खबर लहरिया Blog VHP, बजरंग दल समेत अन्य संगठनों से जुड़ने वाले युवाओं का क्या है भविष्य? | KL Rural Media Fellowship

VHP, बजरंग दल समेत अन्य संगठनों से जुड़ने वाले युवाओं का क्या है भविष्य? | KL Rural Media Fellowship

विश्व हिंदू परिषद से जुड़े एक अन्य युवा ने कहा, “जब हिंदुओं के साथ अत्याचार होता है और पुलिस कार्रवाई नहीं करती है तो फिर वहां बजरंग दल अपने हिसाब से कार्रवाई करना जानता है. क्योंकि देश का बल बजरंग दल है, फिर चाहें मुकदमें लगें या कुछ हो फिर हम यह सब परवाह नहीं करते हैं. क्योंकि हम हिंदुत्व, हिंदू और मंदिरों के लिए काम कर रहे हैं.”

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यह रिपोर्ट खबर लहरिया रूरल मीडिया फेलो अवधेश, न्यूज़ लॉन्ड्री सेखबर लहरिया से गीता देवी द्वारा किया गया है।

गांव, नगर और शहरों में युवा तेजी से राजनैतिक और गैर-राजनैतिक संगठनों से जुड़ रहे हैं. ऐसे युवा सोशल मीडिया और इन दलों द्वारा समय-समय पर चलाए जा रहे अभियानों के माध्यम से इन संगठनों में शामिल हो रहे हैं. इनमें विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, भीम आर्मी और विभिन्न राजनीतिक दलों के अनुसांगिक संगठनव व अन्य शामिल हैं.

ऐसे में ये छात्र पढ़ाई और अपने भविष्य की परवाह किए बिना इन संगठनों से जुड़ रहे हैं. ये संगठन कैसे काम करते हैं, इनका प्रभाव कितना है, जुड़े युवा क्या सोचते हैं और संगठन से जोड़ने के लिए क्या जतन किए जाते हैं हमने इसकी पड़ताल करने के लिए बांदा जिले का दौरा किया.

बांदा जिले के कोर्रा खुर्द गांव निवासी अरुण कुमार पटेल 2016-17 में हिंदू युवा वाहिनी के सक्रिय सदस्य थे. तब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का शोर अपने चरम पर था. पटेल ग्रेजुएशन कंपलीट कर हिंदुओं को जगाने का कम कर रहे थे.

वे बताते हैं, “मैं सोशल मीडिया के माध्यम से इस संगठन से जुड़ा था. तब राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार अपने आखिरी पड़ाव पर थी. हमें सोशल मीडिया पर लेख और वीडियो के जरिए बताया जाता था कि मुसलमान गुंडागर्दी कर रहे हैं. दंगा फसाद की जड़ मुसलमान हैं. ये सब देखकर मैं भी हिंदू युवा वाहिनी में जुड़ गया. मुझे पहले साल तहसील मंत्री बनाया गया और बाद में जिला कार्यकारिणी सदस्य. इस दौरान हम गांव-गांव जाकर हिंदुओं को जागरूक करते थे. हिंदू समाज के बारे में बताते थे. मुस्लिम समाज के लोग जो दंगा फसाद कर रहे हैं उनसे हमें कैसे बचना है ये सब जाकर लोगों को समझाते थे. हम गायों के लिए भी काम करते थे कि उन्हें कैसे बचाना है. कुल मिलाकर हिंदू धर्म के लिए काम करना था. इनसे जुड़े व्हाटसएप ग्रुपों में भी इन्हीं सब मुहिमों पर बातें होती थीं.”

पटेल अब कहते हैं, “जब मैं ये सब कर रहा था तब मेरी उम्र काफी कम थी. समझ नहीं थी और न ही कोई गाइड करने वाला था. अब लगता है वह एक गलत कदम था. क्योंकि बिना भविष्य देखे ही राजनीतिक क्षेत्र में चले गए. अब अफसोस होता है. पढ़ता तो शायद कोई नौकरी कर रहा होता. काफी पढ़ाई की बर्बादी हुई है. आज मैं अपना दल एस पार्टी के लिए काम कर रहा हूं और एक खेती के बीजों की दुकान चलाता हूं.”

वह आखिरी में कहते हैं कि आज के युवा पहले अपना भविष्य देखें और पढ़ाई पर ध्यान दें. ऐसे संगठन सिर्फ बर्बादी की जड़ हैं.

हालांकि ये कहानी सिर्फ 28 वर्षीय अरुण कुमार पटेल की नहीं है. बल्कि ऐसे कई युवा गुमराह होकर ऐसी दल-दल में फंस जाते हैं कि फिर उनका निकलना मुश्किल हो जाता है.

                                               (तस्वीर- शुशील कुमार तिवारी)

इस बारे में हमने कई युवाओं से बात की. ऐसे ही बीए द्वितीय वर्ष के छात्र शुशील कुमार तिवारी से हमरी मुलाकात बादां के एसपी दफ्तर के बाहर हुई. शुशील की अपनी एक अलग कहानी है. वह साझा करते हुए कई बार हंसते हैं तो कई बार अपने ऊपर अफसोस जताते हैं.

वह पहले युवा मोर्चा से जुड़े थे. लेकिन अब वह इस सगंठन के साथ नहीं हैं. उनका कहना है कि इस संगठन से जुड़ने के बाद उनकी पढ़ाई का बहुत ज्यादा नुकसान होने लगा था. जिसका अंदाजा उन्हें जल्दी ही लग गया था.

शुशील कहते हैं, “शरुआत में मुझे एक ग्रुप में जोड़ा गया, जिसमें किसी से बात करने से पहले जय श्री राम कहना जरूरी है. जब कहीं भी कोई घटना होती तो उस गांव में क्या हुआ उसकी सूचना इस ग्रुप में दी जाती है.”

आप कैसे इस ग्रुप में जुड़े? इस सवाल पर वह कहते हैं, “मेरी मौसी के लड़के ने मुझे बताया कि युवा मोर्चा में जुड़ जाओ तो मैं जुड़ गया. ग्रुप में जुड़ने के लिए मेरा आधार कार्ड और मोबाइल नंबर लिया गया था.”

लेकिन मुझे जल्द ही समझ आ गया कि इससे मेरी पढ़ाई का नुकसान हो रहा है. इसके बाद मैंने एक दिन गुस्से में उस व्हाट्सएप ग्रुप को डिलीट कर दिया. ग्रुप में दिनभर गौशाला तो कभी कहीं गाय मर गई, हिंदुओं के साथ ये हो गया… उसकी खबरें आती थीं. फिर हम सब ग्रुप में कमेंट करते थे कि क्या होना चाहिए. इस संगठन से जुड़ने की पहली शर्त यही थी कि जब भी कोई बात करेगा तो उसे पहले जय श्रीराम बोलना होगा.” उन्होंने कहा.

वे कहते हैं, “जब मैंने ग्रुप छोड़ा और पढ़ाई पर फोकस किया तो उसका रिजल्ट भी मिला. अब मेरी बीएसएफ हेड कांस्टेबल के तौर पर नौकरी लगने वाली है. पहले जोधपुर में मेरा फिजिकल हुआ उसके बाद महाराजपुर में लिखित परीक्षा दी वो भी क्लियर हो गई है, अब मेरा सिर्फ मेडिकल बचा है. अगर मैं यही सब में लगा रहता तो शायद आज मेरी जो नौकरी लगने वाली है वो नहीं मिलती.”

वह आगे कहते हैं कि पहले जब ग्रुप में जुड़ा तो दिनभर सिर्फ मैसेज ही मैसेज आते थे पूरा समय उसी में बीत जाता था, कभी रिप्लाई करने में तो कभी क्या चल रहा है उसे पढ़ने में. लेकिन ग्रुप से निकलने के बाद लगा जैसे किसी जाल से निकल गया हूं. अब सिर्फ पढ़ाई लिखाई करता हूं.

वे आखिर में एक सलाह भी देते हुए नजर आते हैं कि युवाओं को अभी सिर्फ पढ़ाई पर फोकस करना चाहिए. क्योंकि बिना पढ़ाई के कुछ नहीं है.
बांदा शहर और खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में युवा किसी न किसी संगठन से जुड़े हैं. हमने देखा कि उनकी पढ़ाई से ज्यादा सक्रियता व्हाट्सएप ग्रुपों में है. ये ग्रुप इन युवाओं को बांधकर रखते हैं. चार युवकों के झुंड में खड़े एक युवक ने बताया कि वह इन व्हाट्सएप ग्रुपों, इंस्टाग्राम व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक दूसरे से जुड़े रहते हैं, और इनके माध्यम से हिंदू धर्म के लिए कैसे काम करते हैं यह सब सीखते हैं. युवाओं के इस झुंड में बात करने से समझ आया कि इनकी पहुंच सिर्फ यहीं तक सीमित है कि किस गांव में गाय मर गई. क्या उसे मारने वाले मुसलमान थे या किसी हिंदू लड़की का दोस्त मुस्लिम तो नहीं है. इनका मानना है अगर अब हिंदुओं के लिए काम नहीं किया तो फिर देश में मुस्लिम राज आ जाएगा.

ऐसे युवाओं की अपनी एक पहचान हैं. इनके हाथ में कलावा और माथे पर टीका. अगर बाइक पर हैं तो उस पर या तो हिंदू लिखा होगा या फिर जय श्री राम. वाहन पर नंबर ठीक से हो या न हो लेकिन धर्म संबंधी इंडिकेशंस आपको जरूर मिल जाएंगे.

ऐसे संगठनों को चला रहे उनके पदाधिकारियों से भी हमने बात की, कि वह कैसे इन युवाओं के इन संगठनों में जोड़ते हैं.

                           (तस्वीर- विश्व हिंदू परिषद जिला अध्यक्ष चंद्रमोहन बेदी)

इस बारे में हमने विश्व हिंदू परिषद जिला अध्यक्ष चंद्रमोहन बेदी से बात की. उनके घर पर हुई इस मुलाकात की शुरुआत वे ‘जो हिंदू है वो हमरा है’ कहके करते हैं.

बेदी संगठन के बारे में कहते हैं, “विश्व हिंदू परिषद के तीन आयाम हैं. बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी और मात्र शक्ति. इनमें नई जनरेशन के लोग बजरंग दल से जुड़ते हैं. इसमें 15 साल से 35 साल तक के युवाओं को भर्ती किया जाता है. ऐसे ही सेम उम्र की महिलाएं दुर्गा वाहिनी से जुड़ती हैं. इसके अलावा 35 साल से ज्यादा उम्र के युवक युवतियों को क्रमश: विश्व हिंदू परिषद और मात्र शक्ति से जोड़ते हैं.”

संगठन कैसे काम करता है? इस सवाल पर वह कहते हैं, “हमारा जन्म हिंदू समाज के लिए हुआ है. हम कोई राजनैतिक काम नहीं करते हैं हम सिर्फ समाज का काम करते हैं. हमारे लिए युवा बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हैं क्योंकि हम उनकी बदोलत ही आज राम मंदिर का निर्णाण कर रहे हैं. ये काम 500 साल से अटका था इसके लिए हमने 78 लड़ाइयां लड़ीं और इसमें हमारे पौने चार सौ हिंदू लोग शहीद हुए हैं. ये आज हमें राम मंदिर जो मिला है ये इतनी आसानी से नहीं मिला है कि मिला और हमने बना लिया हमने इसके लिए कई परिवारों की बलिदानी देनी पड़ी है. हमारे काफी लोग शहीद हुए हैं.”

वह आगे मीर बाकी का जिक्र करते हुए कहते हैं कि मुसलमान क्रूर तो होते ही हैं. इनका पुराना इतिहास रहा है इसमें किसी को बताने की जरूरत तो है नहीं, हर समाज का व्यक्ति इस बारे में जानता है. हिंदुओं के खून के गारे से मस्जिद बनाई थी.

(मीर बाकी का नाम अयोध्या विवाद में इसलिए बार-बार आता है क्योंकि कहा जाता है कि इसी शख्स ने बादशाह बाबर के नाम पर यहां मस्जिद बनवाई थी)

“हम युवाओं के सहारे लैंड जिहाद यानी मठ, मंदिरों और गोशालाओं की जगहों पर कब्जे छुड़ाना, जिहादियों से लड़ाई लड़ना. इस तरह के काम करते हैं. बाकी आज कल सबसे ज्यादा हिंदू बहन बेटियों के साथ लव जिहाद चल रहा है इसमें हमारी बहन बेटियों को मुसलमान लड़के कलावा बांधकर अपने को हिंदू बताते हैं. उसके बाद लड़की को प्रेम जाल में फंसाते हैं. अपनी और आकर्षित करके साल दो साल में ही लड़की की जिंदगी खराब कर देते हैं. आज कल मुसलमान लड़कियां भी हिंदू लड़कियों से दोस्ती करती हैं कोचिंग जाती हैं और फिर बाद में उनकी मुस्लिम लड़कों से दोस्ती कराती हैं. ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने हैं. बाद में अटैची में उनके टुकड़े मिलते हैं. हमारा काम इन्हें जागरूक करने का है. बांदा में भी हर महीने कम से कम 10 से 15 लड़कियां भागती हैं. जिसके बाद हम प्रशासन की मदद से उन्हें बरामद कर वापस लाते हैं.” उन्होंने कहा.

नए युवा आपके साथ कैसे जुड़ते हैं, आप उन्हें क्या बताते हैं और शुरुआती स्टेज में उन्हें क्या करना पड़ता है? इस सवाल वे कहते हैं, “जब हम 15 साल के बच्चों को अपने साथ लाते हैं तो पहले बजरंग दल में उनका 10 दिन का प्रशिक्षण होता है. कानपुर प्रांत में हमारे 21 जिले हैं. हर जिले में बदल-बदल कर साल में एक बार यह प्रशिक्षण होते हैं. ऐसे ही दुर्गा वाहिनी का है. हम उन्हें 9 दिन का प्रशिक्षण देते हैं. हम इन्हें तीर चलाना, निशानेबाजी, तलवारबाजी, बंदूक चलाना, आग के गोले में कूदना, गढ्ढे फांदना, कहीं फंस जाएं तो वहां से कैसे निकलना है आदि काम कराते हैं. कुल मिलाकर जैसे मिलिट्री की ट्रेनिग होती है वैसे ही हम इन्हें ट्रेनिंग देते हैं. यही हमसे जुड़ने के बिल्कुल शुरुआती स्टैप होते हैं.”

ये सब सीखने के बाद क्या होता है और बिना लाइसेंस के बंदूक कैसे चलाएंगे? “अगर मान लो हमें कही जरूरत पड़ी तो फिर हम उनका उपयोग करेंगे. जिनके पास लाइसेंस होता है वही चलाते हैं, हम संगठन के माध्यम से युवाओं का लाइसेंस भी बनवाते हैं. हम सिर्फ अपने और अपने समाज के लिए ऐसा करते हैं.”

क्या कभी हथियार चलवाने की जरूरत पड़ी? “अभी तो ऐसा मौका नहीं पड़ा लेकिन तैयारी करके रखनी पड़ती है कभी-कभी ऐसी घटनाएं हो भी जाती हैं जैसे अभी कानपुर में दंगे हुए थे तो पत्थरबाजों को कैसे जवाब देना है हम बजरंग दल के युवाओं को पत्थर चलाना भी सीखाते हैं, कि कैसे पत्थर फेंकना है. पथराव को कैसे रोकना है ये सब भी सीखाते हैं.”

लेकिन ये सब काम तो पुलिस का है? “पुलिस आएगी जब आएगी लेकिन उससे पहले तो हमें कुछ करना है.”

15 साल 20 साल के बच्चों की उम्र पढ़ने या कंपटीशन एग्जाम की तैयारी करने की होती है, लेकिन आप उन्हें हथियार चलाना सीखा रहे हैं? इस पर वह थोड़ा सोच कर बोलते हैं कि हम ये सब गर्मियों की छुट्टियों मई-जून में कराते हैं. जब बच्चे बिल्कुल फ्री रहते हैं. दूसरी बात हम केवल हर कार्यकर्ता से संगठन के लिए केवल दिन में एक घंटा मांगते हैं, हर समय के लिए नहीं कहते हैं. हमेशा समय देने के लिए हमारे पूर्ण कालिक होते हैं.”

महीने या सालभर में आपसे कितने नए युवा जुड़ते हैं? इस पर वह कहते हैं, “हमारे यहां साल में एक अभियान चलता है. तीन साल में पहले बजरंगदल में भर्ती अभियान चलता है फिर विश्व हिंदू परिषद और फिर मात्र शक्ति और दुर्गा विहिनी के लिए भी भर्ती होती है. ये हर तीन साल में चलता है. हमारा मकसद है कि जो हिंदू है वो हमारा है. हम उनको पद देते हैं. इस अभियान के माध्यम से सेकड़ों युवा हमसे हर महीने जुड़ते हैं.”

               (तस्वीर- विश्व हिंदू परिषद दुर्गा वाहिनी की बांदा जिला संयोजिका निधि धूरिया)

इस बारे में हमने विश्व हिंदू परिषद दुर्गा वाहिनी की बांदा जिला संयोजिका निधि धूरिया से भी बात की. वह कहती हैं कि हम इस शाखा के जरिए महिलाओं के लिए काम करते हैं. महिलाओं को इतना सशक्त बनाने की कोशिश करते हैं कि वह अपनी रक्षा स्वयं कर सकें. हम उन्हें तलवारबाजी, निशानेबाजी, लठ्ठबाजी, जूडो कराटे सीखाते हैं. ताकि परेशानी में उन्हें किसी की जरूत न पड़े.”

हम शक्ति साधना कैंप लगाते हैं जिनमें यह प्रशिक्षण दिया जाता है. अभी हमारे साथ 105 बहने जुड़ी हुई हैं इनमें से 15 पदाधिकारी हैं.

युवतियों को जोड़ने के लिए क्या करती हैं? इसके लिए हम इंटर कॉलेजों में जाते हैं. दुर्गा वाहिनी में 15 से 45 साल तक की बहनों और 45 से 80 उम्र तक की महिलओं को मात्र शक्ति से जोड़ते हैं.

हम इंटर कॉलेजों में वहां की टीचर और प्रेंसिपल के माध्यम से जाते हैं फिर वहां की छात्राओं से बात करते हैं वे हमारी बात सुनकर हमारे साथ जुड़ने के लिए तैयार हो जाती हैं.

32 वर्षीय धूरिया ने एमए तक की पढ़ाई की है और फिलहाल एक स्कूल में योगा भी सिखाती हैं.

विश्व हिंदू परिषद से जुड़े एक अन्य युवा ने कहा, “जब हिंदुओं के साथ अत्याचार होता है और पुलिस कार्रवाई नहीं करती है तो फिर वहां बजरंग दल अपने हिसाब से कार्रवाई करना जानता है. क्योंकि देश का बल बजरंग दल है, फिर चाहें मुकदमें लगें या कुछ हो फिर हम यह सब परवाह नहीं करते हैं. क्योंकि हम हिंदुत्व, हिंदू और मंदिरों के लिए काम कर रहे हैं.”

                                                             तस्वीर – 32 वर्षीय धूरिया

आप पर कितने मुकदमे हैं? ये सब तो चलते रहते हैं साधारण सी बात है. अगर कोई मुकदमा हिंदू समाज के लिए लग रहा है तो ये हमारे लिए गर्व की बात है कि मैं अपने हिंदू समाज के लिए काम कर रहा हूं. इससे मुझे कोई दिक्कत नहीं है. हम इस काम के लिए युवाओं को जोड़ने के लिए आर्मी की तरह ट्रेनिंग देते हैं.

जहां भी हिंदू समाज की बात आती है वहां हम सबसे आगे खड़े होते हैं. जब भी कोई घटना होती है तो वहां पुलिस बाद में आती है हम पहले पहुंच जाते हैं.

                                (तस्वीर- बजरंग दल जिला अध्यक्ष 28 वर्षीय अंकित कुमार)

वहीं बजरंग दल जिला अध्यक्ष 28 वर्षीय अंकित कुमार कहते हैं, “जो भी हिंदू हैं वह बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद से जुड़ने का भाव रखते हैं. युवाओं को जोड़ने के लिए हम समय समय पर अभियान चलाते हैं, जैसे कोचिंग सेंटरों और कॉलेजों पर जाकर या फिर खेल कूद के माध्यम से भी नव युवकों को जोड़ने का काम करते हैं. हमारा मुख्य उद्देश्य जिहादियों से बहन बेटियों की सुरक्षा कैसे हो इस पर काम करते हैं. युवाओं के जुड़ने से हम मजबूत होते हैं.”

“हम विद्यालयों में जाकर संपर्क करते हैं. ये सब हिंदू हित चिंतक अभियान के माध्यम से होता है. जो भी हिंदू हितों की चिंता करता है हम उसे जोड़ते हैं, उनका एक शुल्क भी रहता है. ऐसे कार्यक्रम प्रतिवर्ष होते हैं.” उन्होंने कहा.

वह आगे कहते हैं, “अगर स्कूल का डॉयरेक्टर हिंदू होगा तभी हम आगे बात बढ़ाते हैं. फिर उनसे बात करके मिलते हैं फिर कैंप लगाकर बच्चों को जोड़ते हैं. इस दौरान हम बच्चों को यही समझाते हैं कि हम अपने लिए तो 24 घंटे जीते हैं लेकिन एक घंटा अपने समाज, देश और राष्ट्र के लिए निकालें. हिंदू हित का जिसके अंदर भाव होता है वह समर्पण के साथ हमारे साथ जुड़ता है. सोशल मीडिया के माध्यम से भी हम लोगों को जोड़ते हैं.”

वह आखिर में जोड़ते हैं, “आज बांदा जिले के हर गांव में बजरंगदल का कार्यकर्ता है. चित्रकुट, हमीरपुर, महुआ बांदा में लगभग डेढ़ से दो लाख हमारे कार्यकर्ता हैं. हिंदुत्व के लिए जीना चाहिए और हिंदूत्व के लिए ही मरना चाहिए. जब अन्य समाज कर सकता है तो फिर हिंदू समाज क्यों नहीं कर सकता है.”

बादां जिले के बनियान पुरवा बदौसा गांव निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अवध पटेल युवाओं के इन संगठनों से जुड़ने की एक अलग ही वजह बताते हैं. वह कहते हैं, “यहां बुंदेलखंड में शिक्षा का स्तर बहुत खराब है. सामाजिक स्थिति भी ठीक नहीं है. इन संगठनों से ज्यादातर गरीब घरों के बच्चे जुड़ रहे हैं. अमीर घरों के बच्चे इन सब में नहीं पड़ रहे हैं. दूसरी बात यहां के युवाओं को कोई भी ठीक दिशा देने वाला नहीं है. क्योंकि यहां पर न तो इनके परिवार वाले इतने पढ़े हुए हैं और न ही यहां का माहौल उस तरह का है कि बच्चा पढ़ लिखकर सही दिशा में जाए.”

वे आगे जोड़ते हैं, “जो युवा घर से मजबूत हैं या जमीन जायदात वाले हैं वह पैसे और पहचान के बल पर आगे बढ़ जाते हैं. लेकिन ज्यादातर युवा अपना समय इन संगठनों में खराब करने के बाद बेरोजगारी के धक्के खाते हैं और फिर अपनी जो भी दो- चार बीघा जमीन होती है उसी में लग जाते हैं, और अपना जीवन समाप्त कर डालते हैं.”

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कुल मिलाकर ऐसे युवा किसी न किसी से आकर्षित होकर या किसी व्यक्ति विशेष को आडियल मानकर किसी संगठन या समूह का हिस्सा बन जाते हैं. इनमें अधिकांश युवा या तो आर्थिक रूप से पिछड़े परिवारों या फिर कम पढ़े लिखे परिवारों से होते हैं. इनमें एक हिस्सा आर्थिक रूप से संपन्न परिवारों के बच्चों का होता है जो अपने परिजनों की सलाह पर राजनीति में अपना भविष्य बनाने की चाहत रखते हैं. इन दोनों ही समूहों में से पहला वर्ग (आर्थिक रूप से पिछड़ा और कम पढ़े लिखे परिवार) कुछ सालों का समय बिताने के बाद उन्हें ये महसूस होने लगता है कि उनका भविष्य फिलहाल नहीं है. इसकी एक बड़ी वजह उनकी आर्थिक स्थिति होती है.

ऐसे युवा इन समूहों से अलग हो जाते हैं और जीवन यापन के दूसरे अवसरों की ओर मुड़ जाते हैं. जैसे- नौकरी, व्यापार व अन्य रोजगार आदि.

साफ तौर पर कहें तो उनको इस तरह के संगठनों की सयाह हकीकत का पता चल जाता है.

 

खबर लहरिया रूरल मीडिया फेलो अवधेश कुमार

खबर लहरिया की सीनियर रिपोर्टर गीता देवी की तस्वीर।

 

चंबल मीडिया द्वारा प्रस्तुत चंबल मीडिया रूरल रिपोर्टिंग

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Comments:

  1. Naq says:

    Good analysis….

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