खबर लहरिया Blog महोबा: कब आएगा साफ़ पानी? कब जलेगा घर में बल्ब?

महोबा: कब आएगा साफ़ पानी? कब जलेगा घर में बल्ब?

बुंदेलखंड की घनी वादियों में बसा महोबा ज़िला। महोबा हमेशा से ही अपने समृद्ध संसाधनों के लिए मशहूर रहा है, लेकिन जंगल, पुरानी इमारतों और बालू की खानों के अलावा आज भी महोबा के ग्रामीण इलाकों में रह रहे लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष करते आ रहे हैं। चाहे वो बिजली हो, पानी हो या फिर विकास का और गंभीर मुद्दा, ज़िले में आज भी ऐसे कई गांव हैं जो न ही सिर्फ इन सुविधाओं के लिए सालों से लड़ाई करते आ रहे हैं बल्कि कई परिवार तो विकास और रोज़गार की तलाश में अब ज़िले के बाहर पलायन भी कर चुके हैं। 

आज हम आपको महोबा ज़िले में मौजूद दो ऐसी ही विकास न होने की परिस्थितियों से रूबरू करवाएंगे। जहाँ एक तरफ एक पूरा गांव पानी की बूँद बूँद के लिए दशकों से संघर्ष करता आ रहा है, तो वहीँ दूसरे गांव में आज भी रात होते ही बल्ब नहीं दिए जलाए जाते हैं। 

खारा पानी पी रहे कबरई क्षेत्र के लोग- 

महोबा जिला का कबरई कस्बा पूरी तरह से पहाड़ी क्षेत्र के अंतर्गत आता है। जितना बड़ा पहाड़ी क्षेत्र, उतना ज़्यादा खनन, और जितना ज़्यादा खनन, पानी की उतनी ही ज़्यादा कमी। आसपास के इलाकों में हैंडपंप तो कई लगें हैं, लेकिन लगातार हो रहे खनन और ऊंचाई पर स्थित होने की वजह से या तो ये हैंडपंप अब सूख गए हैं और या फिर इनमें अब सिर्फ और सिर्फ खारा पानी आ रहा है। 

इंदिरा नगर इलाका भी कबरई कसबे के अंदर ही आता है, जहाँ लगभग हज़ार से ऊपर ही लोग रहते हैं। इस मोहल्ले में अब पिछले 10 सालों से सिर्फ मीठा पानी ही आ रहा है। ये पानी न ही पिया जा सकता है और न ही खाने-पीने की ज़रूरतों में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस मोहल्ले में रह रही खुशबू बताती हैं कि मोहल्ले के ज़्यादातर लोग पीने का पानी खरीद कर इस्तेमाल करते हैं। 10 लीटर की पानी की बोतल 20 रूपए की मिलती है। जो कि कई बार एक दिन भी नहीं चलती। 

कई बार मोहल्ले में जल निगम के ज़रिये टैंकर का पानी तो भेजा गया लेकिन वो पानी भी लोगों को खरीदना पड़ता है। जो परिवार इतना महंगा पानी खरीदना वहन नहीं कर पाते, उन्हें लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर मौजूद एक हैंडपंप से पानी भरकर लाना पड़ता है। हालाँकि ये पानी भी खारा और कई बार मीठा होता है लेकिन गरीब परिवार इसी पानी को पीने के लिए मजबूर हैं। 

इंदिरा नगर की कई गलियों में हमने जल निगम का टैंकर तो खड़ा देखा लेकिन पानी की बेशुमार किल्लत के चलते ये टैंकर्स भी सुबह 1-2 घंटे के अंदर खाली हो जाते हैं।  जो पैसेवाले हैं वो पानी खरीद कर ले जाते हैं और जो गरीब हैं वो अपने मटके, बाल्टियां, और बोतलें लेकर दिनभर लाइन में अगले टैंकर के आने के इंतज़ार में खड़े रह जाते हैं। 

 

खरीद कर पानी पी रहा ये मोहल्ला- 

सुनीता बताती हैं कि हैंडपंप का खारा पानी पीकर उनके पालतू जानवर भी बीमार रहने लगे हैं। जब ईंधन होता है तब तो पानी उबाल कर पशुओं को दे दिया जाता है लेकिन बेरोज़गारी और गरीबी की मार झेल रहे इन परिवारों के लिए रोज़ाना उबाल कर पानी पीना भी मानो अब एक सपने जैसा हो गया है।  

मालती भी मोहल्ले में कई परिवारों की तरह पानी खरीद कर इस्तेमाल करती हैं। वो बताती हैं कि उनका महीने का लगभग 1500-2000 रूपए का खर्च सिर्फ पानी खरीदने का है। मीठे-पानी का इस्तेमाल नहाने, कपड़े धोने में किया तो जाता है लेकिन इस पानी से अब तो कपड़े भी पीले से पड़ने लग गए हैं। 

मोहल्ले के लोगों ने पानी की मांग कई बार की, आवेदन दिया, नेताओं से दरख्वास्त की, लेकिन नतीजा आज भी कुछ नहीं निकल पाया है। हालात इतने बुरे हैं कि सरकारी दफ्तरों जैसे पुलिस चौकी इत्यादि में भी पानी को खरीद कर पिया जा रहा है। 

 

बिजली की अर्थव्यवस्था भी पानी की किल्लत का कारण- 

नगर पंचायत कबरई की अध्यक्ष राज किशोरी कुशवाहा के प्रतिनिधि पूरण चंद ने बताया कबरई कसबे में हर घर नल योजना के तहत प्रयास करके हर क्षेत्र में पानी की टंकियों की सुविधा तो करवाई जा रही है लेकिन पानी की कमी के चलते हर कोई इस पानी का इस्तेमाल भी नहीं कर पा रहा है। क्षेत्र में ध्वस्त चल रही बिजली व्यस्था भी इसका एक महत्वपूर्ण कारण है। जहाँ 24 घंटे में कुछ ही घंटे बिजली की आपूर्ति होती है, ऐसे में कई बार टंकियां पूरी तरह से भर भी नहीं पा रही हैं। उनका कहना है कि पानी की समस्या का हल तो शायद अभी न निकला पाए लेकिन हाँ बिजली व्यवस्था को ठीक कराने के लिए काम शुरू किया जा रहा है। 

इसके साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि लोगों में भी पानी की समस्या को ज़िम्मेदारी से समझने का अभाव है। लोग पानी बर्बाद भी जमकर कर रहे हैं, अपने बर्तन को भरने के बाद टंकी का नल बंद नहीं करते हैं, हैंडपंप के पानी को भी सुचारू रूप से इस्तेमाल नहीं करते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि हम इस दिक्कत को ध्यान में रखकर खुद में भी बदलाव लाएं और पानी को जितना हो सके उतना बचा सकें। 

 

कुलपहाड़ में ध्वस्त बिजली व्यवस्था-

पानी की समस्या के साथ ही क्षेत्र में बिजली की समस्या भी बड़ा मुद्दा बना हुआ है। कई लोगों ने बिजली विभाग पर आरोप लगाते हुए बताया है कि कई बार आवेदन करने पर घर में मीटर और बिजली कनेक्शन तो करा दिया जाता है लेकिन फिर भी बिजली नहीं आती है। 

ज़िले के कुलपहाड़ कसबे की रहने वाली नीलम ने बताया कि उन्होंने 15 दिन पहले बिजली कनेक्शन के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था जिसके बाद दो ही दिन के अंदर विभाग से टीम ने आकर मीटर लगा दिया था। लेकिन इसके कुछ ही दिनों बाद उनकी गैर मौजूदगी में घर में घुंसकर बिजली विभाग के कर्मचारी मीटर उखाड़ कर ले गए। 

नीलम बताती हैं कि 2001 में कुलपहाड़ में उनकी शादी होने के बाद से अबतक वो मिट्टी के तेल से लालटेन जलाकर ही रहती आई हैं। सिलाई का काम करतीं नीलम ने धीरे धीरे पैसे जमा करके अपने बच्चों की पढ़ाई को और सुचारू बनाने के लिए घर में बिजली कनेक्शन करवाने का सोचा। 2 हज़ार रूपए खर्च करके बिजली कनेक्शन हुआ भी और घर में मीटर भी लगा गया। लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि विभाग की टीम ने आकर मीटर निकाल लिया? 

 

नहीं हो रही सुनवाई- 

इस घटना के बाद से अबतक नीलम और उनके पति कई बार कचहरी से लेकर तहसील के चक्कर लगा चुके हैं, कुलपहाड़ के विद्युत उपखंड के बाहर धरना दे चुके हैं। लेकिन इस समस्या का हल अबतक नहीं निकल पाया है। 

नीलम का आरोप है कि उनके बच्चे अब वापस से रात में मोमबत्ती और लालटेन जला कर पढ़ने को मजबूर हो गए हैं। घर में पंखा भी लगवाया लिया, लेकिन अब वो भी सिर्फ तस्वीर की तरह छत पर टंगा हुआ है। कठिनाइयों भरा जीवन बिता कर आयीं नीलम अपने बच्चों को एक बेहतर भविष्य देना चाहती हैं लेकिन फिलहाल विकास की ये समस्याएं उनके बच्चों के भविष्य के आड़े आई हुई हैं। 

उपखंड कुलपहाड़ विद्युत विभाग के कर्मचारियों से बात करने पर भी हमें कोई ठोस जवाबदेही नहीं मिल पाई है। यहाँ मौजूद कार्यरत लोगों ने बताया कि मीटर का कनेक्शन नीलम के ससुर के नाम था जिसका काफी बड़ा बिल अभी बकाया है, जब तक उसे भरा नहीं जाएगा दूसरा मीटर नहीं लगवाया जाएगा।  

ध्यान देने वाली बात ये भी है कि अगर पुराने मीटर के बिल की भरपाई पहले नहीं हुई थी, तो फिर किस आधार पर नया मीटर लगाया गया था? लेकिन विद्युत विभाग इन सवालों के जवाब देने में असफल रहा है।