आगरा के फतेहाबाद में परिजनों ने फतेहाबाद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अस्पताल पर लापरवाही का आरोप लगाया। लापरवाही के कारण प्रसूता की जान ले ली।
उत्तर प्रदेश के आगरा के फतेहाबाद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) से एक घटना सामने आई है जो अस्पतालों के स्वास्थ्य सुविधाओं पर सवाल उठाता है कि क्या गरीब लोगों के जान की कोई मोल नहीं है? आख़िर अस्पतालों में इस तरह की सुविधाएं क्यों है।
आगरा के फतेहाबाद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में स्वास्थ्य कर्मियों की लापरवाही ने प्रसूता की जान ले ली। दरअसल महिला को डिलीवरी (प्रसव) के तीन घंटे बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इसके बाद घर पहुंच कर महिला को काफी ज़्यादा ब्लीडिंग होने लगी (शरीर से ज़्यादा खून बहने लगा) जिस से कारण उस महिला की मौत हो गई। परिजनों ने स्पताल स्टाफ पर लापरवाही का आरोप लगाया है। यह घटना फतेहाबाद के थोक चाचीपुरा गांव की है।
परिजनों का आरोप
मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार मृतक महिला के पति सुनील वाल्मीकि ने आरोप लगाया है। उनका कहना है कि थोक चाचीपुरा निवासी सुनील की पत्नी वर्षा (27) को 21 अक्टूबर 2025 को प्रसव पीड़ा होने पर फतेहाबाद के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया था। उसी शाम करीब 4 बजे वर्षा ने एक पुत्र को जन्म दिया था। एएनएम ने एक हजार रुपये मांगे। तब पांच सौ रुपये दे दिए। दाई और एंबुलेंस चालक और सफाई कर्मचारी ने भी पैसे मांगे। सभी को पैसे दिए। अस्पताल स्टाफ ने मंगलवार शाम पांच बजे वर्षा को छुट्टी देकर घर भेज दिया। बुधवार सुबह 11 बजे वर्षा को अधिक खून बहने लगा। वह बेहोश होकर गिर गई। एंबुलेंस का फोन नहीं लगा इसलिए ऑटो में बिठाकर सीएचसी ले गए। यहां डाक्टरों ने आगरा के लिए रेफर कर दिया। एसएन मेडिकल में इलाज के दौरान वर्षा की मौत हो गई। परिजनों के मुताबिक सीएचसी से उन्हें प्रसव के तीन घंटे बाद ही घर भेज दिया।
सपा नेता ने लगाया आरोप
हिंदुस्तान के रिपोर्ट अनुसार सपा (समाजवादी पार्टी) नेता ऋषि वाल्मीकि ने आरोप लगाया कि प्रसूता को अस्पताल से जल्दी घर भेज दिया गया। उसके परिवारीजनों से पैसों की वसूली भी की गई। उन्होंने चेतावनी दी कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई तो आंदोलन किया जाएगा।
क्या बोले सीएचसी प्रभारी
इस संबंध में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डॉक्टर उदय प्रताप सिंह रावल ने बताया कि मामला उनके संज्ञान में नहीं है और इसकी जांच कराई जाएगी।इस मामले में यदि कोई लापरवाही बरती गई है तो संबंधित के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
बता दें अस्पतालों में इस तरह की लापरवाही और सुविधाओं की कमी में यह पहली खबर नहीं है। एक खबर थी मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले के लालपुर गांव से है। डिंडोरी जिले में एक आदिवासी महिला रोशनी मरावी से अस्पताल का बिस्तर साफ करवाया गया था। यह घटना 31 अक्टूबर 2024 की है। रोशनी मरावी और उनके परिवार पर पर हिंसक हमला हुआ था। हमले में रोशनी मरावी के पति और ससुर की मौत हो गई जबकि उनके देवर गंभीर रूप से घायल हो गए। अस्पताल में उन्हें किसी तरह उपचार के लिए लाया गया और फिर एक असंवेदनशील घटना घटी जिसमें गर्भवती रोशनी से ही अस्पताल का खून से सना बिस्तर साफ़ करवाया गया।
MP: गर्भवती महिला से साफ कराया गया सरकारी अस्पताल में बिस्तर
इसी तरह खबर पटना के मुजफ्फरपुर से भी आई थी। घटना 26 मई 2025 की है जहां मुजफ्फरपुर स्थित कुढ़नी थाना क्षेत्र के गांव में एक 10 वर्षीय नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार किया गया था और उसे शनिवार को गंभीर हालत में पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (पीएमसीएच) लाया गया था। कथित तौर पर सामने आया कि अस्पताल में इलाज के लिए इंतजार करते हुए छः दिन तक मौत से जूझने के बाद 31 मई रविवार को नाबालिग लड़की की मौत हो गई। परिजनों का आरोप था कि 4 घंटे तक एंबुलेंस में इलाज के इंतजार में पड़ी रही लेकिन समय पर बेड और इलाज न मिलने के कारण उसकी हालत और बिगड़ गई और चार घंटे तक एंबुलेंस में रहने के बाद उन्हें एक विभाग से दूसरे विभाग तक दौड़ाया गया।
Patna: नाबालिग दलित लड़की के साथ बलात्कार और फिर इलाज में देरी होने से हुई अस्पताल में मौत
आज की ही अस्पतालों के सुविधाओं से संबंधित एक और खबर सामने आ रही है। महोबा जिला अस्पताल में व्यवस्था इस तरह की है कि समय पर एंबुलेंस उपलब्ध नहीं होती है जो रेफर मैरिज जाते हैं उन्हें ऑटो में लाया या ले जाया जाता है।
देश के कई हिस्सों से आ रही इन घटनाओं से साफ झलकता है कि सरकारी अस्पतालों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। कभी बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, कभी समय पर एंबुलेंस न मिलना और कभी डॉक्टरों व स्टाफ की लापरवाही यह सब मिलकर आम लोगों के जीवन को जोखिम में डाल रहे हैं। आगरा की वर्षा वाल्मीकि जैसी घटनाएं बताती हैं कि गरीब और ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के लिए प्रसव जैसी सामान्य प्रक्रिया भी जानलेवा साबित हो रही है। तीन घंटे के भीतर अस्पताल से छुट्टी देना और फिर ब्लीडिंग से महिला की मौत होना न केवल लापरवाही है बल्कि यह स्वास्थ्य तंत्र की गंभीर विफलता का प्रतीक है।
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