खोह गांव के छात्र अंकित ने कहा कि “जब हम पढ़ने जाते हैं तो पूरा रास्ता पानी से भरा रहता है। हम लोग अक्सर फिसलकर गिर जाते हैं और हमारी किताबें भीगकर खराब हो जाती हैं। अभी ठंड का मौसम है, हम जूते-मोजे पहनकर जाते हैं। हम रास्ते में भीग जाते हैं जिससे पूरा दिन ठंड लगती रहती है और पढ़ाई में मन नहीं लगता।
यूपी में शिक्षा को लेकर सरकार बड़े-बड़े भाषण और वादे करती हैं लेकिन शिक्षा तक पहुंचने का रास्ता ही जब साफ़ सुथरा और आसान न हो तो स्कूल जाना भी किसी चुनौती से कम नहीं लगता है। यूपी में जहां कई स्कूलों में सुविधा की कमी है तो वहीं कई जगह स्कूल जाने वाली गलियां और सड़क टूटी फूटी और कीचड़ और जलभराव की समस्या है। इस वजह से परिवार भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने में कतराते हैं कहीं उन्हें कोई चोट न लग जाए या फिर कोई बड़ा हादसा न हो जाए।
पिछले दस साल से स्कूल के रास्ते पर कीचड़ और जलभराव
जिला चित्रकूट के ब्लॉक कर्वी स्थित खोह गांव के निवासी इन्द्र कुमार का कहना है कि पिछले दस वर्षों से पूरे रास्ते पर पानी भरा रहता है। नाली न बनने के कारण बारिश होते ही गली में घुटने-घुटने पानी भर जाता है। हालात यह हैं कि कई घरों तक पानी पहुंच जाता है। बच्चे अपने घर के सामने न तो खेल सकते हैं और न ही बैठ सकते। यही रास्ता है जिससे स्कूली बच्चे और गांव के लोग रोजाना आने-जाने के लिए निकलते हैं।
रोजाना इसी रास्ते से जाते हैं स्कूल
खोह गांव के छात्र अंकित ने कहा कि “जब हम पढ़ने जाते हैं तो पूरा रास्ता पानी से भरा रहता है। हम लोग अक्सर फिसलकर गिर जाते हैं और हमारी किताबें भीगकर खराब हो जाती हैं। अभी ठंड का मौसम है, हम जूते-मोजे पहनकर जाते हैं। हम रास्ते में भीग जाते हैं जिससे पूरा दिन ठंड लगती रहती है और पढ़ाई में मन नहीं लगता। मोजे भी सूख नहीं पाते। अगर नाली बनी होती तो पानी एक तरफ से निकल जाता और रास्ते में पानी नहीं फैलता। इससे हमारे आने-जाने में काफी आसानी होती।
बरसात में भर जाता है पानी
कक्षा चार की छात्रा अंजू का कहना है कि बारिश में रास्ते में इतना पानी भर जाता है कि हम लोग निकल ही नहीं पाते, इसलिए कई बार स्कूल नहीं जा पाते और हमारी पढ़ाई का नुकसान होता है। लगभग दो सौ बच्चे इसी रास्ते से स्कूल जाते हैं। जब से हम स्कूल जाने लगे हैं तभी से यही हाल है। इसी वजह से हम चप्पल पहनकर नहीं जाते क्योंकि पूरा कपड़ा गंदा हो जाता है इसलिए मजबूरी में नंगे पांव जाना पड़ता है। क्या करें, इसी रास्ते से गुजरना हमारी मजबूरी है।
वहां रहने वाले ग्रामीण विनय का कहना है कि घर के सामने इतना पानी भरा रहता है कि हम लोग ठीक से बैठ भी नहीं सकते। कोई भी वाहन गुजरता है तो गंदा पानी हम पर छिटक जाता है। दोपहिया वाहन चालक तो लगभग रोज ही फिसलकर गिर जाते हैं। कई लोगों के हाथ-पैर तक टूट चुके हैं क्योंकि पानी भरा होने से गड्ढे दिखाई नहीं देते और फिसलन भरी मिट्टी में लोग गिर जाते हैं। अगर नाली बनी होती तो ऐसी दिक्कतें नहीं होतीं। अब प्रधान का कार्यकाल भी खत्म होने वाला है पर उन्होंने अब तक कुछ नहीं किया। पता नहीं नाली बनेगी या नहीं। लगता है कि हमें इसी नरक जैसे हालात में ही हमेशा निकलना पड़ेगा।
नाली बनाने की मांग
रामस्वरूप का कहना है कि कुल मिलाकर दो किलोमीटर नाली बननी चाहिए लेकिन अभी के लिए कम से कम एक किलोमीटर नाली बन जाए तो स्कूली बच्चे आसानी से निकल सकेंगे। स्कूल से हरिजन बस्ती तक नाली बनना बेहद जरूरी है। हर दिन लगभग हजारों लोग इसी रास्ते से गुजरते हैं – खेती-किसानी करने वाले किसान, महिलाएं जो खेत से चारा लेकर आती हैं और गांव के बाकी लोग। सभी को निकलने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
सुमन का कहना है कि इसी गली से पूरे गांव के लोग आते-जाते हैं लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी स्कूली बच्चों को होती है। दलित बस्ती में पहले नाली बनी थी, लेकिन बारिश के समय पहाड़ का पानी आने से वह पूरी तरह टूट गई। स्कूल जाने वाले रास्ते पर तो नाली बनी ही नहीं है जिससे बच्चों को भारी दिक्कत होती है।
चप्पल-जूते हाथ में लेकर पार करना पड़ता है रास्ता
हम लोगों ने कई बार प्रधान से नाली बनवाने की मांग की लेकिन अब तक काम नहीं हुआ। इस समय हर जगह इतना पानी भरा है कि लोग हाथ में चप्पल लेकर निकलने को मजबूर हैं लेकिन देखने वाला कोई नहीं। पूरी गली पानी और कीचड़ से भरी पड़ी है। चुनाव के समय बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं लेकिन जीतने के बाद कोई ध्यान नहीं देता।
प्रधान रेखा देवी का कहना है कि हमारे गांव की आबादी पाँच हजार से अधिक है। जल जीवन मिशन की पाइप लाइन लगने के बाद से गली में पानी भरने की समस्या बढ़ गई है। हमने अपने स्तर से नाली निर्माण के लिए कार्ययोजना भेज दी है जैसे ही स्वीकृति मिलेगी नाली बना दी जाएगी। फिलहाल की स्थिति को देखते हुए हम अस्थायी रूप से कच्ची नाली बनवाने की व्यवस्था करेंगे ताकि पानी निकल सके।
ग्राम सचिव कामता प्रसाद ने कहा कि वहां रास्ता बना हुआ है। फिलहाल हमारी SIR में ड्यूटी लगी है इसलिए इस विषय में बात करने के लिए हमारे पास समय नहीं है।
सचिव से मिले इस तरह के जवाब से रास्ते को बनवाने की उम्मीद तो बिखर गई लेकिन इसकी जिम्मेदारी किसकी है और कितने वर्षों तक? इस कच्चे रास्ते पर चलने को मजबूर होंगे स्कूल के बच्चे? क्या स्कूल के बच्चों को बिना डर स्कूल जाने का अधिकार नहीं?
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