खबर लहरिया Blog हजारों किमी दूर का सफर तय कर आए मजदूरों को क्वॉरेंटाइन सेंटरों में नहीं मिल रही सुविधाएं

हजारों किमी दूर का सफर तय कर आए मजदूरों को क्वॉरेंटाइन सेंटरों में नहीं मिल रही सुविधाएं

जिला बांदा हजारों किमी दूर का सफर तय कर आए मजदूरों को क्वॉरेंटाइन सेंटरों में नहीं मिल रही सुविधाएं :कोरोना वायरस महामारी से बचने के लिए सरकार ने पूरे देश को लॉक डाउन कर दिया| जिससे बाहर महानगरों में फंसे मजदूरों के रोजगार छीन गए इससे परेशान मजदूर 50 दिन बिताने के बाद अब बेरोजगारी से विचलित होकर अपने वतन को किसी तरह पैदा और साधनों में सफर करके आ रहे हैं| जिससे उनको शहरी और ग्रामीण स्तर में बनाए गए स्कूलों कालेजों के क्वॉरेंटाइन सेंटरो में रखा जा रहा है| लेकिन ग्रामीण स्तर पर बने क्वारंटाइन सेंटर में कोई व्यवस्था नहीं है| ऐसा ही एक मामला है कालिंजर कस्बे के राजकीय इंटर कॉलेज में बने क्वारंटाइन सेंटर का जहाँ लगभग 50 प्रवासी मजदूर रुके हैं|

कालिंजर कस्बे के राजकीय इंटर कॉलेज में बने क्वॉरेंटाइन में रुके मजदूर बंसू सोनकर का कहना है कि वह लोग मुंबई में पेंटिंग का काम करने के लिए गए हुए थे उनके साथ 15 लड़के और थे जो कालिंजर के ही रहने वाले थे वहां उन्होंने कुछ दिन काम किया इसके बाद लॉक डाउन हो गया जिसके चलते वह लोग वहीं फंस गए और साधन का इंतजार करते रहे उनको कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि काम बंद था एक मजदूर की जो स्थिति होती है जिसके लिए वह अपने गांव से प्रदेश पलायन करता है कि दो वक्त की रोटी के लिए जुगाड़ कर सके लेकिन जब काम बंद हो गया लॉक डाउन के चलते तो वह लोग एक एक रुपए के लिए तरसने लगे और खाने-पीने के लाले पड़ गए ऐसे ही गुजारा करते हुए किसी तरह उन्होंने लगभग 50 दिन वहां फंसे रहकर बिताए और साधनों का इंतजार करते रहे| जब उनको किसी तरह का सहारा नहीं दिखा तो वह किसी तरह पैदल कुछ दूर कुछ दूर ट्रकों में लादकर किसी तरह अपने वतन को वापस लौटे यहां उनको गांव वालों ने गांव में नहीं घुसने दिया| जिससे जंगल के बीच बने पहाड़ के नीचे राजकीय इंटर कॉलेज में रहते हैं| लेकिन वहां उनको किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं है बंसु सोनकर का यह भी कहना है कि उन्होंने इस बारे में कई लोगों से बातचीत की और एसडीएम नरैनी को भी अवगत कराया लेकिन कोई सहयोग नहीं मिला फिर भी वह किसी तरह वहां पर रहते हैं और अपने घरों से खाना मंगा कर खा रहे हैं|

इसी तरह अहमदाबाद से आए आशाराम,सुशील,और भोला का कहना है कि वह भी मजदूरी के लिए गए थे क्योंकि अपने बुंदेलखंड में सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी की है जिसके चलते उनको पेट की रोटी के लिए पलायन करना पड़ता है| लेकिन इस समय की जो स्थिति है और जिसके चलते सरकार ने लॉक डाउन किया है यह स्थिति उनको हमेशा याद रहेगी| इस बीमारी के चलते हुए लॉक डाउन से मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है| इसका कारण है अचानक से लॉक डाउन होना| अगर यही बात उनको पहले पता होती तो शायद जो उनकी स्थिति आज है वह नहीं होती किसी तरह इतना लंबा सफर तय करके और मुश्किलों का सामना करते हुए अपने वतन तो लौट आए हैं लेकिन यहां भी उनको ऐसी जगह रखा गया है जहां पर कोई व्यवस्था नहीं है| अगर प्रशासन की तरफ से क्वॉरेंटाइन में रखने की व्यवस्था की गई है, तो उसमें मजदूरों को सुविधा भी मिलनी चाहिए जो बिल्कुल नहीं है| एक तो मजदूर इतना लंबा सफर करके मुश्किल से यहां तक आ पाया है और अब उनको यहां भी जेल की तरह रहना पड़ रहा है ना वहां कोई साफ सफाई की व्यवस्था है ना ही लाइट की व्यवस्था है और ना ही खाने-पीने की वह खुद में किसी तरह साफ सफाई करके वहां रुके हुए हैं और अपने घरों से खाना मंगा कर खा रहे हैं जबकि यह व्यवस्था खुद प्रशासन को करनी चाहिए थी|