हमेशा से महिलाओं को रूढ़ीवादी सोच के साथ बांध कर रखा गया है। रूढ़ीवाद की वजह से महिलाएं हिंसा का शिकार होती रहीं हैं। हर चीज में रोकना-टोकना भी समाज की आदत रही है। अगर इस सब को पीछे छोड़कर नारी जाति आगे बढ़ रही है तो उसे ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ता है। तरह-तरह के अश्लील शब्द उसके लिए बोले जाते हैं। अब कहा तो जाता है कि महिला पुरुष बराबर हैं। शिक्षा का अधिकार बराबर है। हर चीज़ में महिलाओं के बराबरी और दर्जे की बात कही जाती है।
लेकिन फिर भी डिजिटल इंडिया के इस दौर में सिर्फ फोन चलाने में महिलाओं को ही क्यों रोका-टोका जाता है? क्यों उन्हें फोन चलाने में इतना ट्रोल होना पड़ता है? वहीं पूरूष अगर रात-दिन फोन चलाता है तो उसके लिए कोई सवाल नहीं होते।
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अगर लड़की, महिला फोन चलाती है तो उसके लिए गलत है, वो लड़की ही गलत हो जाती है। लड़की फोन चलाएगी तो भाग जाएगी। लड़कों से बातें करेगी।
कहीं गलती से असुरक्षित नम्बर उसके फोन में आ गया तो लड़की ने ही नम्बर दिया होगा। बहुत-सी बातें सुनना पड़ता है लड़की को। फोन देना बंद अगर फोन लड़की का है या तो उससे फोन ही छीन लिया जाता है।
लेकिन सोचने वाली बात तो ये है कि जब मोबाइल फोन हमें सुविधा, एंटरटेनमेंट, न्यूज़, देश और दुनिया में हो रही हर छोटी-बड़ी हलचल से रूबरू कराने में पक्षपात नहीं करता, तो हम क्यों लड़के-लड़कियों को मोबाइल का इस्तेमाल करने देने में भेदभाव करते हैं?
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