हमारे देश में समाज की सोच बहुत अहम मानी जाती है और आज के दौर में भी उन रीति- रिवाजों को माना जाता है जो काफी समय पहले ही खत्म हो चुके हैं और इस बात से तो कोई अनजान है नहीं कि आज भी महिलाओं के लिए बहुत सारे नियम बने हुए हैं जिनको बहुत पहले ही खत्म हो जाना चाहिए था। कहते हैं ज़माना बदल रहा है। औरतें-पुरुषों के साथ कदम से कदम मिल कर चलने लगी हैं। इस बात मे कोई दो राय नहीं है लेकिन आज भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो कुछ रूढ़िवादी सोच के नीचे दबे हुए हैं ।
बात करें विधवा महिलाओं की तो विधवा महिला समाज में आज भी अपशगुन मानी जाती हैं जैसे उन्होंने बहुत बड़ा पाप किया हो। उसके पति की मौत का कारण वो खुद हो। इस तरह से उसके आत्मा को चोट पहुंचाई जाती है।
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अगर विधवा महिला कहीं किसी शुभ कार्य में शामिल होती है तो उस महिला को शुभ काम में आगे नहीं आने दिया जाता, जैसे शादियों में होने वाली रस्म-रिवाज में विधवा महिला आगे आकर उस रस्म को नहीं अदा कर सकती । विधवा चाहे जो भी हो, मर्द या औरत, समाज के रिती रिवाज सबके लिए एक है।
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