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने एक सख्त बयान जारी किया है। इसके अनुसार 1993 से 2010 में हुए कोयला खदानों की नीलामी गुप चुप तरह से की गई थी। एक सितंबर को इस पर अंतिम फैसला सुनाया जाएगा।
इस घोटाले को सामने लाने के लिए उस समय कोशिशें शुरू हुईं जब अलग अलग संगठनों ने कई याचिकाएं अदालत में डालीं। करीब एक सौ चैरानवे खदानों पर सवाल उठाए गए थे। यह सभी 2004 से लेकर 2009 तक के मामले थे। लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसी नियंत्रक एवं महालेखा समिति को 1993 से लेकर 2010 तक कोयला खदानों की जांच करने को कहा। इसमें बड़े पैमाने पर घोटाला सामने आया। यह करीब साढ़े दस लाख करोड़ का घोटाला था। इसमें दो सौ अट्ठारह खदानों के बारे में जांच एजेंसी ने अदालत को सूचित किया कि इनमें से एक सौ पांच बारह खदानें निजी कंपनियों को निन्यानवे खदानें सरकारी कंपनियों और बारह आधुनिक ढंग से बिजली उत्पादन करने वाली बिजली परियोजनाओं को आवंटित की गई थीं। हालांकि इसमें से इकतालिस कोयला खदानों का ठेका खत्म किया जा चुका है।
कोर्ट के निर्देश में यह कहा गया है कि कोयला राष्ट्रीय संपदा है। बिजली उत्पादन, लोहा, स्टील और सीमेंट जैसे उद्योगों में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। कुल मिलाकर जनहित कार्यों में कोयला का इस्तेमाल होना चाहिए न कि मुनाफे के लिए। लेकिन कोयला खदानों का ठेका उद्योगपतियों को दिया गया जिन्होंने इसका उपयोग अपने निजी व्यवसाय के ज़रिए लाभ कमाने में किया।
कोयला घोटाले में सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
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