मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता माह: कोरोना काल में महिलाओं का स्वास्थ्य सही रहना क्या महिला की ही जिम्मेदारी है या उसके परिवार और सरकार की भी। इस पर ध्यान किसी का नहीं जाता और महिलाएं अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं। उनके मन में कभी यह आता भी नहीं होगा कि मानसिक स्वास्थ्य जैसी समस्या भी कोई बीमारी है। या फिर उन्हें इस बीमारी से निपटने के लिए डॉक्टर के पास जाना चाहिए। वह पूरी तरह बच्चों और अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी की सूची में खुद को सबसे ऊपर रखती हैं, लेकिन ऐसा क्यों? ऐसे ही बहुत सारे सवालों के जवाब पाने के लिए हमने इस पर रिपोर्टिंग की।
उत्तर प्रदेश के जिले चित्रकूट,वाराणसी, अयोध्या और पन्ना (मध्यप्रदेश) की महिलाओं से हमने बातचीत की। बहुत ज्यादा बातचीत करने के बाद यह निकल कर आया कि जब उनके घर के पुरूष और बच्चे बीमार होते हैं तो उनको संभालना कितना मुश्किल होता है। वह खुद बीमार पड़ने पर अपना ख्याल नहीं रख पाती लेकिन परिवार की देखभाल के लिए तत्पर रहती हैं। हमने ऐसी महिलाओं से भी बात की जो नौकरी करती हैं, जिनके भरोसे उनके घर चल रहे थे लेकिन लॉकडाउन लगने से उनकी नौकरियां चली गयीं इसलिए उनको अपने घर को चला पाने में दिक्कत तो हो ही रही है, साथ ही वो बहुत ज़्यादा मानसिक तनाव से भी गुज़र रही हैं। ऐसे में दिमागी हालत ठीक नहीं रहती। यहां तक कि कभी कभी रात में नींद भी नहीं आती। ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य कैसे ठीक रहा सकता है। इस स्टोरी के लिए बाइट देने वाली सभी महिलाओं को किसी न किसी तरह से चिंता सताए जा रही है। इस मामले पर हमारी सरकार किसी भी तरह से न सोचती है और न ही काम करती है।
कोविड से जुड़ी जानकारी के लिए ( यहां ) क्लिक करें।