देश में महिलाओं की छोटी-छोटी बातों को लेकर ट्रेनिंग की जाती है। अब बताइए महिला अगर कुर्सी पर बैठ जाएं तो कितना बुरा होगा। समाज की तो नाक ही कट जाएगी। न जाने कितना बड़ा अनर्थ हो जाएगा। अगर पुरूष मौजूद हैं, कुर्सियां खाली पड़ी हैं लेकिन महिला ज़मीन पर ही बैठेगी या वहां खड़ी रहेगी लेकिन बैठेगी नहीं।
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कौन-सी धार्मिक या इतिहासिक किताबों में लिखा है कि महिलाओं को कुर्सी पर बैठना मना है। ये सारे नियम महिलाओं को बंदिशों में बांधते हैं तो वहीं पुरूषों को हर चीज़ में आजादी देते हैं। ऐसे समाज को क्या कहें जो महिलाओं और पुरुषों को लेकर दोहरा बर्ताव करता है। क्यों महिलाएं सब कुछ सहें, पुरूषों से ज़्यादा सहनशील, पुरुषों से ज़्यादा शक्तिशाली, फिर भी वही समाज में बेचारी कहलवाई जाती है।
महिलाओं को पुरुषों के बराबर बैठने के लिए इस काबिल बनना पड़ेगा यानी पढ़ाई अच्छी करें कोई नौकरी करती हो तब जाकर वो पुरुषों के बराबर बैठ सकती है। वरना चाहें जितनी भी सक्षम हों, बैठेंगी तो पुरुषों के सामने ज़मीन पर ही।
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