खबर लहरिया Blog यूपी पोस्टर विवाद:पोस्टर लगाना सही है या गलत, अब सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच करेगी सुनवाई

यूपी पोस्टर विवाद:पोस्टर लगाना सही है या गलत, अब सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच करेगी सुनवाई

लखनऊ :पोस्टर लगाना सही है या गलत, अब सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच करेगी सुनवाई

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान उप्र में हुई हिंसा के आरोपियों का पोस्टर लगाने का मामला अब कोर्ट के बाद राजनीतिक गलियारे में छाया हुआ है। योगी सरकार ने सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के होर्डिंग्स लगाए। जवाब में समाजवादी पार्टी (सपा) ने भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री चिन्मयानंद और उन्नाव के भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर के पोस्टर लगाकर उनके आपराधिक विवरण भी दिए हैं।  इस लड़ाई में कांग्रेस भी कूद चुकी है। कांग्रेस नेताओं की ओर से लगवाए गए होर्डिंग में कई बीजेपी नेताओं को दंगाई कहकर संबोधित किया गया है।

कभी बीजेपी प्रवक्ता रहे और मौजूदा समय में सपा नेता आईपी सिंह ने लखनऊ में यह पोस्टर लगाए हैं। आईपी सिंह ने पोस्टर को ट्वीट भी किया और लिखा कि जब कानून और आदेश का पालन सरकार नहीं कर रही तो वो भी होर्डिंग लगा रहे हैं। कुलदीप सिंह सेंगेर और स्वामी चिन्मयानंद बीजेपी में थे, लेकिन मामला सामने आने के बाद पार्टी ने दोनों को निष्कासित कर दिया था।

सपा नेता आईपी सिंह ने कहा कि जब प्रदर्शनकारियों की कोई निजता नहीं है और हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी योगी सरकार होर्डिंग नहीं हटा रही है तो ये लीजिए फिर। लोहिया चौराहे पर मैंने भी कुछ कोर्ट द्वारा नामित अपराधियों का पोस्टर जनहित में जारी कर दिया है, इनसे बेटियां सावधान रहें।

कांग्रेस के युवा नेता सुधांशु बाजपेयी व लल्लू कनौजिया की ओर से लगवाए गए पोस्टरों में सीएम योगी आदित्यनाथ व डिप्टी सीएम केशव मौर्य के अलावा राधामोहन दास अग्रवाल, संगीत सोम, संजीव बलियान, उमेश मलिक, सुरेश राणा और साध्वी प्राची का नाम और तस्वीरें लगी हैं। पोस्टरों पर इन बीजेपी नेताओं पर पूर्व में लगाई गईं गंभीर धाराओं के बारे में भी लिखा है। पोस्टरों में पूछा गया है कि इन ‘दंगाइयों’ से वसूली कब की जाएगी? शुक्रवार देर रात ये पोस्टर लखनऊ भर में लगाए गए। हालांकि इनकी जानकारी मिलते है, जिला प्रशासन सक्रिय हुआ और इन्हें तुरंत हटा दिया गया।

इससे पहले योगी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा मामले में आरोपियों पर कार्रवाई की थी। उनके खिलाफ लखनऊ के अलग-अलग चौराहों पर 100 वसूली पोस्टर लगाए गए थे। इन पोस्टरों को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हटाने का आदेश दिया था, जिसके खिलाफ योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी।

साभार: विकिपीडिया

सुप्रीम कोर्ट में 12 मार्च को इस मामले को लेकर सुनवाई हुई। याचिका में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। बहस के बाद अदालत ने मामले को विस्तृत सुनवाई के लिए तीन जजों की पीठ के पास भेज दिया है। पीठ ने रजिस्ट्री को इस मामले की फाइल को प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस ए बोबडे के समक्ष रखने का निर्देश दिया ताकि अगले सप्ताह सुनवाई के लिए पर्याप्त संख्या वाली पीठ का गठन किया जा सके। इससे पहले पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि यह मामला बेहद महत्वपूर्ण है। पीठ ने मेहता से पूछा कि क्या राज्य सरकार के पास ऐसे पोस्टर लगाने की शक्ति है। हालांकि शीर्ष अदालत ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और उन्हें सजा मिलनी चाहिए।

मेहता ने अदालत को बताया कि पोस्टर केवल प्रतिरोधक के तौर पर लगाए गए थे और उसमें केवल यह कहा गया है कि वे लोग हिंसा के दौरान अपने कथित कृत्यों के कारण हुए नुकसान की भरपाई के लिए उत्तरदायी हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार की कार्रवाई मामले में अंतिम निर्णय से पहले ही इन लोगों के नाम सार्वजनिक करने और उन्हें शर्मिंदा करने की चाल है। उन्होंने कहा कि ऐसा करके आम लोगों को उन लोगों पीट-पीटकर मारने का बुलावा दिया जा रहा है क्योंकि पोस्टरों पर उनके पते और तस्वीरें भी दी गई हैं।

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन के दौरान लखनऊ में हिंसा और उपद्रव करने वालों की सुप्रीम कोर्ट ने जमकर खबर भी ली।  हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सड़कों के किनारे उपद्रवियों के पोस्टर फौरन हटाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार भी कर दिया। जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने साफ तौर पर कहा, बेशक दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए और उन्हें दंडित भी किया जाना चाहिए। मगर, ऐसा कोई कानून नहीं है, जो सड़क के किनारे उपद्रवियों के पोस्टर लगाने को सही ठहरा सके। अवकाशकालीन पीठ ने इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को इस मामले को तत्काल मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे के सामने रखने को कहा, ताकि कम से कम तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया जा सके, जो अगले हफ्ते इस मामले को सुन सके।